Published By:धर्म पुराण डेस्क

जीवन की बागडोर आपके हाथ में हैं, भाग्य के भरोसे ना रहे कर्म और पुरुषार्थ क्या है, पुरुषार्थ से कैसे कार्य सफल होते हैं?

जीवन की बागडोर आपके हाथ में ..

भाग्य ने जहां छोड़ दिया, वहीं रह गए और कहने लगे कि हम क्या करें, किस्मत साथ नहीं देती, सभी हमारे खिलाफ है, प्रतिद्वंद्विता पर तुले हैं, जमाना बड़ा बुरा आ गया है। यह मानव की अज्ञानता के द्योतक पुरुषार्थहीन विचार हैं, जिन्होंने अनेक जीवन बिगाड़े हैं। मनुष्य भाग्य के हाथ की कठपुतली है, खिलौना है, वह मिट्टी है, जिसे समय-असमय यों ही मसल डाला जा सकता है, ये भाव अज्ञान, मोह एवं कायरता के प्रतीक हैं।

अपने अंतःकरण में जीवन के बीज बोओ तथा साहस, पुरुषार्थ, सत्संकल्पों के पौधों को जल से सींचकर फलित-पुष्पित करो। साथ ही अकर्मण्यता की घास-फूस को छांट-कांट कर उखाड़ फेंको। उमंग उल्लास की वायु की हिलोरें उड़ाओ। आप अपने भाग्य के स्वयं निर्माता हैं। स्वयं जीवन को उन्नत या अवनत कर सकते हैं। 

जब आप सुख-संतोष और सुख आप के मुखमंडल पर छलक उठता है। जब आप दुखी, एकांत रहते हैं, तो जीवनवृत्त मुरझा जाता है और शक्ति का ह्रास हो जाता है। शक्ति की, प्रेम की, बल और पौरुष की बात सोचिए. संसार के श्रेष्ठ वीर पुरुषों की तरह स्वयं परिस्थितियों का निर्माण कीजिए। अपनी दरिद्रता, न्यूनता, कमजोरी को दूर करने की सामर्थ्य आप में है। बस केवल आंतरिक शक्ति प्राप्त कीजिए ।

पुरुषार्थ और कर्म का सम्बन्ध हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह दो ऐसे प्रमुख तत्व हैं जो हमें सफलता की ओर ले जाते हैं और हमें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता प्रदान करते हैं। जीवन की बागडोर तो हमारे हाथ में होती है, लेकिन पुरुषार्थ और कर्म हमें इस बागडोर को संभालने में सक्षम बनाते हैं। 

इस आर्टिकल में, हम पुरुषार्थ के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे और यह समझेंगे कि कर्म कैसे हमारे कार्यों को सफल बनाता है।

पुरुषार्थ क्या है?

पुरुषार्थ एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है "पुरुष का प्रयास" या "मेहनत"। यह मानव जीवन में अपनी क्षमताओं और संसाधनों का सदुपयोग करके अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करने का तात्पर्य रखता है। पुरुषार्थ जीवन में एक उच्चतम मूल्य होता है जो हमें सक्षम बनाता है कि हम अपने जीवन को संयमित रखें, अवसरों का उपयोग करें और सचेत रहें ताकि हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल हो सके।

पुरुषार्थ के तत्व-

संयमित मनोवृत्ति: सफलता के लिए, हमें अपने मन को संयमित रखना चाहिए। हमें अपनी इच्छाओं और मनोभावों का नियंत्रण करना चाहिए और सकारात्मक सोच को प्राथमिकता देनी चाहिए। संयमित मनोवृत्ति हमें स्वास्थ्य, स्थिरता, और धैर्य प्रदान करती है, जो सफलता के मार्ग में महत्वपूर्ण है।

उच्च स्तर का क्षमता विकास: पुरुषार्थ का महत्वपूर्ण तत्व है क्षमता विकास। हमें अपनी क्षमताओं को स्थायी रूप से विकसित करना चाहिए। इसके लिए, हमें नए कौशलों का अभ्यास करना, ज्ञान का अद्यतन करना, और स्वयं को सुधारने के लिए समय निकालना चाहिए। क्षमता विकास हमें नए और चुनौतीपूर्ण कार्यों को सम्पन्न करने की क्षमता प्रदान करता है।

