 Published By:अतुल विनोद
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वेदों में शरीर को ब्रह्मांड क्यों कहा गया है? क्या है शरीर के अंदर यूनिवर्स होने का विज्ञान? P अतुल विनोद वेद और उपनिषद कहते हैं कि जो ब्रह्मांड में है वो शरीर में है|
क्या आध्यात्मिक साधनाओं से भी शरीर में ही ब्रह्मांड को देख सकते हैं| ये विडंबना है कि जिस ज्ञान और ज्ञानी को हम बाहर ढूंढते हैं वो हमारे अंदर मौजूद है| दान, पुण्य, हवन, जप, तप, व्रत और बाहर के तीर्थ दर्शन का लक्ष्य भी अंदर के तीर्थ के दर्शन करना है| What does Hinduism say about the universe and God? शिव संहिता कहती है शरीर के अंदर ही सप्तदीप, नदी, सागर, पर्वत, क्षेत्रपाल, ऋषि, मुनि, ग्रह, ग्नक्षत्र, सिद्ध, सिद्धपीठ मौजूद हैं|
आमतौर पर वैज्ञानिक सोच रखने वाले हम सभी लोग इन बातों पर यकीन नहीं करते| कहा तो यहां तक जाता है कि शरीर के अंदर भूलोक, भुवर्लोक,स्वर्गलोक, महरलोक, जनलोक, तपलोक और सत्य लोक जैसे 7 लोक हैं| साथ ही तल,तलातल, महातल, रसातल, सुतल, वितन और पाताल, ये सात पाताल लोक है|
मूलाधार से लेकर सहस्त्रार तक 7 लोको की बात कही गई है मूलाधार को भूलोक, स्वाधिष्ठान को भुवर्लोक, मणिपुर को स्वर्गलोक, अनाहत को महरलोक, विशुद्ध को जनलोक, आज्ञा चक्र को तपलोक और सहस्त्रार को सत्य लोक कहा गया है| शरीर के बीच से ऊपर तक 7 लोक बताए गए हैं और पैरों की शुरुआत (कटि प्रदेश) से नीचे पांव के तलवे तक सात पाताल लोक बताए गए हैं| भारतीय सनातन साहित्य में लिखी बातों को वैज्ञानिक उपकरणों से प्रूफ करना आसान नहीं है|
लेकिन ध्यान की गहन स्टेज में इनकी सचाई का एक्सपीरियंस किया जा सकता है| निर्वाण तन्त्र कहता है शरीर में सात सागर हैं। मूत्र में खारे जल का समुद्र है, शुक्र में दूध का क्षीर सागर है, मज्जा में दही का समुद्र है, मेद घृत का सागर, नाभि देश के रक्त में इक्षु-रस का मीठा समुद्र है। इस तरह शरीर में ये सप्त सागर हैं। शरीर में अष्ट कुलाचल पर्वत भी हैं इदानीम्पर्वत अष्टौ च कथ्यन्ते शृणु यत्नतः। शरीर में ही सर्वतीर्थ और देवताओं का स्थान हैं|
शरीर में गङ्गा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, सिन्धु, कावेरी, चन्द्रभागा, वितस्ता और इरावती नदियां हैं। शरीर में बहत्तर हजार नाड़ियां हैं, वे सब नदी और नदी रूप से जहां-तहां बहती रहती हैं। ऐसे ही शरीर में पन्द्रह तिथि, सात वार और सत्ताईस नक्षत्र, राशि तथा अट्ठाईस योग, सात करण, ग्रह-उपग्रह समग्र नक्षत्र मण्डल सह तैंतीस कोटि देवता, सब अंगों में जहां-तहां अपने-अपने स्थान में निवास करते हैं। “
पीठानि सर्वाणि देहमध्ये स्थितानि च” शिव संहिता शरीर में पंच प्राण, मन, नाद, बिन्दु, कला, ज्योति तथा षट् चक्र सब कुछ देह में मौजूद हैं। शरीरस्थ हृदयाकाश में अनन्त गन्धर्व, किन्नर, यक्ष, विद्याधर, अप्सरा, गुह्यक जैसे अनेक तरह की जाति के देवता निवास करते हैं और अनेक प्रकार के तीर्थ इस में ही हैं।
The human body as a microcosm of the universe योग में प्राण शक्ति के जरिए इन सभी स्थानों को देखने की बात कही गई है| प्राण से शरीर के अंदर मौजूद ब्रह्मांड के सूक्ष्म स्वरूप का अनुभव तो किया जा सकता है लेकिन परमात्मा का नहीं| क्योंकि परमात्मा प्राण से भी परे है|
वास्तव में हम बाहर तब तक भटकते रहते हैं जब तक हमें अपने अंदर के ब्रह्मांड का नॉलेज नहीं होता| हम बाहर के अंधेरे को प्रकाश समझते हैं और अंदर के प्रकाश को अंधेरा| आश्चर्य करने वाली बात नहीं है| विज्ञान के नजरिए से देखें तो भी ये बातें गलत नहीं| साइंस कैसे शरीर के छोटे से कतरे से किसी जीव जंतु का क्लोन तैयार कर लेता है?
