 Published By:दिनेश मालवीय
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सनातन धर्म में जितने ग्रंथ हैं, उतने ग्रंथ संसार के किसी धर्म में नहीं हैं. यद्यपि वेद सनातन धर्म का मूल आधार है, लेकिन वेदों के सार को समझाने के लिए उपनिषद और उपनिषदों का सार समझाने के लिए श्रीमद्भागवतगीता है. यह सनातन धर्म के “प्रस्थानत्रयी” में शामिल है, जिसमें दो अन्य ग्रंथ “ब्रह्मसूत्र”, “उपनिषद” हैं. यह एक ऐसा ग्रंथ है, जिसकी ख्याति सारे संसार में है. अध्यात्म के इस सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ का संसार की अनेक भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है. पश्चिम के बड़े-बड़े दार्शनिकों और यहाँ तक कि मुस्लिम विद्वानों ने भी इसकी श्रेष्ठता को स्वीकारा है. बुखारा के राजकुमार अल बरूनी ने कैद में रहते हुए संस्कृत सीखी और श्रीमदभगवतगीता को पढ़कर इसकी बहुत तारीफ़ की. अकबर के दरबार में रहने वाले बहुत बड़े विद्वान अबुल पैजी ने इसका फारसी में अनुवाद किया. शारजहाँ के बेटे दारा शिकोह ने इस ग्रंथ की प्रस्तावना लिखी, जिसका फारसी में नाम “सारे अकबर” रखा गया. जर्मन विद्वान कॉल्टर शू ब्रिंग ने गीता की बहुत प्रशंसा की. जर्मनी के महान तत्वेत्ता दार्शनिक कांट और उनके प्रशंसक शोपेनहोवार तथा महान दार्शनिक हेगेल ने भी गीता की तारीफ़ में बहुत बहुमूल्य बातें कहीं. जर्मन के ही विद्वान हम्बोल्ट ने गीता को बहुत मनोयोग से पढ़ा. अमेरिकन लेखक राल्फ काल्डो एमरसन गीता के बहुत बड़े प्रशंसक थे. आयरिश कवि जी. डब्ल्यू रसल, यीट्स, फ्रेजर, टीएस इलियट, फर्क्युहर और भारत के गवर्नर जनरल रहे वोरन हेस्टिंग्स तक ने गीता को जीवन का सार बताया.
भारत में गीता की इतनी अधिक टीकाएँ और भाष्य लिखे गये, कि जिनकी गिनती करना मुश्किल है. यह है ही ऐसा ग्रंथ, कि जिसको पढ़ने के बाद कोई इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता. सात सौ श्लोक और अट्ठारह अध्याय के इस छोटे से ग्रंथ में सम्पूर्ण जीवन का सार निहित है. लेकिन श्रीमद्भगवद्गीता एक मात्र गीता नहीं है. लगभग पच्चीस गीता हैं, जिनका सबका अपनी-अपनी जगह महत्व है. बाल गंगाधर तिलक ने श्रीमद्भगवद्गीता के बहुप्रतिष्ठित भाष्य “गीता रहस्य” की प्रस्तावना में इस विषय में बहुत विस्तार से बताया है. इसके अनुसार महाभारत के शांतिपर्व के अंतर्गत मोक्ष पर्व के फुटकर प्रकरणों को “पिंगलगीता”, “शपंकगीता”, “”मंकिगीता”, “बोध्यगीता”, “विचख्युगीता”, “हारीतगीता”, “वृत्रगीता”, “पराशर गीता” और “हंसगीता” कहा गया है. महाभारत के ही अश्वमेध पर्व की ”अनुगीता” के एक भाग का नाम ”ब्राह्मण गीता” है. इनके अलावा “अवधूत गीता”, “अष्टावक्र गीता”, “ईश्वर गीता”, “उत्तर गीता”, “कपिलगीता”, “गणेशगीता”, “देवि गीता”, “पाण्डवगीता”, “ब्रह्मगीता”, “भिक्षु गीताक्शुगीता”,”यमगीता”, “रामगीता” “व्यास गीता”,”शिव गीता”,”सूतगीता”, “सूर्यगीता” आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं.
