 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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रुद्रमणि- रुद्र माली स्वर्णमय, ऊर्ध्व सूत्र, तीन धार की पीत वर्ण और वैश्य जाति की है। इसके स्वामी भगवान शिव शंकर है। सोने के समान इस रुद्रमणि में तीन सफेद लकीरें जनेऊ के जैसी होती हैं।
एक समय जब शिव पार्वती पर्वतों में विहार कर रहे थे, उस समय पार्वती ने अपने सब आभूषण उतारकर रख दिये। मेरु पर्वत पर शिव के यज्ञोपवीत की छाया पड़ी तो वह पर्वत तीन सूत्रों में बंध गया। यह सब प्रभु की माया थी। एक ही रंग के सफेद सूत्र में ब्रह्मा, विष्णु, महेश स्थित हैं।
शिवजी ने वह माला अपने गले में डाल ली और हरि स्मरण के काम में लाये। यह मणि सभी प्रकार के सुख, संपत्ति और आनन्द देने वाली है। जिस स्थान पर लक्ष्मी हो वहाँ यह मणि गिर जाती है। उस स्थान जमीन के भीतर से स्वर्ण, चांदी, रत्नों आदि की प्राप्ति होती है। यह मणि उसी को प्राप्त हो सकती है जिस पर भोलेनाथ कृपा कर दें और जो भाग्यशाली हों। नहीं तो इसके दर्शन भी दुर्लभ हैं।
स्यमन्तक मणि– स्यमन्तक मणि चारों वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र) की नीले रंग वाली कुछ श्याम वर्ण लिये और इन्द्रधनुष के समान चमकदार होती है। यह इंद्रलोक में अधिष्ठित है तथा सूर्यदेव इस मणि के स्वामी हैं। देवेन्द्र इस मणि को धारण किये हैं।
श्रीमद्भागवत में वर्णित है कि सत्राजित ने सूर्य की उपासना कर उनके द्वारा यह मणि प्राप्त की है। सत्राजित के भाई प्रसेनजित ने उससे वह मणि ले ली। प्रसेनजित शेर के द्वारा मारा गया तत्पश्चात जाम्बवान शेर को मार कर गुफा में ले गया। श्री कृष्ण जी इस मणि के द्वारा कलंकित हुए और वे जाम्बवान की पुत्री जामवंती से विवाह करके उस मणि को दहेज में ले आये और सत्राजित को प्रदान की।
जब श्रीकृष्ण का विवाह सत्यभामा के साथ हुआ तो पुनः वह मणि सत्राजित ने दहेज में श्रीकृष्ण को देनी चाही, परन्तु वह मणि श्रीकृष्ण जी ने न लेकर सत्राजित को लौटा दी। सत्राजित जब हस्तिनापुर गया तो शतधन्वा ने उसे मारकर वह मणि प्राप्त कर ली। जब श्रीकृष्ण को इस बात का ज्ञात हुआ तो शतधन्वा ने अक्रूर जी को स्यमन्तक मणि दे दी।
अक्रूरजी काशी में तीर्थयात्रा पर आये। वहीं पर श्रीकृष्णजी का भी आगमन हुआ तथा अक्रूरजी श्रीकृष्णजी से क्षमा माँगकर वह मणि उन्हें दे दी। इस मणि को श्रीकृष्णजी ने इन्द्र को दे दी, फिर इन्द्र ने इसे धारण कर लिया।
इस मणि की प्रमुख विशेषता है कि यह प्रतिदिन स्वर्ण उगलती है और समस्त रोगों को हर लेती है। जो कोई भी इस मणि को धारण करता है उसे ऐच्छिक फल प्राप्त होते हैं। यह मणि नीले रंग और श्याम वर्ण से युक्त होती है। बड़े से बड़े भाग्यवान व्यक्ति को भी इस मणि की प्राप्ति बहुत दुर्लभ है।
चिंतामणि- चिंतामणि मन की चिंताओं से मुक्ति दिलाने वाली, ब्राह्मण वर्ण और श्वेत रंग की है। इसके देवता ब्रह्मदेव हैं। चन्द्रमा के समान शोभायमान इस रत्न को पाकर ब्रह्मदेव ने इसे ग्रहण कर लिया।
इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में यह कथा है कि उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत पर मणिपुर देश है, वहीं पर यह मणि उत्पन्न हुई। वहाँ एक राजा निष्कपट भाव से राज करते थे। उनके पास चिन्तामणि देख कर एक असुर ईर्ष्या भाव से भर गया और उस राजा से युद्ध में विजयी होकर उस मणि को अपने वक्षस्थल पर धारण किया। इस मणि के मिल जाने से वह अहंकारी हो गया।
तब ब्रह्माजी ने उसका अहंकार दूर करने के लिये बहुत स्नेह से उससे वह मणि ले ली और वह अपने पास रख ली। उसे धारण करते ही ब्रह्माजी समस्त प्रकार की चिंताओं से मुक्त हो गये और सभी इच्छित कार्य पूर्ण हुए। मनुष्यों को इस मणि के दर्शन भी दुर्लभ होते हैं।
कौस्तुभमणि– कौस्तुभमणि का रंग लाल कमल के समान होता है। यह क्षत्रिय वर्ण की है और इसके स्वामी भगवान विष्णुजी हैं। यह करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान हैं। देवताओं तथा असुरों द्वारा समुद्र मंथन के समय निकले चौदह रत्नों में लक्ष्मी जी के साथ ही कौस्तुभमणि भी निकली। यह मणि रूप, गुण तथा तेज से शोभायमान थी।
लक्ष्मी ने तीनों देवों में भगवान विष्णु का सात्विक पाकर वरण किया तो लक्ष्मी जी के पिता समुद्र ने ब्राह्मण का वेश बनाकर भगवान को विधिपूर्वक कन्यादान किया और थाल को रत्नों से भरकर उस पर कौस्तुभमणि रखकर दहेज में दिया। चूँकि इस मणि में अत्यधिक तेज था, अत: लाल रंग तथा क्षत्रिय वर्ण की इस कौस्तुभमणि से भगवान विष्णु का तेज और भी बढ़ गया। मनुष्यों को इसका भी दर्शन दुर्लभ है।
स्वर्गलोक की इन चारों मणियों की कथा सुनाने के पश्चात महर्षि पराशर ने कहा- हे राजन, इन चारों मणियों से सम्बंधित समस्त बातें बताने के बाद शिवजी ने पार्वती जी से कहा कि इन मणियों की परछाई भी जिन देवताओं और मनुष्यों पर पड़ जाए वे बहुत भाग्यवान होते हैं।
मणियों के सम्बन्ध में सुनकर पार्वती जी ने कहा- हे नाथ! कृपया पाताल लोक की सर्पमणियों के सम्बन्ध में भी कुछ बताएं और वह मनुष्यों को किस प्रकार प्राप्त हो सकती हैं।
 
 
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