Published By:धर्म पुराण डेस्क

भगवान के नाम की महिमा अपार है, अपरिमित है

वाणी के द्वारा उसकी महिमा स्वयं भगवान भी नहीं बता सकते, तब दूसरा तो बतलायेगा ही क्या ? जैसे खेत में बीज किसी भी प्रकार से बोया जाय, उससे लाभ ही लाभ है, इसी प्रकार भगवान के नाम का जाप किसी भी प्रकार से किया जाए, उससे लाभ ही लाभ है। 

श्रीमद्भागवत में बताया गया है- 

सांकेत्यं पारिहास्यं वा स्तोभं हेलनमेव वा। 

वैकुण्ठनामग्रहणमशेषाघहरं विदुः॥ 

पतितः स्खलितो भग्नः संदष्टस्तप्त आहतः। 

हरिरित्यवशेनाह पुमान्नार्हति यातनाम्॥

'महात्मा पुरुष यह बात जानते हैं कि चाहे पुत्रादि के संकेत से हो, हंसी से हो, स्तोभ (गीत के आलाप के रूप)- से हो और अवहेलना या अवज्ञा से हो, वैकुण्ठ भगवान का नामोच्चारण सम्पूर्ण पापों का नाश कर देता है। 

जो मनुष्य ऊँचे स्थान से गिरते समय, मार्ग में पैर फिसल जाने पर, अंग-भंग हो जाने पर, सर्पादि द्वारा डँसे जाने पर, ज्वरादि से संतप्त होने पर अथवा युद्धादि में घायल होने पर विवश होकर भी 'हरि' (इतना ही) कहता है, वह नरकादि वे किसी भी यातना को नहीं प्राप्त होता ।' फिर यदि नाम का जप मनसे किया जाय तो उसकी बात ही क्या है ? क्योंकि मानसिक जप की विशेष महिमा बतायी गयी है ।

नाम जप की महिमा को सुंदरता से व्यक्त किया है। आध्यात्मिक अनुभवओं और शास्त्रों में, भगवान के नाम का जप एक अत्यंत पावन और शक्तिशाली साधना मानी जाती है। यह न केवल मानव के मानसिक और आत्मिक स्थिति को सुधारने में मदद करता है, बल्कि उसकी आत्मिक साधना को भी गहराई से बढ़ावा देता है.

नाम का जप अनेक तरीकों से किया जा सकता है, और यह सचमुच अपनी आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ने का एक अद्वितीय और सार्थक तरीका है। 

भगवान के नाम का जप एक आध्यात्मिक प्रार्थना और मेधाता है जिसमें भगवान के नाम को एकाग्रचित्त से पुनः और पुनः मन में चित किया जाता है। यह एक पूजना या ध्यान की तरह किया जा सकता है जिसमें व्यक्ति भगवान के नाम की जाप में लीन हो जाता है और उसके विचारों को शांत और ध्यानमग्न बनाता है।

भगवान के नाम का जप अनेक धार्मिक परंपराओं में प्रचलित है, जैसे कि 'ओम' या 'हरि' इत्यादि. इसका मुख्य उद्देश्य भगवान के साथ आंतरिक संवाद में आना और आत्मा को दिव्यता की ओर प्रवृत्त करना होता है. यह आध्यात्मिक अंश ने और सांत्वना प्रदान कर सकता है और जीवन को ध्यान, शांति और स्पष्टता की ओर ले जा सकता है.

भगवान के नाम का जप विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है, जैसे कि मंत्र जप, ध्यान, जाप रोजाना, या समय-समय पर जप, आदि। इसका मुख्य उद्देश्य भगवान की शरण में जाने और उसके प्रति प्रेम और भक्ति व्यक्त करना होता है। यह आत्मिक विकास और आंतरिक शांति के लिए एक उपयोगी साधना हो सकता है।

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