इनमें से कुछ तो स्वतंत्र ग्रंथ हैं और कुछ विभिन्न पुराणों के अंग हैं. उदाहरण के लिए “गणेशपुराण” के अंतिम क्रीड़ाखंड के दस अध्याओं में कही गयी है. “कर्म पुराण”के उत्तर भाग के पहले ग्यारह अध्याय में “ईश्वरगीता” है. इसके बाद ‘व्यासगीता” प्रारंभ होती है. स्कंद पुराण के अंतर्गत सूत संहिता के वैभव खंड में “ब्रह्मगीता” है. बाद के अध्यायों में ”सूत गीता” है. योगवासिष्ठ के निर्वाण प्रकरण में भी “ब्रह्मगीता” है. “यमगीता” तीन प्रकार की हैं. एक विष्णु पुराण के तीसरे अंश के सातवें अध्याय में; दूसरी अग्नि पुराण के तीसरे खंड में और तीसरी नृसिंह पुराण के आठवें अध्याय में है. महाराष्ट्र में “रामगीता” का प्रचलन अधिक है, जो अध्यात्म रामायण के उत्तरकाण्ड में है. तिलक जी के अनुसार एक “गुरु ज्ञान-विशिष्ट तत्व सारायण” नामक ग्रंथ को भी “रामगीता” कहा जाता है, जिसका प्रचलन मद्रास की ओर अधिक है. यह वेदान्त विषयक ग्रंथ है, जिसमें ज्ञान, उपासना और कर्म संबंधी तीन काण्ड हैं. इसके तीसरे पाद में “सूर्यगीता” है. “शिव गीता” पाताल काण्ड में कही जाती है. श्रीमद्भागवत पुराण के ग्यारहवें स्कंध में “हंसगीता” और तेईसवें अध्याय में “भिक्षु गीता” कही गयी है. तीसरे स्कंध के कपिलोख्यान को “कपिलगीता” कहते हैं. इसकी स्वतंत्र पुस्तक भी मिलती है. इसमें हठयोग का प्रमुखता से वर्णन है. देवी भागवत में भी सातवें स्कंध के 31 से 40 अध्याय तक एक गीता है, जिसे “देवीगीता” कहते हैं.
इसी तरह अन्य गीतों के बारे में भी तिलक जी ने विस्तार से बताया है. गीता से तात्पर्य होता है, ऐसा वार्तालाप या उपदेश जिसमें मोक्ष के विषय में बताया गया हो. श्रीरामचरितमानस में ही पांच ऐसे प्रसंग मिलते हैं, जिन्हें अनेक विद्वानों ने गीता कहा है. बहरहाल, इन सब गीताओं का महत्व संबंधित सम्प्रदायों तक ही महत्त्व है. जिस गीता को संसार भर में ख्याति प्राप्त है और जिसे संसार के महान विद्वानों ने मान्य किया है, वह श्रीमद्भागवत गीता ही है. संसार में इसकी प्रसिद्धि का सबसे महत्वपूर्ण यह है, कि पश्चिम के देशों में तो ईसाई धर्म प्रचलित है और मुस्लिम लोग क़ुरान शरीफ को ही मानते हैं. इस ग्रंथ का प्रचार इसलिए नहीं हुआ, कि इसके अनुयायी विदेशों में थे. इसका प्रचार-प्रसार अपनी गुणवत्ता के बल पर हुआ. ऊपर पश्चिम के जिन विद्वानों के नाम दिये गये हैं, वे कोई मामूली लोग नहीं थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन आध्यात्मिक खोज और अनुसंधान में लगाया था.
भारत में भी महात्मा गांधी, विनोबा भावे, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविन्द, आदि शंकराचार्य जैसी दिव्य विभूतियों के जीवन में इस ग्रंथ के महत्व को उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है. महात्मा गांधी तो श्रीमद्भागवत गीता को जीवन का संदर्भ ग्रंथ कहते थे. इनमें से अनेक ने गीता जी की सुंदर टीकाएँ और भाष्य लिखे हैं. इनमें अरविन्द, गांधी, तिलक, आदिशंकराचार्य के भाष्य बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. स्वामी विवेकानंद ने गीता पर को स्वतंत्र भाष्य नहीं लिखा,लेकिन उन्होंने विभिन्न अवसरों पर इस ग्रंथ के बारे में जो बोला, वह पुस्तकाकार में उपलब्ध है. अभागे हैं भारत के वे लोग, विशेषकर हिन्दू, जो श्रीमद्भागवतगीता नहीं पढ़ते. यह एक मात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसमें संसार की सारी समस्याओं और विकृतियों के समाधान के मंत्र निहित है. कम से कम हर हिन्दू को दिन भर में कुछ समय निकाल कर गीता अवश्य पढ़नी चाहिए. साथ ही बच्चों को भी बचपन से गीता के अध्ययन की ओर प्रेरित करना चाहिए. इससे जीवन में कभी अवसाद या निराशा नहीं होगी और कठिन से कठिन समय में धैर्य धारण करने का संस्कार विकसित होगा. जो लोग गीता को वैराग्य का ग्रंथ समझते हैं, वे बहुत अज्ञान में जी रहे हैं. यह कर्म और वीरता का ग्रंथ है.
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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