देश की सुप्रसिद्ध पंडित हरीश चंद्र शर्मा आयुर्वेदिक कुलभूषण कहते हैं-
हाय बुढ़ापे वावरे-तोय आवत मोय हानि। घर के कहा न मानते, वैरी करें ना कान।। जी हां, जैसे-जैसे आयु ढलने लगती है कलपुर्जे भी ढीले पड़ने लगते हैं। धीरे-धीरे पाचन क्रिया बिगड़ने लगती है अनेकानेक रोग घेरने लगते हैं। शरीर जर्जर होने लगता है। घर के कहा मानने को तैयार नहीं होते दुश्मन तो क्यों नहीं भयभीत होंगे। ऐसा बुढ़ापा आनन्ददायक कहां रह जाता है।
पचास की आयु की तरफ जब समय खिसकने लगे तब हमको अपनी आदतों, आहार और व्यवहार और वाणी में परिवर्तन लाना होगा-
कहा है- "जिस व्यक्ति ने अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रखा और अपनी आदतों को नहीं बदला तो भले ही भगवान भी उसके साथ हो तो भी वह प्राणी कभी सुखी नहीं रह सकता है" इन पंक्तियों को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हमारा महाभारत का इतिहास साक्षी है-
1. वाणी पर नियंत्रण- यदि राजमहल में विचित्र निर्माण न कराया गया होता- जल में थल दिखाई दे रहा था, और थल में - जल और देखते देखते दुर्योधन थल समझ कर जल के कुण्ड में जा गिरे थे। जिस पर द्रोपदी ने हंसते हुए कह ही दिया था कि- "रहे अंधे के अंधे ही " ।
इस पर क्रोधित होकर इस अपमान का बदला लेने की दुर्योधन ने उसी समय प्रतिज्ञा कर ली थी। आगे के परिणाम आप सभी भली-भांति जानते ही हैं।
2. आदत से मजबूर- धर्मराज युधिष्ठिर द्वित क्रीड़ा में पारंगत थे, कौरवों के हाथों अपना सर्वस्व हार गए। द्रौपदी तक को ।
यदि आप चाहते हैं कि हमारा बुढ़ापा सुखमय बीते, दूसरों के आश्रित न रहना पड़े तो घर गृहस्थ जीवन में परिवर्तन अवश्य लाना शुरु कर दें।
1. जो मनुष्य केवल संतानोत्पत्ति के लिए संभोग करता है- वह सम्भोग करते हुए भी ब्रह्मचारी है।
2. जो मनुष्य केवल जीवन रक्षा के लिए भोजन करता है वह भोजन करते हुए भी निराहारी होता है।
परिणाम- स्वास्थ्य और दीर्घायु सुखमय जीवन पाता है। स्वामी कल्याण देव जी ने एक लंगोटी और एक सोटी के बल पर 129 वर्ष की आयु प्राप्त कर सहस्त्रों विद्यालयों की स्थापना अपने जीवनकाल में कराई।
'चावल' खाने में बड़ा स्वादिष्ट खाद्य है जिस पर 60 प्रतिशत जनता निर्भर रहती है। परन्तु मैंने अपने आयुर्वेदिक अनुसंधान में पाया कि चावल ही सारे रोगों की जड़ है क्योंकि हम चावल खाते अवश्य है परन्तु खाने का पता नहीं है, कहा है-
Even the poison can become the nectar If wisely used E.P. Whipple.
विष भी अमृत बन जाता है। यदि बुद्धिमानी से प्रयोग किया जाए। आयुर्वेद साक्षात इसका प्रमाण है। विष द्वारा अनेकानेक जीवन रक्षक औषधियां तैयार होती हैं।
साधारणतः चावल खाने से अधिकांशतः लोगों को कब्ज की शिकायत हो जाती है। जो समस्त रोगों की जड़ कहलाती है।
मधुमेह- चावल खाने से कब्ज बनी, कब्ज के दौरान शौच में जोर लगाया- धातु गिरी और दूसरी तरफ गृहस्थ का हाल में तो पालन होता नहीं क्योंकि धीरे-धीरे शीघ्रपतन बढ़ता चला जाता है। और शरीर में दर्द पैदा होने लगता है, घुटने जवाब देने लगते हैं, उदासी-आलस्य छाया रहता है, शरीर गिरता चला जाता है। यूरिक एसिड बनने लगता है। इतने पर भी हम चावल नहीं छोड़ते हैं।
गठिया- शरीर के खास तौर पर हाथ पैर- उंगलियों के जोड़ों में सूजन आकर व्यक्ति चलने-फिरने में भी असमर्थ हो जाता है और दूसरों पर आश्रित अपना दुखदायी जीवन पूरा जैसे-तैसे कर पाता है। ऐसे नारकीय जीवन जीने से तो अच्छे हैं स्वस्थ जीवन के दो-चार दिन ।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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