Published By:धर्म पुराण डेस्क

'नैतिकता' उत्कर्ष का आधार

दार्शनिक काण्ट ने वैयक्तिक एवं सामुदायिक जीवन में नैतिक नियमों का, नीति तथा मर्यादाओं का पालन अनिवार्य माना है। इसके अनुसार नैतिक नियमों में तीन प्रकार की विशेषताएं हैं- 

1. स्वतंत्र इच्छा शक्ति जो अन्तर्रात्मा की आवाज पर निर्भर है। 

2. सभी के लिए समान रूप से उपयोगी सबके द्वारा आचरण में लाने योग्य, व्यापक दर्शन। 

3. मानव मात्र के हित का लक्ष्य।

महानता इसी आधार पर की जा सकती है। नैतिक नियमों का निर्धारण विवेकशीलता के आधार पर ही करना सम्भव है। उचित-अनुचित, नीति-अनीति, सत्-असत्, धर्म-अधर्म आदि का निर्णय करना इसी आधार पर संभव होता है।

प्रायः व्यक्ति की अंतर्रात्मा यही प्रेरणा देती है कि वह मात्र अपने हित के लिए ही नहीं, वरन् मानव मात्र के कल्याण के लिए कार्य करे। अतः प्रत्येक व्यक्ति के लिए सबसे प्रथम और बड़ी नैतिकता वही है जिससे लोक-कल्याण और लोकमंगल सधे। 

बुद्ध, गांधी, दयानंद, विवेकानंद एवं तमाम भारतीय मनीषियों ने इसी को सर्वोत्तम नैतिक नियम बताया है और कहा है कि महानता का राजमार्ग यही है।
 

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