Published By:धर्म पुराण डेस्क

भगवान नित्य हैं और उनका अंश जीवात्मा भी नित्य है तथा भगवान के साथ जीव का सम्बन्ध भी नित्य है।

भगवत प्राप्ति के सब मार्ग (योगमार्ग, ज्ञानमार्ग, भक्तिमार्ग आदि) भी नित्य हैं। यहाँ 'अव्ययम्' पद से भगवान कर्मयोग की नित्यता का प्रतिपादन करते हैं। 

भगवान नित्य हैं और उनका अंश जीवात्मा भी नित्य होता है, और इसलिए भगवान के साथ जीव का सम्बन्ध भी नित्य है। इसलिए भगवत्प्राप्ति के सभी मार्ग (योगमार्ग, ज्ञानमार्ग, भक्तिमार्ग आदि) भी नित्य होते हैं। यहाँ 'अव्ययम्' शब्द से भगवान कर्मयोग की नित्यता का प्रतिपादन करते हैं।

भगवान नित्य होते हैं, अर्थात् वे सदा अस्तित्व में होते हैं और उनका अंश जीवात्मा भी नित्य होता है, अर्थात् जीवात्मा साधारण जन्म-मरण के संसार से मुक्त होकर सदैव भगवान के साथ रहता है। जीवात्मा अपनी मूल स्वरूपता में भगवान का अंश होता है और भगवान के साथ अनादि से नित्य संबंध में रहता है।

भगवान के साथ जीव का सम्बन्ध नित्य होने का अर्थ यह है कि जीवात्मा हमेशा भगवान के परम प्रेम और आनंद का अनुभव करता रहता है। यह सम्बन्ध कभी टूटता नहीं है और न कभी अभाव में होता है। जीवात्मा अपने स्वरूप को भगवान के स्वरूप से अभिन्न जानता है और उसे अपनी स्वाभाविक गोपनीयता और आत्मीयता का अनुभव होता है।

इसलिए, भगवत्प्राप्ति के सभी मार्ग (योगमार्ग, ज्ञानमार्ग, भक्तिमार्ग आदि) नित्य होते हैं। यह मार्ग भगवान की प्राप्ति और उसके साथ नित्य संबंध में जीवात्मा को सहायता प्रदान करते हैं। ज्ञानमार्ग में जीवात्मा अपने आत्म स्वरूप को पहचानता है, योगमार्ग में वह अपनी चित्तवृत्तियों को नियंत्रित करके अपने स्वरूप को प्रकट करता है, और भक्ति मार्ग में वह भगवान के प्रेम और सेवा में अपने स्वरूप को व्यक्त करता है। इन मार्गों के माध्यम से जीवात्मा अपने स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त करता है और नित्य संबंध में भगवान के साथ रहता है।

इस प्रकार, भगवान के साथ जीव का नित्य सम्बन्ध और भगवत्प्राप्ति के नित्य मार्गों के माध्यम से जीवात्मा भगवान के परम प्रेम और आनंद का अनुभव करता रहता है।

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