“A Human Being Is a Microcosm” मनुष्य के स्पर्म का साइज कितना होता है? आंखों से भी ना नजर आने वाले उस बीज से हुबहू वैसा ही व्यक्ति खड़ा हो जाता है| उसमें ठीक उसी तरह के गुणधर्म होते हैं जैसे उसके माता पिता और पूर्वजों के हैं| यहां तक की आदतें भी मिलती हैं|
साधारण सा विज्ञान है बीज में वृक्ष का ब्लूप्रिंट समाहित है| साइंस कहता है कि हम सब उसी डार्क, इनविजिबल और विजिबल मैटर से बने हैं जो सृष्टि के निर्माण से पहले मौजूद है| यानी हम सब ब्रह्मांड का सूक्ष्म बीज है| जैसे हमारे बीज में हमारे पूरे अस्तित्व का ब्लूप्रिंट समाहित होता है वैसे ही हम भी बीज रूप में संपूर्ण ब्रह्मांड को अपने शरीर में ब्लूप्रिंट,छाया और अंश रूप में साथ लेकर चलते हैं| यही वेद और उपनिषदों में कहा गया है|
इसलिए शिव संहिता में कहा गया है कि हम जीव बाहर से है लेकिन अंदर से शिव है| शिव कहते हैं कि तुम मुझे बाहर नहीं खोज सकते| अंदर के शिव को जानने के लिए हमें अपनी चेतना का विकास करना पड़ेगा| कुंडलिनी को उद्बोधित करना पड़ेगा| वैसे तो हमारे शरीर में 72000 नाड़ियों के रूप में अनेक नदियां हैं लेकिन 3 नदियां महत्वपूर्ण हैं|
इसी कुंडलिनी से इड़ा नाडी रूपी भागीरथी गंगा, पिंगला नाड़ी रूपी यमुना और सुषुम्ना नाड़ी रूपी सरस्वती का संगम होगा| इन तीनों नदियों के उद्गम स्थल मूलाधार से यात्रा शुरू होगी| इडा पिंगला रूपी गंगा यमुना बाहर बहती हैं| सुषुम्ना नामक सरस्वती नदी अंदर ही अंदर उद्गम स्थल(STARTING POINT) से सहस्रार तक पहुंचती है| मन और प्राण की यात्रा मूलाधार से शुरू होकर तीनों नदियों के संगम स्थल सहस्त्रार पर खत्म हो जाती है| इस पूरी यात्रा में तीर्थ, समुद्र, पीठ, पीठाधीश्वर, देवी देवता मिलते रहते हैं| हमारा लक्ष्य सबसे ऊपर मौजूद त्रिवेणी, शिवतीर्थ पर पहुंचकर स्नान करना है| शिव तीर्थ में स्नान करते ही मन और प्राण से आत्मा मुक्त हो जाती है और हम मोक्ष की अवस्था में आ जाते हैं|
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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