गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है--
"प्रसादे सर्व दुखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्न - चेतसो ह्यायुर्बुद्धि: पर्यवतिष्ठते॥"
अर्थात प्रसाद गुण के जागते ही समस्त दुःख क्षीण हो जाते हैं। प्रसन्न चित्त व्यक्तियों की आयु बढ़ती है, बुद्धि विकसित होती है। प्रसन्नता वस्तु सापेक्ष नहीं, अपितु वस्तु-निरपेक्ष होती है। राग, द्वेष और मोह-चेतना जितनी-जितनी क्षीण और या मंद होती है, उतनी प्रखर प्रसन्नता की अनुभूति होती है। खिले हुए और मुरझाये हुये फूल में जितना अंतर है, उतना ही अंतर प्रसन्नता और उदासी में है।
सुख और खुशी के महत्वपूर्ण तत्व हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमेशा प्रसन्नचित्त रहना हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। जिन लोगों का मन प्रसन्न होता है, उनकी आयु बढ़ती है और वे जीवन में अधिक समृद्धि और सफलता प्राप्त करते हैं। इस विषय पर विस्तृत चर्चा करने से पहले, हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि प्रसन्न चित्त क्या होता है और इसके क्या लाभ हैं।
प्रसन्न-चित्त का अर्थ होता है कि मन खुश और संतुष्ट होता है। यह एक सकारात्मक मानसिक स्थिति है जो हमारे भावनात्मक और आत्मिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। जब हम प्रसन्न चित्त के साथ जीवन जीते हैं, तो हमारा मन स्वस्थ और सकारात्मक रहता है। इससे हमारी मानसिक तंदुरुस्ती, विचार शक्ति और बुद्धि विकसित होती है।
प्रसन्न चित्त रखने के बहुत सारे लाभ हैं। प्रसन्न चित्त वाले लोग स्वास्थ्य पूर्ण जीवन जीते हैं और तनाव से मुक्त रहते हैं। यह उन्हें सकारात्मक दृष्टिकोण और सोच का संचार करने की क्षमता प्रदान करता है। उनके पास समस्याओं का संघर्ष करने की क्षमता होती है और वे अपार संजीवनी ऊर्जा का आनंद ले सकते हैं।
आयु की दृष्टि से देखें तो, प्रसन्न चित्त वाले लोग अधिक उम्र तक जीने की क्षमता रखते हैं।
सकारात्मक मानसिक स्थिति रखने से उनकी मनोदशा और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होते हैं। अन्य ओर, तनाव, चिंता, दुख और निराशा से भरपूर जीवन जीने वाले लोग आयु में कमी महसूस करते हैं और अन्य विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करने के लिए प्रभावित हो सकते हैं।
प्रसन्न-चित्त व्यक्तियों की बुद्धि विकसित होती है क्योंकि उन्हें सकारात्मक और विचारशील दृष्टिकोण होता है। वे बाधाओं को पार करने की क्षमता रखते हैं और नए और स्वर्णिम विचारों को धारण करते हैं। यह उनके कार्यक्षेत्र में सफलता के द्वार खोलता है और उन्हें सामरिक और नवीनीकृत सोच की दिशा में ले जाता है। इस तरह, प्रसन्न चित्त व्यक्ति की आयु बढ़ती है क्योंकि उन्हें अपार संभावनाएं और मौके प्राप्त होते हैं जिन्हें वे सफलता के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
इसलिए, अपने मन को प्रसन्न और सकारात्मक रखना जीवन में महत्वपूर्ण है। प्रतिदिन की भागमभाग के दौरान, हमें खुश और संतुष्ट रहने के लिए अपने मन को ध्यान में रखने की आवश्यकता होती है। यह हमारी आयु को बढ़ाने के साथ-साथ हमारे जीवन में खुशहाली और समृद्धि का साधन भी है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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