ओरछा को लेकर जो आख्यान है| उसके मुताबिक ओरछा की रानी गणेश कुंवरि ने अयोध्या से रामलला को ओरछा लाने की ठानी। जब वे रामलला को लेने अयोध्या गईं, तब उन्हें स्वप्न में आया कि वे केवल पुष्य नक्षत्र में चलेंगे और जहां बैठा दोगी वहीं बैठ जाएंगे।
इस तरह गणेश कुंवरि नौ माह में सिर्फ पुष्प नक्षत्र को चलकर ओरछा पहुंचीं। रानी जब ओरछा आई तब तक मंदिर तैयार नहीं हुआ था। इसलिये रानी ने उन्हें अपने महल में बैठा दिया। तब से भगवान वहीं बैठे हैं और उनके लिये बना मंदिर खाली पड़ा है, इसीलिए ओरछा में भगवान राम से जुड़े विभिन्न संदर्भों और प्रसंगों पर कई मेले लगते हैं।
इनमें प्रमुख हैं, रामनवमी और राम विवाह के मेले ओरछा में सावन तीज के अवसर पर भव्य मेला लगता है। यह मेला दो दिन तक चलता है। इस दौरान ओरछा को रंग बिरंगी पताकाओं से सजाया जाता है। इस मेले में मध्यप्रदेश ही नहीं, समीपवर्ती राज्य उत्तर प्रदेश से भी भरपूर लोग आते हैं।
ओरछा में इसके साथ ही रामविवाह और रामनवमी मेलों का आयोजन की सुदीर्घ परंपरा है। रामनवमी के अवसर पर भी ओरछा में मेला लगता है। राम विवाह मेला प्रतिवर्ष अगहन की शुक्ल पंचमी को लगता है।
इस मेले के दौरान नाम के अनुरूप भगवान राम के विवाह का मंचन प्रमुख आयोजन होता है, जिसमें दो समूह होते हैं एक जनकपुरवासी यानि कन्या पक्ष के लोग और दूसरी ओर होते हैं| अयोध्यावासी यानी वर पक्ष के लोग, इसके साथ ही भगवान राम के विवाह की विभिन्न परंपराओं के विवाह से जुड़े आयोजन होते हैं।
इस दौरान नगर की परिक्रमा करते हुए राम बारात भी निकाली जाती है जो दो-तीन दिन तक चलती है। चैत्रशुक्ल नवमी पर लगने वाला यह मेला धार्मिक रंग में रंगा होता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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