Published By:धर्म पुराण डेस्क

मृत्यु की जिज्ञासा ही जीवन का समाधान

काशी में स्वामी रामानंद महाराज का सत्संग सुनने कभी-कभी काशी नरेश जाते थे. जब भी जाते उनका मन अशांत और किसी-न-किसी समस्या से वे विचलित रहते. वे स्वामी जी से पूछते कि स्वामी जी, जीवन कैसे सुखी रहेगा? इसी तरह अनेक प्रश्न पूछते लेकिन स्वामी रामानंद मौन रहते. 

एक दिन राजा को रास्ते में कबीर जी मिले और मस्ती में गा उठे-

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब| 

पल में परलय होयेगी, बहुरि करेगो कब ॥

ऐसा सुनकर राजा के मन में एक नया समाधान जागा और वे सीधे स्वामी रामानंद जी के पास गए. आज काशी नरेश बहुत प्रसन्न थे. उन्होंने पूछा, स्वामी जी मेरी मृत्यु कब होगी? स्वामी रामानंद ने कहा राजन, आज तुमने सही प्रश्न किया है. मृत्यु की जिज्ञासा ही जीवन के लिए सच्चा समाधान है. मृत्यु का ध्यान जिस व्यक्ति को होता है वही सच्चे जीवन की शुरुआत करता है.

यदि रावण मनुष्य जैसे मृत्यु का विचार करता तो वह देवता होता, क्योंकि देवता को मनुष्य से भय नहीं होता है. देवता मानवता के पोषक होते हैं और राक्षस शोषक. रावण देवता बनता तो मनुष्य का हित चाहता और मनुष्य से होनेवाली मृत्यु का भय भी खत्म हो जाता. निस्वार्थ वृत्ति और परोपकार की भावना आए हुए काल को भी वापस कर देती है.


 

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