Published By:धर्म पुराण डेस्क

प्राचीन भारत के शिक्षा दर्शन के शाश्वत सिद्धान्त अर्वाचीन भारत की शिक्षा के लिए भी उतने ही सार्थक हैं।

प्राचीन भारत का शिक्षा दर्शन आदर्शवादी था और यह छात्रों को सिर्फ शिक्षा नहीं, बल्कि आदर्श जीवन और समृद्धि के दिशा में शिक्षा प्रदान करने का माध्यम था। भारतीय शिक्षा दर्शन के सिद्धांत और मूल्यों का उद्देश्य छात्रों के मानविक और आध्यात्मिक विकास को प्रमोट करना था।

गुरुकुल प्रणाली में छात्रों को अच्छे संस्कार, धार्मिक भावना, तपस्या, और ज्ञान का प्राप्ति किया जाता था। छात्रों को ब्रह्मचर्य आश्रम के तहत गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिलता था, और उन्हें विभिन्न विषयों की ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिलता था। छात्रों के शिक्षा के साथ शरीर, मन, बुद्धि, और आत्मा के संवाद का विकास भी ध्यान में रखा जाता था।

इस प्राचीन शिक्षा दर्शन के अंतर्गत, छात्रों को अच्छे आचरण, पूजा-पाठ, और आध्यात्मिक अद्यतन के साथ आदर्श जीवन की ओर प्रोत्साहित किया जाता था। यह शिक्षा दर्शन छात्रों को आदर्श नागरिक बनाने का उद्देश्य रखता था, जो समाज, राष्ट्र, और मानवता के उन्नति में योगदान करते।

भारतीय शिक्षा प्रणाली ने विशिष्ट विषयों के अलावा छात्रों के आध्यात्मिक और आदर्शिक विकास का महत्व दिया था, और इसलिए यह दर्शन समृद्धि, धर्म, और संगठनशीलता के माध्यम से जीवन को सुखमय और योग्य बनाने का प्रयास करता था।  

प्राचीन भारत का शिक्षा दर्शन आदर्शवादी था और इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों के जीवन में आदर्शों को अपनाने और उनके शरीर, मन, बुद्धि, और आत्मा के विकास को प्राथमिकता देना था। भारतीय शिक्षा दर्शन का आदर्श आध्यात्मिक था और छात्र को अध्ययन के साथ-साथ धार्मिकता, संस्कार, और सामाजिक जिम्मेदारियों की ओर भी मोड़ने का अवसर प्रदान करता था।

भारतीय शिक्षा के आदर्श छात्रों को शिक्षा देने के साथ-साथ संस्कार, धर्म, और अद्वितीय आदर्शों को अपनाने की दिशा में भी था। इसका मुख्य उद्देश्य छात्र को आदर्श जीवन और व्यवहार की शिक्षा देना था।

गुरुकुल आश्रम प्रणाली में छात्र ब्रह्मचर्य आश्रम के अंतर्गत अपने जीवन के प्रमुख भाग को बिताते थे, जिसमें धार्मिक अध्ययन के साथ अन्य कौशलों की शिक्षा भी दी जाती थी। इस प्रणाली के अंतर्गत छात्रों को आचार, धार्मिक अनुष्ठान, और सामाजिक सहयोग के महत्व के साथ अपने आदर्श के अनुसार जीवन जीने की शिक्षा दी जाती थी।

इस प्राचीन शिक्षा प्रणाली के तहत, छात्रों को वेद, वेदांग, विज्ञान, कला, शिल्प, गणित, और धर्मशास्त्र का ज्ञान प्राप्त कराया जाता था। इसके अलावा, छात्रों को नैतिकता, आदर्श विचार, और समाज सेवा के महत्व की शिक्षा दी जाती थी।

इस प्राचीन शिक्षा प्रणाली ने छात्रों को एक संपूर्ण और अद्वितीय शिक्षा प्रदान की थी, जिसमें उनके शरीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक विकास का ध्यान रखा जाता था।

इस प्राचीन शिक्षा प्रणाली से आदर्श नागरिकों और समाज के उन्नति के साथ-साथ धार्मिकता और अद्वितीय भारतीय आदर्शों के प्रशंसक पैदा होते थे। प्राचीन भारत का शिक्षा दर्शन आदर्शवादी शिक्षा दर्शन माना जाता है। इसके अनुसार, शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य छात्र के चरित्र, धर्म, और आदर्श के विकास में सहायक होना चाहिए, और यह धार्मिक अदृश्य के माध्यम से होता है। प्राचीन भारत में शिक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा धार्मिक अदृश्य, यज्ञ, तपस्या, और गुरु के आदर्शों के साथ था।

छात्र अपने शिक्षाकों (गुरु) के निर्देशन में अपने जीवन को आदर्शों के साथ गुजारते थे, और उन्हें धार्मिक और नैतिक मूल्यों का पालन करना सिखाया जाता था। छात्र के धार्मिक और आदर्श जीवन का विकास होता था, जिससे वह समाज में सभी के साथ सद्भावना और शांति के साथ रह सकता था।

धर्म जगत

SEE MORE...........