यहां भगवान अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजित हैं। द्वापर के बाद भगवान श्री कृष्ण जगन्नाथ के रूप में पुरी में निवास करते हैं। यहां पर लाल ध्वज हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। ये अपने आप में एक हैरतअंगेज बात है। इस ध्वज को लोग देखते ही रह जाते हैं।
यह सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर हैं। हैरान कर देने वाली बात यह है कि मुख्य गुंबद की परछाई दिन के किसी भी समय दिखाई नहीं देती। पुरी में सुदर्शन चक्र भी मौजूद है। इसे नीलचक्र कहा जाता है। यह अष्टधातु से निर्मित किया गया है। यह परम पावन है।
यहां हवा जमीन से समुद्र की ओर जाती है यह भी अपने आप में एक अचंभा है। यहां की गुंबद के ऊपर पक्षी नहीं उड़ते, कहते हैं मंदिर के ऊपर से विमान को नहीं उड़ाया जा सकता। अन्य मंदिरों में आप पक्षियों को गुंबद पर बैठे हुए देखेंगे लेकिन यहां के शिखर पर कोई पक्षी नहीं बैठता।
यहां दुनिया का सबसे बड़ा रसोइ घर है। यहां मंदिर के बाहर एक कदम रखते ही आपको समुद्र की ध्वनि सुनाई देगी, लेकिन मंदिर के अंदर समुद्र से पैदा हुई कोई ध्वनि नहीं सुनाई देती।
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति स्वरूप भी बदलती है। मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई है। ये 12 साल में एक बार नवीन कलेवर धारण करती हैं।
आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर पधारते हैं। अपनी मौसी के घर भगवान 8 दिन रहते हैं। आषाढ़ शुक्ल दशमी को यात्रा वापस होती है।
भगवान श्रीकृष्ण की देह का एक हिस्सा यहां मौजूद है। कहते हैं वह दिल के रूप में यहां पर लकड़ी की मूर्ति के अंदर मौजूद है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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