एक बार नारद जी स्वर्ग जा रहे थे। राह में एक बूढ़ा सन्यासी मिला। नारदजी ने उससे कहा- भगवान के पास जा रहा हूँ, कुछ पुछवाना है। सन्यासी ने उत्तर दिया, भगवान से निवेदन करना कि पिछले तीन जन्मों से साधना कर रहा हूँ, अब दर्शनों में कितना विलंब है। नारदजी ने कहा- जरूर पूछ लूंगा। पास ही एक जवान युवक बैठा इकतारा बजा रहा था। नारदजी ने उससे विनोद से पूछा- क्यों भाई तुम्हें तो कोई बात नहीं पुछवानी है, भगवान से? उसने उत्तर दिया- मेरी ओर से प्रभु को कष्ट मत देना । मेरा धन्यवाद उनसे निवेदन कर देना, जो कुछ उसने दिया है, वह बहुत है।
कुछ समय बाद नारद जी वापस आए, तो सन्यासी ने पूछा कि भगवान ने मेरी बात का क्या उत्तर दिया। नारद जी ने सन्यासी से कहा- भगवान ने कहा है कि सन्यासी जिस वृक्ष के नीचे बैठा है, उसमें जितने पत्ते हैं, उतने जन्म अभी उसे और लेने होंगे। तब जाकर मोक्ष मिलेगा। तो बूढ़ा नाराज हो गया, यह मेरे साथ अन्याय है, तीन जन्मों से तप कर रहा हूँ। प्रभु इतने निष्ठुर हैं यह तो आशा न थी।
यही बात नारदजी ने जाकर उस युवक कही। वह युवक अपना इकतारा लेकर खुशी के मारे नाचने लगा। कहने लगा- वाह प्रभु! मेरी इतनी पात्रता कहाँ जो इतनी जल्दी मोक्ष मिलेगा। कभी भी मिले तू मुझे मिल जाएगा, यही मेरे लिए बहुत है। प्रभु तू धन्य है। नारद बाबा आपको धन्यवाद। आप मेरे लिए प्रभु का आश्वासन जो लाए हैं। वह नाचने लगा खुशी से।
कहानी कहती है कि उसी तरह नाचते-नाचते उसकी समाधि लग गई। उसका शरीर छूट गया। जो काम अनंत जन्मों में होने को था, वह उसी क्षण हो गया। जिनमें इतना धैर्य हो, इतना धन्यभाव हो, उसे प्रभु कृपा प्राप्त करने में कठिनाई नहीं होती|
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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