 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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प्राचीन भारत में शिक्षा के तीन महान केन्द्र तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय थे, जिनके ध्वंसावशेष अभी भी देखने में आते हैं। इनमें पहला विश्वविद्यालय पंजाब में और शेष दो मगध (बिहार) में थे। उनका विशद वर्णन हमें भारत के इतिहास में मिलता है। विदेशी यात्रियों ने भी मुक्तकण्ठ से उनकी प्रशंसा की है।
(1) तक्षशिला विश्वविद्यालय भारत की प्राचीनतम शिक्षण संस्था पंजाब प्रान्त के रावलपिंडी शहर से प्रायः 18 मील की दूरी पर (अब निर्जन और वीरान स्थान) तक्षशिला नाम की नगरी में थी। यहाँ की सभ्यता संसार की सर्वोत्तम और पुरातन सभ्यताओं में से एक थी।
चाणक्य-जैसे राजनीतिज्ञ और भृत्य कौमारजीव-जैसे शल्य चिकित्सक (सर्जन) यहीं अध्यापक थे। यहाँ देश-विदेश से बड़े-बड़े विद्वान वेद आदि अठारह विद्याएँ-विशेष रूप से अर्थशास्त्र, राजनीति और आयुर्वेद के अध्ययन के लिये आते और उसमें अच्छी जानकारी प्राप्त करते थे।
चीनी भाषा में तक्ष का अर्थ है पहाड़ और तक्षशिला वास्तव में है भी पहाड़ों के बीच इतिहासकारों का कथन है कि 'भरत के दो पुत्र थे- तक्ष और पुष्कर पुष्कर ने पुष्करावर्त और तक्ष ने तक्षशिला बसायी थी।' ईस्वी सन् के पाँच सौ वर्ष पूर्व से लेकर छठी शताब्दी पर्यन्त तक्षशिला बहुत ही उन्नतशील रही।
इसके बाद हूण-आक्रमण कारियों ने तक्षशिला का सर्वनाश कर दिया। फिर लगभग ढाई हजार वर्षों के अनन्तर वैज्ञानिकों के कठिन अनुसंधान के पश्चात् वहाँ की खुदाई हुई। और वहां उस जमाने के बर्तन-भांडे, जिनमें छोटे छोटे बर्तनों से लेकर चार-चार फुट के मटके भी हैं, तथा कलम, दवात, थाली, लोटा, हीरक-हार, प्रकाश स्तम्भ, कसौटी-पत्थर और सुरमेदानी ही नहीं, अपितु गान्धारी कला के सर्वोत्कृष्ट नमूने एवं बौद्ध भिक्षुओं के अवशेष सामान भी मिले हैं। इसके अतिरिक्त 'ब्राह्मी' और 'खरोष्ठी' लिपियों में लिखे शिलालेख भी पाये गये। ये सभी सामान वहां के 'म्यूजियम' में रखे गये हैं।
तक्षशिला के खंडहर मीलों में पाये जाते हैं। भिड़ माउंट, शिरकप, मोरा-मोरा-दू, जोलिया, पिपला, जांडियाला और रिच स्तूप आदि इलाके पास ही एक-दो मील की दूरी पर अवस्थित हैं, उन्हें अच्छी तरह देखे बिना यहाँ की सभ्यता अच्छी तरह हृदयंगम नहीं की जा सकती। भिड़ माउण्ड आभीक की राजधानी थी।
जोलिया में बौद्धों का निवास स्थान था। यहाँ उनके व्यवहार की वस्तुएँ चक्की, घड़ा तथा थाली आदि मिलती हैं। यहाँ उन भिक्षुओं के भांडागार, था, जिनके अवशेष और विशेषकर गांधारी के उत्कृष्टतम मूर्तियां दर्शकों के चित्त को मोह लेती थीं। रिच स्तूप में कनिष्क ने ईस्वी सन् के पूर्व एक स्तूप बनवाया था। इनके अतिरिक्त तक्षशिला में ब्राह्मण बौद्ध-दर्शन, साहित्य, अर्थशास्त्र एवं विद्या के ग्रंथ भी लिखे गये थे। उसके पीछे एक महान् देश की समृद्धि शालिनी सभ्यता का महान इतिहास निहित है।
(लेखक - पं० ईश्वर बोध जी शर्मा)
 
 
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