Published By:बजरंग लाल शर्मा

आध्यात्मिक सोपान: भाग - 2 

1- स्वप्न की रचना के पूर्व जीव अपने अनादि रूप में अक्षर पुरुष के चित्त में कल्पना के संकल्प विकल्प रूपी बीज में था तथा इसके पास अपना शरीर नहीं था।

2- जब सृष्टि की रचना नहीं थी तब यह माया अपने अनादि रूप में अक्षर पुरुष के चित्त में सुप्तावस्था में थी। 

3- स्वप्न में प्रकट होने वाला प्रथम पुरुष, जिसे काल पुरुष कहा गया है, अनादि है तथा सृष्टि की रचना के पूर्व में यह अपनी अनादि अवस्था में काल निरंजन के रूप में अक्षर पुरुष के मन में था।

4- माया असत्य है तथा ब्रह्म सत्य है। सत्य एवं असत्य एक साथ रह  नहीं सकते हैं। अतः अक्षर पुरुष का मन नींद (मोहजाल) में प्रतिबिंबित हो असत्य माया से मिलता है।

5- अक्षर पुरुष का मन ही ब्रह्म है शास्त्रों ने तथा संतो ने इसे ज्योति स्वरूप कहा है। यह प्रकाश का पुंज है तथा संतो ने उसे नूर कहा है। इसका स्वरूप निराकार है।

6- सृष्टि तीन प्रकार की है, पहली सृष्टि- जीव सृष्टि है जिसकी रचना काल पुरुष के द्वारा स्वप्न में की जाती है। दूसरी सृष्टि- ईश्वरी सृष्टि है जो अखंड है, मिटती नहीं है तथा इसके स्वामी अक्षर पुरुष है। तीसरी सृष्टि- ब्रह्म सृष्टि है यह भी अखंड है, मिटती नहीं है तथा इसके स्वामी अक्षरातीत पुरुष पूर्ण ब्रह्म परमात्मा है।

7- जीव भी दो प्रकार के हैं प्रथम प्रकार का जीव दृश्य जीव है जो स्वप्न की सृष्टि के अंदर बनता है तथा मिटता है। दूसरे प्रकार का जीव, दृष्टा जीव है जो इस स्वप्न की सृष्टि के दृश्य जीवों तथा जगत को अपने धाम में रहते हुए देखता है। 

8- दृष्टा आत्मा नींद में बनने वाले स्वप्न के पात्रों को नींद के बाहर से देखती है वह नींद के अंदर अपने दिव्य शरीर को लेकर प्रवेश नहीं कर सकती है क्योंकि दृष्टा आत्मा सत्य है और स्वप्न के पात्र असत्य है यह आपस में मिल नहीं सकते हैं।

9- इन दृष्टा जीवों के पास अपना दिव्य अखंड शरीर होता है। अपने सूक्ष्म शरीर के द्वारा दृश्य जीवों में उत्तम मानव के शरीर से जुड़कर इस जन्म-मृत्यु  के नश्वर संसार को अपने धाम से ही देखती हैं। इन ब्रह्मात्माओं के लिए ही यह जन्म-मृत्यु वाला दुख का संसार बनाया गया है।

10- दृष्टा जीव भी दो प्रकार के होते हैं पहला दृष्टा जीव ब्रह्मात्मा होती है जो परमधाम में रहती है दूसरे प्रकार का दृष्टा जीव ईश्वरी सृष्टि होती है जिसे आत्मा कहते हैं और उसका घर अक्षरधाम होता है।

11- इन तीनों प्रकार की सृष्टियों के जीवों के घर अलग-अलग है। ये अपना अपना कार्य पूरा करके अपने घर में पहुंच जाती हैं। जीव सृष्टि का घर नींद में होने के कारण नींद के बाहर नहीं जा सकती हैं। ईश्वरी सृष्टि अपने अक्षरधाम में तथा ब्रह्म सृष्टि अपने पूर्णब्रह्म परमात्मा के  परमधाम में पहुंचती हैं।

12- जीव सृष्टि का सूक्ष्म शरीर उसका मन होता है। ईश्वरी सृष्टि तथा ब्रह्म सृष्टि का सूक्ष्म शरीर उनकी आत्मा होती है। शरीर से अलग होकर किसी दूसरे दूर स्थान पर सूक्ष्म शरीर ही जाता है। स्वप्न का शरीर माया का होता है अत: उसमें आत्मा नहीं होती है।

बजरंग लाल शर्मा 

        


 

धर्म जगत

SEE MORE...........