"जब तक संशय भ्रम मिटे नहीं,
तब तक होता हैरान फिरे।
जब सबमें ब्रह्म सच्चिदानंद है,
फिर क्यूँ जन्मे काहे को मरे।।"
वेद में तीन प्रकार के वाक्यों का वर्णन है-
1- ब्रह्म कण कण में है।
2- ब्रह्म माया रहित है।
3- ब्रह्म काल रहित है।
जब ब्रह्म सर्वत्र कण कण में है तो फिर इस शरीर का जन्म तथा इसकी मृत्यु क्यों होती है? ब्रह्म जहां रहता है वहां जन्म और मृत्यु नहीं होती है क्योंकि ब्रह्म तो कॉल रहित है। जीव का शरीर माया के तीन गुणों के द्वारा निर्मित होता है तथा बिना ब्रह्म के यह शरीर खड़ा नहीं हो सकता है।
वेद कहते हैं कि ब्रह्म माया रहित है फिर यह ब्रह्म इस माया के शरीर के साथ किस प्रकार जुडा हुआ है। अत: हे साधूजन जीव का यह संशय किस प्रकार मिटे? जब तक यह भ्रम तथा संशय बना रहेगा उस समय तक जीव हमेशा हैरान होता रहेगा। इस रहस्य के ऊपर से परदा हटे बिना जीव इस ब्रह्म को किस प्रकार जान सकता है?
कुछ लोग अज्ञानवश यह कहते हैं कि जन्म और मृत्यु तो स्थूल शरीर की होती है, परंतु जो ब्रह्म इस शरीर के साथ रहता है वह हमेशा बना रहता है। उसका कभी नाश नहीं होता है।
यह शरीर असत है क्योंकि यह मिट जाता है। इस शरीर के साथ जो ब्रह्म है उसे यदि सत्य (नहीं मिटने वाला) माने तो अध्यात्म का यह सिद्धांत गलत हो जाता है कि समान गुण वाले ही आपस में मिलते हैं।
"प्रकाश रुपी सत्य एवं अंधकार रुपी असत्य एक साथ नहीं रह सकते हैं।"
अत: शरीर के साथ रहने वाला जो ब्रह्म चेतन के रूप में रहता है वह सत्य नहीं बल्कि असत्य है। इसीलिए ये दोनों एक साथ रहते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि जो ब्रह्म सत्य है, वह असत्य बनकर, असत्य जगत तथा असत्य शरीर से किस प्रकार मिला? इस प्रश्न के उत्तर को ढूंढना होगा। जब इसका समाधान हो जायेगा तब ही सत्य ब्रह्म को समझा जा सकेगा।
आकाश में स्थित सूर्य का प्रतिबिंब तालाब में पडता है। तालाब वाले सूर्य का प्रतिबिंब पास की एक दीवार पर पड़ता है। दीवार टूटने पर तथा तालाब का जल सूख जाने पर केवल आकाश में स्थित सूर्य ही शेष रहता है बाकी दोनों सूर्य नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार जो प्रतिबिंबित है वह असत्य होता है तथा उसके गुण धर्म, मूल बिंब से भिन्न होते हैं।
महामति प्राणनाथ जी अपनी वाणी में कहते हैं कि -
"तूं कहां देखें इन खेल में,
ए तो पडयो सब प्रतिबिंब।
प्रपंच पांचो तत्व मिल,
सब खेलत सूरत के संग।।
तुम इस स्वप्नमय संसार के खेल में क्या देख रही हो? यह संसार तो अक्षर ब्रह्म की कल्पना की मात्र परछाई है। पांच तत्वों से रचित यह संसार झूठा प्रपंच मात्र है तथा असत्य है। इसमें जो ब्रह्म (चेतन सुरत)सर्वत्र व्याप्त होकर खेल रहा है, वह भी असत्य है क्योंकि प्रतिबिंब असत्य ही होता है। ब्रह्म का जो मूल बिंब है वही सत्य है।
बजरंग लाल शर्मा
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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