Published By:अतुल विनोद

शांति का महान लक्ष्य, वृत्तियों पर लगाम और मन पर कंट्रोल का अध्यात्म विज्ञान- अतुल विनोद..

शांति का महान लक्ष्य, वृत्तियों पर लगाम और मन पर कंट्रोल का अध्यात्म विज्ञान- अतुल विनोद..

इस दुनिया में शांति हासिल करना एक बड़ा लक्ष्य हो गया है|  सब कुछ है लेकिन शांति नहीं है? इसलिए शांति की कीमत इतनी ज्यादा है? शांति के लिए आज हम सब कुछ दाव पर लगा सकते हैं| क्योंकि जिन चीजों से शांति की उम्मीद थी उनसे शांति मिली नहीं,  अब शांति की तलाश हर ओर है लेकिन शांति की किरण अंधेरे में कहीं गुम हो गई है|

भागदौड़ आपाधापी, टेंशन, तनाव, अवसाद सब का कारण शांति का ना होना है| इसलिए विवेकानंद शांति को शक्ति की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति बताते हैं| अशांति पैदा करना कोई बड़ी बात नहीं है| जीवन के किसी भी पहलू के तार हिलाने भर की देर है और अशांति का साम्राज्य स्थापित हो जाता है| 

जिस भी दिशा में आप थोड़ी सी हलचल मचाएंगे वहां अशांति यानी गतिशीलता जाएगी|  रिश्तो में अपशब्द का एक छोटा सा पत्थर मारो, रिश्ते का बड़ा समुंदर कुछ मिनट में अशांति की बड़ी-बड़ी लहरें पैदा करने लगेगा, एक छोटा सा व्यंग्य, छोटी सी असहज क्रिया  रिश्ते के समंदर में तूफ़ान पैदा कर सकती हैं| 

अच्छा भला करियर एक छोटी सी गलती से डगमगाने लगता है| जरा सी लापरवाही  नौकरी, बिजनेस या प्रोफेशन में हलचल मचा देती है| 

जीवन के किसी भी पहलू में अशांति आसानी से मौजूद है| मानो अशांति आपका इंतजार ही कर रही है| इसीलिए शांति को बहुत बड़ी उपलब्धि कहा गया है| शांति यानि ठहराव, सरलता, सहजता, निर्मलता, संतुष्टि, तृप्ति, प्रेम | अशांति यानी हलचल, कठिनाई,  असहजता, संतुष्टि, तनाव, दबाव, क्रोध| 

मनुष्य की पांच इंद्रियां 5 घोड़े हैं|  थोड़ी सी ढील दो ये घोड़े भागने लगते हैं| एक ही पल में पूरे जीवन में हलचल मचा देते हैं तूफान ले आते हैं, अस्थिरता फैला देते हैं| इन घोड़ों की लगाम थाम के रखने वाला व्यक्ति ही ताकतवर है| ताकत लगती है उनको थामने में ढीला करने में नहीं|  

इसीलिए स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि शांत मनुष्य बेहद शक्तिशाली है| शांत मनुष्य ढीला ढाला मंदबुद्धि या आलसी नहीं है, शांत मनुष्य से ज्यादा  सामर्थ्य किसमें है जो मन की लहरों को अपने कंट्रोल में रखता है|

शांति चेतना की सहज अवस्था है| चित्त उस स्प्रिंग की तरह हैं जो सहज अवस्था में ही रहना चाहता है| स्प्रिंग जैसे ही दबाव मुक्त होती है,वापस अपनी सहज अवस्था में आ जाती है|  इसी तरह से हमारी चेतना भी सारे दबाव, तनाव और खिंचाव से मुक्त होकर सहज और शांत हो जाना चाहती है| चेतना रूपी इस स्प्रिंग को इंद्रियां बाहर खींचते रहती हैं इसलिए वो तनाव में या अशांति में रहती है|

योग क्या करता है योग इसी तरह से चेतना को मुक्त करता है| इंद्रियों के तनाव के कारण चित्त अलग-अलग फॉर्म में तब्दील हो जाता है|

ये चित्त अवस्था-भेद से मुख्यतः 5 रूप धारण करता है:

क्षिप्त (Insensitive), मूढ़ (foolish), विक्षिप्त (deranged), एकाग्र (concentrated), निरूद्ध (detached)

1- क्षिप्त(Insensitive) स्टेट में मन कई दिशाओं में फैला होता है, सुख और दुख में उलझा रहता है| मन सोचता है कि उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य ही सब कुछ है| वो कर्म के बल पर अपने जीवन को बदल देना चाहता है| जिद करके अपने अनुसार स्थितियों को ढालने की कोशिश करता रहता है| इसलिए वो चारों तरफ उलझने खड़ी कर लेता है और यह उलझने चुनौतियां, एंबीशन, टारगेट्स, ड्रीम व्यक्ति को क्षिप्त(Insensitive) बना देता है| ये तरह की राजसिक अवस्था है| 

2- मूढ़(foolish,feather pate, juggins, lummox, prune, rattle brain, bullhead, featherhead) इस स्थिति में व्यक्ति तमोगुण से भर जाता है और वो दूसरों का बुरा करने से भी नहीं हिचकिचाता| ऐसा व्यक्ति गलत सही में अंतर नहीं कर पाता| गुस्से और ईगो के  अंदर फंसा हुआ ये व्यक्ति दूसरों के साथ खुद का जीवन भी खराब कर लेता है|

