पौराणिक कथानुसार चन्द्रमा महर्षि अत्रि के पुत्र हैं। महर्षि ने ब्रह्माजी की आज्ञा से घोर तप किया। उस तप के प्रभाव से जगत के कष्टों का विनाशक और इन्द्रियों से परे जो परमानन्द है तथा जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रदेशों में निवास करने वाला है वही उन प्रशान्त मन वाले महर्षि के मन एवं नेत्रों में स्थित हो गया क्योंकि उस समय उमापति ने भी अत्रि के मन, नेत्रों को अधिमय बनाया था|
अतः ललाट में ही चंद्रमा प्रकट हो गया। उसने अपने प्रकाश से अखिल जगत चराचर को उद्दीप्त कर दिया। वहीं जलज सम्भूत धाम तेज अत्रि का पुत्र कहलाया। यानि अत्रि का सम्पूर्ण तप तेज ही चन्द्रमा है, चंद्रमा के दिव्य तेज से औषधियों का प्रादुर्भाव हुआ इसलिए चन्द्रमा समस्त षट्स को देने वाला वनस्पति, जड़ी-बूटियों में अलग-अलग रस देने में समर्थ हुआ।
यही कारण है कि जिस वनस्पति को चन्द्रमा की किरणें प्राप्त नहीं होती है, वह वनस्पति रस हीन होती है। इसलिए इसे सोम भी कहा जाता है। चन्द्रमाँ को रसाधिपति एवं जलाधिपति होने के कारण अमृतमय एवं अन्नमय भी कहा जाता है।
श्रीमद्भागवत पुराण में शुकदेव जी ने कहा है “चंद्रमा अन्नमय और अमृतमय होने के कारण समस्त जीवों का प्राण और जीवन है सोलह कलाओं से युक्त मनोनय, अन्नमय, प्राण स्वरूप भगवान चन्द्रमा ही देवता, पितर, मनुष्य, भूत, पशु-पक्षी और वृक्ष आदि समस्त प्राणियों का पोषण करते हैं इसलिए इन्हें सर्वमय भी कहते हैं।
अतः महर्षि अत्रि के शान्त मन में अवतरित परमानन्द ब्रह्मा का तप ही मूर्तिमान चन्द्रमा है। इसी कारण सारे प्राणी मात्र को आनंद उल्लास से नित्य ही ओत-प्रोत रखता है। रति सुख का मालिक भी चन्द्र ही है। इसलिए जितने भी विवाह होते हैं चन्द्रमा के बल में होते है ताकि गृहस्थ जीवन अमृतमय हो।
सूर्य बल में किया हुआ विवाह गृहस्थाश्रम के आनन्द को नहीं लेने देता। अतः आध्यात्मवादी यदि चन्द्रमा की उपासना कर लेंगे तो निश्चय ही उनका मन काबू में आ जाएगा और इसी जन्म में वे परमात्मा को प्राप्त कर सकेंगे।
भौतिकवादी यदि चन्द्रमा की उपासना कर जायेंगे तो जीवन सरस व आनन्दमय बीत जायेगा। चन्द्रमाँ नक्षत्रो का राजा है। जिस प्रकार सूर्य आत्मकारक ग्रह है, उसी प्रकार चन्द्रमा मन का कारक है।
चन्द्रमा की उपासना से मन वशीभूत हो जाता है और मन वशीभूत होने से जातक स्वयं का स्वामी हो जाता है। जिस जातक का चन्द्रमा उच्च का होता है तो उसे अपार ऐश्वर्य, रूप, भोग आदि प्रदान करता है और देश-विदेश की यात्राएँ करवाता है।
अनायास ही भाग्य उदय हो जाता है, सब सुविधाएं प्राप्त हो जाती है। स्वास्थ्य ठीक बना रहता है। जिनका चन्द्रमा नीच का होता है उन्हें सदा जल सम्बन्धी रोग, खांसी, जुकाम, नजला आदि घेरे रहते हैं। सब कुछ होते हुए भी मन की शांति नहीं होती है। हमेशा एक व्याकुलता और बेचैनी सी छाई रहती है।
चन्द्रमा जातक को कदम-कदम पर अपमानित करवाता है और जातक हर जगह असफलता को प्राप्त करता है। जातक का कर्म क्षेत्र कमजोर हो जाता है और वह बहुत भावुक हो जाता है। ऐसे में जातक को चाहिये कि वह चन्द्र देव की पूजा-उपासना आदि करे जिससे चन्द्र देव के कुप्रभाव को कम कर सके। चन्द्र ग्रह शान्ति हेतु कुछ अन्य उपाय भी करें।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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