प्रयास: पुरुषार्थ में अद्यतन और निरंतर प्रयास महत्वपूर्ण हैं। हमें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समर्पित रहना चाहिए, विपरीतताओं के बावजूद आगे बढ़ने की क्षमता रखनी चाहिए और सफलता के लिए कठिनाइयों का सामना करना चाहिए। संघर्षों और विफलताओं को अवसर के रूप में देखना चाहिए और प्रयासों को सुधारने के लिए नये तरीकों का प्रयोग करना चाहिए।

योजना और उद्देश्यों की निर्धारण: सफलता के लिए, हमें एक योजना बनाने और उद्देश्यों को निर्धारित करने की आवश्यकता होती है। हमें ज्ञान, संसाधन, और समय के आधार पर अपने कार्यों की योजना बनानी चाहिए। योजना बनाने के बाद, हमें निरंतरता के साथ उद्देश्यों की ओर प्रयास करना चाहिए और उन्हें पूरा करने के लिए सक्रिय रहना चाहिए।

कर्म का महत्व-

कर्म विचार, शब्द और क्रियाओं का संग्रह है जो हम करते हैं। कर्म हमारे द्वारा उठाए गए कार्यों को संकेत करता है और हमारे द्वारा जीवन में उत्पन्न फलों का निर्धारण करता है। इस प्रकार, कर्म हमारी सृजनशीलता, निर्माणशीलता और सफलता के भाग्य के बदले बनता है।

कर्म की प्राथमिकता: कर्म हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमारे कर्म हमारे लक्ष्यों और इच्छाओं को प्राप्त करने में सहायता करते हैं। बिना कर्म के, कोई भी सफलता नहीं हो सकती है। हमें अपने कर्मों पर नियंत्रण रखना चाहिए, जो हमारे उद्देश्यों के साथ मेल खाना चाहिए।

कर्म का निर्धारण: हमें सकारात्मक और उच्चतम दर्जे के कर्मों का चयन करना चाहिए जो हमारे उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करें। कर्म को उच्चतम मूल्य और महत्व देना चाहिए और उन कर्मों से बचना चाहिए जो हमें प्रगति से रोकते हैं।

कर्मफल से अछूता: सफलता के बारे में बात करते समय, हमें कर्मफल से अछूता रहना चाहिए। कर्मफल के लिए चिंता करना हमारे कर्मों को प्रभावित कर सकता है और हमारी स्वतंत्रता और संकल्प को कम कर सकता है। हमें सिर्फ अपने कर्मों पर काम करना चाहिए और परिणामों को ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करना चाहिए।

समर्पण और उद्धारण: कर्म की सफलता के लिए, हमें समर्पण और उद्धारण की आवश्यकता होती है। हमें अपने कर्मों को सही संदर्भ में स्वीकारना चाहिए, उन्हें पूरी ईमानदारी से करना चाहिए और सफलता के लिए आवश्यक संसाधनों को संयमित और योग्य रूप से उपयोग करना चाहिए।

इस प्रकार, पुरुषार्थ और कर्म हमारे कार्यों को सफल बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। हमें अपने कर्मों को सक्षमताओं और संसाधनों के साथ मेल खाना चाहिए, संयमित मनोवृत्ति बनाए रखनी चाहिए, निरंतर प्रयास करना चाहिए और अपने उद्देश्यों की ओर संघर्ष करना चाहिए। 

कर्मफल की परवाह किए बिना, हमें उच्चतम स्तर पर कर्म करना चाहिए और समर्पण और उद्धारण के साथ अपने कर्मों को पूरा करना चाहिए। इस प्रकार, हम सफलता के दरवाजे को खोलते हैं और अपने जीवन में उच्चतम स्तर की प्राप्ति करते हैं।

लेखक- अद्भुत जीवन की ओर

Bhagirath H purohit


 

धर्म जगत

SEE MORE...........