Published By:बजरंग लाल शर्मा

मानव तन की उपयोगिता...       

मानव तन की उपयोगिता...        

"ए  अवसर  क्यों  भूलिए, जित  पाइए  सुख  अखंड ।         

या  घर  बिना  सो ना मिले, जो  ढूंढ  फिरो  ब्रह्मांड ।।"         

महामति प्राणनाथ जी कहते हैं कि रे जीव ! तुम्हें परमात्मा ने मानव शरीर देकर कितनी कृपा की है । तुम अब इस अवसर को मत चूको, इसके बाद पता नहीं तुम्हें यह शरीर कब प्राप्त होगा । इस शरीर के द्वारा ही तुम परमात्मा के अखंड सुख को प्राप्त कर सकते हो । तुम पूरे ब्रह्मांड में खोज कर देख लो, इस शरीर से उत्तम शरीर तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा । सभी देवगण इस मानव शरीर को प्राप्त करने के लिए तरसते हैं ।

तुम अनेक प्रयत्न क्यों न करो, किंतु इस मनुष्य शरीर के बिना परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती है । यह शरीर तो मात्र आधे क्षण के लिए ही प्राप्त हुआ है, जब तक यह शरीर तेरे पास है, तुम्हें उस अखंड सुख की प्राप्ति कर लेनी चाहिए ।

अब प्रश्न यह उठता है कि ब्रह्म को कैसे ढूंढा जाए ? बहुत से साधकों ने इसी शरीर में ब्रह्म को ढूंढने का प्रयत्न किया, परंतु किसी ने भी इसमें ब्रह्म को नहीं पाया ।

शरीर के अंदर तो नरक के कुंड के समान गंदगी भरी हुई है, इसलिए ब्रह्म इस शरीर में नहीं है । तब इस शरीर के अंदर ब्रह्म का घर कैसे कहा जाए ? अगर शरीर के बाहर ब्रह्मांड में ढूंढे तो परमात्मा वहाँ भी कहीं दिखाई नहीं देते हैं । तब उस ब्रह्म का घर कैसे मालूम किया जाए ?

परमात्मा जीव के लिए साध्य है और जीव स्वयं साधक है और जीव को साधना करने के लिए साधन चाहिए बिना साधन के साधना  किस  प्रकार की जा सकती है ।

संतों ने इस हेतु निम्न साधन बताए हैं-

1- मानव का शरीर, उसकी निर्मलता    

2- सतगुरु की शरण

3- संतो एवं शास्त्रों का अनुभव

4- परमात्मा का पराज्ञान (सत्य ज्ञान)

"पिंड  में  होता  तो  मरता  न  कोई , ब्रह्मांड में होता तो देखता सब कोई ।"

जब परमात्मा पिंड (शरीर) में भी नहीं है और ब्रह्मांड में भी नहीं है । तो  फिर उसे कहां ढूंढा जाए । यह ब्रह्मांड तो हद में है, हद में वह नहीं है। इसके बाद में बेहद भूमि है और बेहद में न यह शरीर जाता है और न ब्रह्मांड के कोई शब्द जाते हैं तो फिर परमात्मा को किस प्रकार पाया जाए ?            

सतगुरु का पराज्ञान कहता है कि यह संसार प्रतिबिंब  है और प्रतिबिंब का बिंब बेहद भूमि में है, जब तक हम उस बिंब को नहीं  जानेंगे तब तक हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे।     

जीव अनादि है इसका घर अक्षर धाम में है यह वहां तक जा सकता है। मानव जीव के साथ अक्षर की आत्मा जुड़ी है और यह उसको वहां तक ले जाएगी लेकिन सतगुरु के बताए गए साधनों के द्वारा इसे कर्म करना होगा ।

बजरंग लाल शर्मा 

                  


 

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