Published By:धर्म पुराण डेस्क

गुरुओं की गत न्यारी...

एक बार किसी के घर एक संतश्री का पदार्पण कार्यक्रम था। आसपास के लोगों को भी घरवालों ने बुला रखा था। उसमें से पड़ोस का एक ऐसा लड़का भी था, जो अभी-अभी भारतीय प्रशासनिक सेवा (I. A. S.) की परीक्षा देकर आया था। उस लड़के को गर्व था: 'मैं कुछ जानता हूँ।' उसने बाबाजी से पूछा: "बाबाजी ! कुछ बताइये।"

बाबाजी ने कहा: 'बेटा! प्यार से 'राम-राम' जपा करो।' लड़का बोला: "यह तो हम जानते हैं। हमारे जैसे पढ़े-लिखे लोगों के लिए कुछ और बताइये महाराज!"

बाबाजी दिखावटी गुस्से में बोले: "तेरे जैसे गधे क्या जानते हैं?"

उस लड़के का गर्व तो चूर-चूर हो गया। अब दूसरों की तो हिम्मत नहीं हुई कि कुछ पूछें। थोड़ी देर बाद बाबाजी ने कहा: "क्यों चुपचाप बैठे हो? मौनी बाबा हो क्या? कुछ पूछो तो हरिचर्चा हो जाय।"

तब एक सज्जन ने कहा: "बाबाजी! यह लड़का कलेक्टर होने वाला है। हमने ही आपके दर्शन के लिए इसे बुलाया था। उसने आपसे पूछा और आपने बोल दिया: 'तेरे जैसा गधा क्या जानता है?' यह सुनकर हम सब चुप हो गये।"

महाराज अनजान से होकर बोले: "भाई! मैंने तो कुछ नहीं कहा।"

तब वह लड़का बोला: "महाराज ! आपने अभी तो मुझे गधा कहा।"

बाबाजी ने कहा: ‘अरे ! तू 'गधा' शब्द को जितना जानता है उतना क्या राम-नाम को जानता है? 'गधा' शब्द को सुनने से तेरा रोम-रोम आग बबूला हो गया। वैसे ही 'राम-राम' सुनने से तेरा रोम-रोम पुलकित हो जाना चाहिए था पागल!

तू बोलता है: 'मैं राम-नाम जानता हूँ।' कहाँ जानता है? मैं तो तुझे अनुभव करा रहा था भैया ! बाकी मैं तुझे गधा क्यों कहूँ? और तू यह भी समझ ले कि गधे में भी तेरी ही आत्मा है, तू चिंता क्यों करता है?"

महापुरुष लोग, संत लोग हमें समझाने के लिए क्या-क्या युक्तियाँ अपनाते हैं! उन्हें समझ पाना हमारी सीमित बुद्धि से बाहर की बात है। हमारे अहंकार को मिटाने के लिए, हमें जन्म-मरण के पाश से छुड़ाने के लिए वे कैसी-कैसी अटकलें लगाते हैं ! तभी तो कबीरजी कहते हैं:

सतगुरु मेरा शूरमा, करे शब्द की चोट। 

मारे गोला प्रेम का, हरे भरम की कोट॥


 

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