Published By:बजरंग लाल शर्मा

सर्वत्र ब्रह्म की सत्ता….     

सर्वत्र ब्रह्म की सत्ता….            

" कोई  कहे  ए  कछुए  नाही, तो  ए  भी  क्यों  बनी  आवे ।

जो यामें  ब्रह्म  सत्ता  न होती, तो अधखिन  रहने  न पावे ।। "                  

सभी कहते हैं कि यह स्वापनिक  संसार भ्रम है, असत्य है, मिटने वाला है, इसका कोई अस्तित्व नहीं है। यदि यह कुछ भी नहीं है, तो फिर यह दिखाई क्यों देता है । इसलिए यह कहना कि यह कुछ भी नहीं है, सही नहीं है। जो कुछ भी नहीं होता है, उसको दिखाई भी नहीं देना चाहिए। अतः इस संसार का अस्तित्व तो है तथा इसको किसी ने बनाया है ।

कुछ लोग कहते हैं कि संसार सत्य है क्योंकि यह दिखाई देता है । कुछ लोग कहते हैं कि संसार असत्य हैं क्यों कि यह मिट जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि संसार सत्य भी नहीं है और असत्य भी नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि संसार सत्य भी है और असत्य भी है, यह दोनों का मिश्रण है।

कुछ लोग यह कहते हुए की सत्य और असत्य एक जगह नहीं रह सकते हैं क्योंकि सत्य प्रकाश स्वरूप है और असत्य अंधकार स्वरूप है। संत एवं शास्त्र यह कहते हैं कि यह संसार स्वप्न है और स्वप्न ही एक ऐसी अवस्था है जिसमें सत्य और असत्य एक साथ रह सकते है ।

वे कहते हैं कि असत्य रूपी संसार को खड़ा करने के लिए सत्य का सहारा लेना पड़ता है, अगर इसमें सत्य नहीं होता तो असत्य दिखाई नहीं देता ।

यह स्वप्न रूपी संसार, प्रकृति (माया) और  पुरुष (ब्रह्म) के  सहयोग से  बना है , माया असत्य है तथा ब्रह्म सत्य है। दिखाई देने वाला संसार तो माया का अंग है तथा इसमें जो चेतन है, वह ब्रह्म का अंश है। इस प्रकार संसार में सर्वत्र ब्रह्म की सत्ता है, यदि ब्रह्म की सत्ता न होती तो एक क्षण के लिए भी इसका अस्तित्व नहीं रहता ।

जिस प्रकार सूर्य आसमान में रहता है और वह  तालाब में  प्रतिबिंबित  होता है , तालाब वाला सूर्य असत्य है लेकिन उसमें भी सूर्य की कुछ शक्ति होती है । जिसके फल: स्वरूप तालाब के अंदर के जीव उस प्रतिबिंबित सूर्य के प्रकाश में अपना कार्य करते हैं । तालाब में सर्वत्र असली सूर्य की सत्ता है ।

" कोई  कहे  ए  सबे  सुपना, न्यारा  खाबंद  है  और ।

तो ए  सुपना  जब  उड़  गया,  तब  खाबंद  है  किस  ठौर ।। "               

कई मानते हैं कि यह समग्र संसार स्वप्न ही है । इसका  स्वामी  तो  इससे भिन्न कोई दूसरा ही है । यदि यह सत्य मान ले , तो प्रश्न यह उठता है कि जब स्वप्न मिट जाएगा , तो जगत के स्वामी का स्थान कहां होगा ?

स्वप्न की रचना करने वाला स्वामी सत्य है तथा वह अपनी सत्ता  के  रूप में सर्वत्र व्याप्त है ।

बजरंग लाल शर्मा,

              


 

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