Published By:बजरंग लाल शर्मा

सृष्टि रचना का कारण….. 

 सृष्टि रचना का कारण…..              

" सुध  नहीं  सुख - दुख की, न सुध बिरह मिलाप ।         

न सुध बुजरक अरस की,  खबर न खाबंद आप ।।

साहेब बन्दे की सुध नही, छोटा  बड़ा क्यों  कर ।        

न  सुध  एक  न  दोए की, ना सांच  झूठ खबर ।।

न  सुध  दोस्त न  दुश्मन, ना  सुध नफा नुकसान ।         

न  सुध  दूर  नजीक  की, न  सुध  कुफर इमान ।। "                

महामति प्राणनाथ जी कहते हैं कि - संसार की रचना का कारण है, क्यों कि बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता है। पहले यह मिटने वाली क्षर सृष्टि नहीं थी, केवल अक्षर पुरुष तथा अक्षरातीत पुरुष की दो प्रकार की अखंड सृष्टियाँ थी।                       

अक्षरातीत पुरुष के परमधाम में ब्रह्मात्माएँ आनंद मंगल से रहती थी उन्हें विरोधी स्थितियों का अनुभव नहीं था जैसे- सुख-दुख, विरह-मिलाप, मान-अपमान आदि।

उन्हें स्वामी का तथा परमधाम के ऐश्वर्य वैभव का एहसास भी नहीं था। उन्हें यह भी मालूम नहीं था कि सेवक और मालिक में क्या अंतर है, छोटा और बड़ा क्या होता है ।

परमधाम में सभी कुछ अद्वैत है। अद्वैत का तात्पर्य है- जहां द्वैत का भाव नहीं हो- जहां दो विपरीत अवस्थाएं नहीं हो। उन्हें यह भी पता नहीं था कि सच या झूठ क्या है ? मित्र कौन है ? शत्रु कौन है ? हानि क्या है ? लाभ क्या है ? दूर क्या है ? नजदीक क्या है ? विश्वास और अविश्वास क्या है ? इस प्रकार की विरोधी स्थितियों से वे अवगत नहीं थी।

" तिस वासते खेल दिखाइया, ए बात दिल में आन ।  

झूठ  निमूना  देखाए  के, रूहों होए  हक  पेहचान ।। " 

पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अक्षरातीत ने एक साथ इतने सभी भाव को मन में रख कर यह निश्चय किया कि इन ब्रह्म आत्माओं को द्वैत की सृष्टि दिखलाने हेतु विपरीत गुणों की स्थिति उत्पन्न की जाए ।           

जिससे इन सभी ब्रह्म आत्माओं को द्वैत जगत की अनुभूति प्राप्त हो तथा ये इस क्षर जगत की तुलना अपने परमधाम से कर सकें । इसलिये पूर्ण ब्रह्म परमात्मा ने झूठा नमूना का असत्य संसार दिखाकर इन आत्माओं को सत्य की परख कराई ।

" जित  दुख  कोई  जाने नहीं, होए अकेला सुख ।       

ए सुख लज्जत तब पाइए, जब देखिए कछु दुख ।।"                           

जहां कोई दुख को जानता ही ना हो केवल सुख ही सुख हो ऐसी स्थिति में सुख के आनंद की अनुभूति तभी प्राप्त हो सकती थी जब कुछ दुख देख लिया जाए।

बजरंग लाल शर्मा 

             


 

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