Published By:बजरंग लाल शर्मा

आध्यात्मिक सोपान: भाग - 1 

1- संसार यदि सत्य है तो यह क्यों मिटता है?

2- संसार यदि असत्य है तो यह क्यों दिखता है?

3- संसार चूंकि दिखता भी है और मिटता भी है इसलिए इसे सत्य और असत्य दोनों कहा जा सकता है।

4- यह सिद्धांत है कि सत्य और असत्य एक साथ नहीं रह सकते हैं क्योंकि सत्य प्रकाश स्वरूप है और असत्य अंधकार स्वरूप है, परंतु संसार में सत्य और असत्य एक साथ किस प्रकार है?

5- स्वप्न ही एक ऐसी अवस्था है जहां सत्य और असत्य एक साथ रह सकते हैं, क्योंकि स्वप्न में बनने वाली प्रत्येक वस्तु दिखती भी है और मिटती भी है। अतः यह संसार स्वप्न है।

6- स्वप्न की रचना नींद में ही होती है। स्वप्न नींद में ही बनता है और नींद में ही मिटता है और स्वप्न के पात्र कभी नींद के बाहर नहीं आ सकते हैं। स्वप्न के पात्रों का घर नींद में ही होता है।

7- स्वप्न की रचना करने वाले की नींद उसके शरीर के अंदर होती है और स्वप्न भी उसके शरीर के अंदर ही बनता है और मिटता है।

8- यह निश्चित है कि स्वप्न की रचना वही कर सकता है जिसके पास शरीर है अर्थात् निराकार स्वप्न की रचना नहीं कर सकता है।

9- यह सिद्धांत है कि बिना कारण के कार्य नहीं हो सकता है। स्वप्न भी एक कार्य है और इसका भी कारण है। किसी भी कार्य की रचना का एक ही कारण है और वह कारण है- रचना करने वाले की इच्छा।

10- शास्त्र एवं संतों ने संसार को स्वप्न कहा है तथा इसकी रचना करने वाली जो इच्छा है उसे प्रकृति अथवा माया कहा है।

11- रचना करने वाले की इच्छा उसके मन में होती है और मन का स्थान चित्त है। मन और चित्त दोनों ही शरीर के अंग है जिसके पास शरीर नहीं है उसके पास मन और चित्त दोनों नहीं होते हैं और उसके पास इच्छा भी नहीं होती है अतः वह रचना किस प्रकार कर सकता है?

12- माया अथवा प्रकृति तीन गुणों वाली (सत, रज, तम) होती है जब यह रचना करती है तो अपने तीनों गुण प्रकट कर देती है और सगुण साकार बन जाती है और जब इसे अपनी रचना समाप्त करनी होती है तो यह अपने तीन गुण समेट कर निर्गुण निराकार स्वरूप धारण कर लेती है।

13- शास्त्र एवं संतों का भी यही मत है कि सगुण-साकार एवं निर्गुण-निराकार दोनों रूप ही माया के हैं। जो निराकार निर्गुण ब्रह्म की उपासना करते हैं वह माया की भक्ति करते हैं।

बजरंग लाल शर्मा

            


 

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