 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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प्रकृति की अद्वितीयता में छिपे पाँच तत्त्व एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आकाश, तेज, वायु, जल और पृथ्वी - ये पाँच तत्व हमारे शरीर, मन और आत्मा की संरचना के रूप में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
1. आकाश (आकार और शून्यता)
आकाश, एक अदृश्य तत्व, हमारे शरीर की आवश्यक स्थिति का प्रतीक है। जिस तरह से आकाश सभी वस्तुओं को धारण करता है, वैसे ही हमारी भावनाएं और विचार भी हमारे मानसिक आकाश में स्थित होते हैं।
2. तेज (ऊर्जा और प्रकाश)
तेज हमारे शरीर की ऊर्जा का स्रोत है, जो हमें गतिशील और सक्रिय बनाता है। इसके साथ ही, तेज हमारे आत्मा की आध्यात्मिकता को प्रकाशित करता है और हमें सत्य की दिशा में अग्रसर करता है।
3. वायु (गति और स्वतंत्रता)
वायु हमारे शरीर की गति का प्रतीक है, जो हमें क्रियाशील बनाती है। इसके साथ ही, वायु हमें स्वतंत्रता की भावना दिलाती है और हमें समृद्धि की दिशा में आग्रह करती है।
4. जल (पुरिफिकेशन और स्नान)
जल हमारे शरीर की पुरिफिकेशन और शुद्धता का प्रतीक है। यह हमें अंतर्निहित दोषों से मुक्त करने की अनुमति देता है, जैसे कि स्नान द्वारा हम शरीर और मन की शुद्धि करते हैं।
5. पृथ्वी (स्थिरता और आधार)
पृथ्वी हमारे शरीर की स्थिरता का प्रतीक है, जो हमें अपनी आत्मा की महत्वपूर्णता को समझाता है। यह हमें आत्म-समर्पण की दिशा में प्रेरित करता है और हमें अपने मूल जीवन की मूलाधार को मजबूती से स्थापित करने में मदद करता है।
पाँच तत्व हमारे शरीर, मन और आत्मा के अंश होते हैं, जो हमें इस ब्रह्मांड में अपने स्थान की जागरूकता और समर्पण की भावना प्रदान करते हैं। यह हमें यह याद दिलाते हैं कि हम वास्तविकता में एक ही आत्मा के अंश हैं, जिन्हें पांच तत्वों के माध्यम से अद्वितीयता की ओर ले जाना चाहिए।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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