3- विक्षिप्त(madman, neurosis, kook, loony)- ये एक अलग तरह का होता है, मूड में लगातार स्विंग आता है, कभी स्थिर हो जाता है कभी अस्थिर हो जाता है| कभी धार्मिक बन जाता है और कभी अधार्मिक| चित्त कभी-कभी एकाग्र भी हो जाता है और उसमें सत्व गुण का प्रभाव दिखाई देता है|

4-एकाग्र(Concentrated)- जब योग में एकाग्रता की अवस्था आती है, तो जागते और सोते  व्यक्ति लंबे समय तक मनचाही स्थिति में खुद को स्थिर रख सकता है| ये अवस्था सत्व गुण प्रधान होती है|

5- निरुद्ध(restrained,detached)- बहुत अच्छी अवस्था होती है जब चित्त सतोगुण से भर जाता है और मन खुद को भूल जाता है| सभी वृत्तियां काबू में आ जाती हैं|

चित्त की 5 वृत्तियाँ(Instincts) होती हैं, इन्हीं के कारण वो अलग-अलग स्टेज में पहुंचता है|

प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति..

1- प्रमाण हम चीजों स्थितियों और अवस्थाओं को अलग-अलग माध्यम से जानते हैं, ये जो जानने की प्रक्रिया है जो पढ़ने, सुनने, देखने ये समझने से घटित होती है उसको प्रमाण कहते हैं| प्रमाण सच पर आधारित होता है| इसलिए प्रमाण हमें सही रास्ता दिखाता है|

2- विपर्यय(antithesis,contrariety): अक्सर हम गलत सूचनाओं के शिकार हो जाते हैं|  हमारा गलत नजरिया या गलत धारणा भी हमें सच को झूठ और झूठ को सच समझने में भूमिका निभाते हैं| और ये मिथ्या ज्ञान ही, अविद्या, दुर्बुद्धि ये समझ की भूल कहलाती है|  और इसी अज्ञान के कारण 5 तरह के क्लेश पैदा होते हैं जिनमें राग द्वेष ईर्ष्या छल कपट शामिल है|

3- विकल्प(uncertainty) हमारा असमंजस, कल्पनाएं, झूठी धारणाएं, अज्ञान, असमंजस का कारण बनता है, इसलिए कई बार हम काल्पनिकता का शिकार हो जाते हैं, एक झूठा संसार बना लेते हैं और उनमें उलझ कर रह जाते हैं, इसे ही विकल्प कहा जाता है|

4- निद्रा(dormancy)- जब भी कोई व्यक्ति आलस में पड़ जाता है, अकर्मण्य हो जाता है, तो हम उसे कहते हैं कि ये सोया हुआ है| अपनी वास्तविकता को न पहचान कर पड़े रहना ही निद्रा है| निद्रा को नींद भी कहा जाता है जब हम नींद में होते हैं तब भी हमारा चित्त सक्रिय होता है और सपने के रूप में विचारों को विजुलाइज करता रहता है|

5- स्मृति(remembrance) हमारे अंदर इंफॉर्मेशन का बहुत बड़ा डाटा मौजूद है| कई जन्मों का डेटा स्टोर है| ऐसी यादें इसमें मौजूद है जो भुलाई नहीं जा सकी है| हमारी यादें, अनुभव  ही कई बार सतह पर आकर दुख का कारण बनते हैं| इन पांच वृत्तियों के कारण ही चित्त भटकता रहता है| पास्ट-प्रेजेंट से मिलने वाली इंफॉर्मेशन और उनका क्लासिफिकेशन ही वृत्तियाँ हैं| 

योगस्थ व्यक्ति के जीवन में  स्वतः: यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम, धारणा और ध्यान होता है तो वृत्तियाँ कंट्रोल में आने लगती हैं| इसके उलट यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम, धारणा और ध्यान का अभ्यास भी वृत्तियों को कंट्रोल करता है|

इन व्यक्तियों के कंट्रोल से ही शांति का अनुभव होने लगता है| और ये जब पूरी तरह से निरुद्ध हो जाती है तब परम शांति मिलती है| शांति की राह में  शारीरिक और मानसिक बाधाएं, आलस, अकर्मण्यता, संशय, संदेह, प्रमाद, भ्रम, डर, आशंका, चंचलता रोड़ा बन जाते हैं| 

मन को चारों तरफ से हटाकर एक विषय पर टिकाने, अच्छी बातें, अच्छे व्यक्ति, सत्संग,  गुरु, अभ्यास से स्थिर किया जा सकता है|

जैसे ही लहरें शांत हो जाती है और पानी स्थिर हो जाता है वैसे ही हम नदी, तालाब की तलहटी को देख पाते हैं। मन के बारे में भी ठीक ऐसा ही समझें। जब ये शांत हो जाता है तब हम देख पाते हैं कि अपना असल स्वरूप क्या है फिर हम उन तरंगों के साथ अपने आप को एकरूप नहीं कर लेते बल्कि अपने स्वरूप में अवस्थित रहते हैं।


 

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