Published By:धर्म पुराण डेस्क

"राजा का अभिमान और संन्यासी का सबक: अहंकार की पराजय"

कहानी:

एक समय की बात है, एक समृद्धि और गर्व से भरपूर राज्य में एक गर्वित और अभिमानी राजा था। वह मानता था कि राजा होने से वह भगवान के समकक्ष है, क्योंकि वह अपने प्रजा का पालन-पोषण करता है। घमंड दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था।

एक दिन, वहाँ एक विनीत संन्यासी पहुँचा। संन्यासी की साधारणता और ज्ञान सभी के सामने थे। राजा, गर्व भरे हुए, संन्यासी का ज्ञान परीक्षण करने का निर्णय लिया। उसने सन्यासी से पूछा, "हे संन्यासी, मेरे राज्य में कितने कीड़े-मकोड़े हैं?"

सन्यासी, एक हल्की सी मुस्कान के साथ, ने उत्तर दिया, "महान राजा, अगर आपको नहीं पता कि आपके राज्य में कितने कीड़े-मकोड़े हैं, तो इनका कौन पालन-पोषण करता है?"

राजा इस सवाल पर चौंक गए और खामोश रह गए। सन्यासी ने जारी रखा, "मुझे बताइए, अगर ये कीड़े-मकोड़े आपके राज्य में नहीं होते, तो कौन इनकी देखभाल करता?"

राजा ने गर्व से उत्तर दिया,, तो कौन इनकी देखभाल करता?"

राजा ने गर्व से उत्तर दिया, "भगवान ने ही इन कीड़ों की देखभाल करने का काम किया है, संन्यासी!"

संन्यासी की आंखों में एक गहरा संवेदना दिखाई दी, और वह बोले, "हां, राजा, आप सही कहते हैं। यही भगवान ने हम सभी की देखभाल करने का काम किया है। आपके बगीचे में जो कीड़े-मकोड़े हैं, वह भगवान की सृष्टि हैं।"

राजा को यह बात समझ में आई कि वह गर्व और अहंकार से भरकर, भगवान की सृष्टि को नकारने का कोई अधिकार नहीं रखता था। उसका अभिमान टूट गया और वह संन्यासी के उपदेश को समझ गया।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि अभिमान और गर्व अक्सर हमारे बुद्धि को अंधाधुंध कर देते हैं, हम अकेले इस दुनिया में नहीं हैं। हमें सभी जीवों के साथ सहमति और समरसता की दिशा में चलना चाहिए, क्योंकि यही हमारे और हमारे पर्यावरण के लिए बेहतर है। 

भगवान की सृष्टि की सराहना करने का तरीका है, और यह हमें हमारे अभिमान से दूर ले जाता है, हमें एक बेहतर और उदार व्यक्ति बनाता है।

इसी तरह से, हमें समय-समय पर अपने अहंकार को चुनौती देनी चाहिए और सभी के साथ समरसता और प्रेम में रहने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि यही हमारे जीवन को सच्चे आनंद और संतोष से भर देता है।

धर्म जगत

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