 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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अध्यात्म - साधना का पवित्रतम उद्देश्य है चित्त की शुद्धि। इसके हेतु अनेक साधन है। साधन वह होता है, जिसके द्वारा सिद्धि मिले। सिद्धि अभ्यास - साध्य है। भारतीय मनीषियों ने सिद्धि और शुद्धि के लिए अनेक साधनों और उपायों की खोज की। उनमें से एक मंत्र-शास्त्र भी है।
मंत्र - शास्त्र के अनुसार वर्णमाला के अंतर्गत ऐसा कोई अक्षर नहीं है, जो मंत्र न बन सके। मंत्र- द्रष्टा ऋषियों ने उन्हीं वर्णों के विभिन्न संयोगों से अनेक मन्त्रों की संरचना और प्राण - प्रतिष्ठा की। प्रत्येक मंत्र का अपना स्वतंत्र बीजाक्षर होता है।
बीजाक्षर मुख्यत: पांच प्रकार का होता है- ओ३म -परमात्म-तत्त्व, ह्रीं- प्रकृति-माया, श्रीं - सौंदर्य व वैभव, क्लीँ--संकल्प-शक्ति, है- ऐ- बुद्धि व स्मृति। प्राय: प्रत्येक के आदि में ओ३म तथा अंत में नम: का प्रयोग होता है।
ओ३म को मंत्र का सेतु माना गया है। इससे मंत्र शक्ति का साधन होता है। अत: मन्त्रों को तेजोमय शक्ति का समुच्चय कहा गया है। मंत्र वह होता है, जो मन को शांत एवं उसकी रक्षा करे।
मनुष्य अपने जीवन में जितना मनन करता है, वह अधिकांशत: खो जाता है, किन्तु मंत्र द्वारा किया गया मनन सदा सुरक्षित रहता है। मंत्रो के प्रभाव को स्थूल दृष्टि से देखा - परखा नहीं जाता। मात्र परिणाम का अनुभव होता है।
प्रार्थना, स्तुतियाँ, कीर्तन, भजन आदि की भांति मंत्र- जप भी साधना का एक अंग बन गया। मंत्र- विद आचार्यों ने स्वीकार किया है कि मंत्र- जाप से जीभ पर अमृत का स्राव होता है। इससे शरीर शीतल, कांतिमय और तेजस्वी बनता है। मन निर्विकार होता है। यथार्थत: मंत्र - शक्ति एक स्वस्थ वैज्ञानिक प्रक्रिया है। यह सम्पूर्ण पद्धति ध्वनि- विज्ञान पर आधारित है। विधिपूर्वक, लयबद्ध मंत्र के उच्चारण से वायुमंडल और आभामंडल दोनों प्रभावित होते हैं।
स्थूल शरीर की स्थिरता, तैजस शरीर की पवित्रता और कर्म शरीर की श्रद्धा शीलता -- इस त्रियोग से ही मंत्र- साधना फलवती होती है। मंत्र-जाप के मुख्यत: तीन लाभ -- निरामयता , निर्विकारता और निर्भयता स्वीकार किया गया है। मन्त्रों को शक्तिशाली बनाने में उसकी आवृत्तियों का प्रमुख स्थान है।
आवृत्तियों से उठने वाली ध्वनि- तरंगों का एक गति-चक्र बन जाता है। जिस प्रकार पत्थर के छोटे से ढेले को डोर से बांध कर यदि तेज गति से घुमाया जाता है। तो वह सनसनाहट करता हुआ तीर की भांति बेधक बन जाता है।
विद्यालंकार कहते हैं सारांशत: विभिन्न मंत्र हमारे पूरे शरीर- तंत्र को, विचार-तंत्र को और भावना - तंत्र को प्रभावित करते हुए आंतरिक ऊर्जा को जगाता है। एवं चैतन्य को ऊर्ध्वमुखी बनाता है. अध्यात्म की अटल गहराइयों का संस्पर्श करवाता है। यथोचित मन्त्रों के अनुष्ठान से स्वस्थ शक्ति -सम्पन्न और संतुलित व्यक्ति का निर्माण किया जा सकता है।
 
 
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