1- जाग्रत अवस्था-स्थूल शरीर..
साकार-
इसका आकार आंखों को दिखाई पड़ता है। इसका विस्तार नींद में होता है, जो रचना करने वाले के चित्त में होती है तथा नींद टूटने पर यह अवस्था समाप्त हो जाती है। अतः यह स्थिति नश्वर कही जाती है तथा इसका कारण स्वप्नावस्था है।
2- स्वप्नावस्था-सूक्ष्म शरीर..
निराकार-
यह स्वरूप भी नश्वर है। इसका विस्तार भी नींद में ही होता है। नींद में रचना करने वाले का मन भ्रमण करता है, परंतु जब तक वह आकार ग्रहण नहीं करता है तब तक यह हिरण्यगर्भ अंड के रूप में रहता है। इस अवस्था को स्वप्नावस्था कहते हैं। यह शरीर दिखाई नहीं देता है।
जब रचना करने वाले के मन का अंश, चेतना के रूप में इस अंडे में प्रवेश करता है, तो यह हिरण्यगर्भ रूपी अंडा फूटता है तथा उसमें से स्वप्न का प्रथम पुरुष (काल पुरुष) प्रकट होता है। जब स्वप्नावस्था का शरीर आकार ग्रहण करता है तब वह स्थूल शरीर प्राप्त कर जाग्रत अवस्था में आ जाता है।
3- सुषुप्ति अवस्था-कारण शरीर..
निराकार-
यह नींद की अवस्था है तथा काल के अंतर्गत आती है। इसमें रचना करने वाले का मन भटकता नहीं है, शांत रहता है। यह मन की सुप्तावस्था है तथा समस्त इंद्रियां अपने मूल में लय रहती हैं। इस अवस्था को मोह-जल, मोहसागर, भवजल, सुन्न तथा नींद कहा गया है। इस अवस्था का कारण तुरिया अवस्था है।
4- तुरीयावस्था-महा कारण शरीर..
साकार-
यह अवस्था भी काल के अंतर्गत आती है तथा मिटने वाली है। यह शरीर भी तीन गुणों के द्वारा निर्मित होता है तथा मिटने वाला होता है एवं दिखाई देता है। जीव की जाग्रत, स्वप्न एवं सुषुप्ति अवस्था का कारण यही तुरिया अवस्था है।
इस तुरिया अवस्था को धारण करने वाला नारायण है, जो अपनी नींद में सृष्टि की एवं जीवों की रचना करता है। नारायण की नींद टूटने पर इनके द्वारा रचित समस्त रचना इनके मन में विलीन हो जाती है तथा समस्त जीव नारायण के मन में सूक्ष्म रूप में विश्राम करते हैं। यह तुरिया अवस्था जीव की चौथी अवस्था है, परन्तु नारायण की यह पहली जाग्रत अवस्था कहलाती है।
नारायण भी एक जीव है, उनकी जाग्रत, स्वप्न एवं सुषुप्ति अवस्था काल पुरुष के चित्त के अंदर नींद में बनती हैं। नींद टूटने पर नारायण काल पुरुष के मन में लय हो जाते हैं। यह नारायण की चौथी-तुरिया अवस्था है परंतु काल पुरुष की यह पहली जाग्रत अवस्था होती है।
काल पुरुष तक की समस्त रचना अक्षर पुरुष की नींद में बनती है इसलिए इसे अक्षर पुरुष का स्वप्न कहा जाता है। सृष्टि रचना के समस्त कारणों का कारण अक्षर पुरुष ही है परंतु अक्षर पुरुष का कोई कारण नहीं है। इनका शरीर तीन गुणों से रहित है, कभी मिटता नहीं है तथा इसे शुद्ध साकार शरीर कहा जाता है।
निष्कर्ष- यह संसार सपने के सपने का सपना है। जीव अनेक हैं जो नारायण के स्वप्न में बनते हैं, नारायण भी अनेक हैं जो काल पुरुष के स्वप्न में बनते हैं तथा काल पुरुष भी अनेक हैं जो अक्षर पुरुष के स्वप्न में बनते हैं। परन्तु अक्षर पुरुष एक हैं। जीव की पांचवी अवस्था तुरीयातीत है, जो अक्षर पुरुष के चित्त में अनादि रूप में स्थित है।
बजरंग लाल शर्मा
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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