Published By:धर्म पुराण डेस्क

विभिन्न ग्रहों के अस्त होने का फल

चन्द्रमा- जन्म कुण्डली में जब चन्द्रमा अस्त हो, तो सर्वथा अस्त हुए चन्द्रमा की दशा में अर्थात् अमावस्या के चन्द्रमा की दशा में अपने लोगों से विरोध, दुख, स्त्री सुख में अत्यंत कमी, राज्य, अग्नि या विष से भय, माता का वियोग, खड़ी फसल या व्यवसाय में अंतिम क्षणों में हानि होती है।

मंगल- जन्म कुंडली में जब मंगल अस्त हो, तो कष्ट होता है। संग्राम में कष्ट, शक्ति में कमी, क्रोध की अधिकता होती है।

बुध- बुध अक्सर अस्त होता है। क्योंकि यह सूर्य के निकटतम ग्रह है और सूर्य से एक निश्चित अंशों तक ही पृथक रहता है। यही कारण है कि बुध के अस्त होने का दोष नहीं माना जाता है। बुध और सूर्य की युति को बुधादित्य योग के नाम से जाना जाता है। 

यह एक प्रसिद्ध और शुभ योग है, जो इस कथ्य को तथ्य में परिवर्तित करता है, कि बुध को अस्त होने का दोष नहीं होता है। फिर भी अपनी दशा में दमा, खांसी, आदि रोग, अत्यधिक परिश्रम, धन की कमी व दुख देता है।

गुरु- जन्म कुण्डली में जब गुरु ग्रह अस्त हो, तो गुरु की दशा में ज्वरादि से पीड़ा, शरीर में कमजोरी, कमर के ऊपर शरीर में कष्ट तथा चारित्रिक शिथिलता के कारण परिवारिक दुनिया उजड़ने के योग होते हैं।

शुक्र- जब शुक्र ग्रह अस्त हो तो उसकी दशा में पुराने मकान में निवास, शुभ कार्यों के संपन्न होने में बाधा, स्त्रीहीन, भाइयों से वियोग तथा कलह होती है।

शनि- अस्तगत शनि की दशा में धनागम व व्यय बराबर, युद्ध में पराजय, संतोष की कमी, कीर्ति की हानि, अनेक क्लेशों से मन में उदासी होती है।

सूर्य के सानिध्य में स्थित योगकारक अस्त ग्रह अपने देशान्तर में शुभ फल देने में असमर्थ हो जाता है। इसके विपरीत अकारक अस्त ग्रह अपने देशान्तर में अधिक अशुभ फलदायी हो जाएगा।

अस्त ग्रह शुभ फल भी देता है- यद्यपि अस्त ग्रह हमेशा दुष्फल देता है लेकिन इस सिद्धांत को ग्रह के नैसर्गिक गुणों से संबंध रखना चाहिए क्योंकि कुछ स्थितियां ऐसी भी हैं जबकि अस्त ग्रह अपने भाव जिसका वह स्वामी है, के लिए गुम स्थिति में होता है।

सामान्यतः सभी भावों के गुण और दोष होते हैं, लेकिन षष्ठ, अष्टम और द्वादश भाव शुभ फलों की तुलना में अशुभ फल अधिक करते हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि जब अस्त ग्रह षष्ठेश, या द्वादशेश हो, तो भावों की वृद्धि होती है, अर्थात ये भाव अपने अशुभ परिणामों को प्रकट नहीं कर पाते हैं। 

यद्यपि इसका दूसरा पक्ष भी है, लेकिन वह गौण है। जब इन भावों के स्वामी अस्त हो तो समृद्धि आती है और कार्यों में सफलता मिलती है। एक दृष्टि से यह स्थिति विपरीत राजयोग के जैसी है।


 

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