माँ देवी दुर्गा की उत्पत्ति कथा में महान संदेश निहित, एकता ही शक्ति.. दिनेश मालवीय
सनातन धर्म में हर त्यौहार और उसके साथ जुड़ी कथाओं में जीवन के बहुत गहरे संदेश निहित होते हैं. आज सात अक्टूबर से शक्ति को जाग्रत करने का नवरात्रि उत्सव प्रारंभ हो रहा है. इन नौ दिनों में हर दिन देवी माँ के एक विशेष स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है. देवी और शक्ति के आराधकों के लिए यह सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार होता है. भक्तगण अपनी-अपनी शक्ति और क्षमता के अनुसार शक्ति की उपासना करते हैं. हर दिन के स्वरूप की पूजा के लिए मंत्र, अनुष्ठान और विधि-विधान निर्धारित हैं. बड़ी संख्या में लोग “देवी भागवत” का पाठ करते हैं. सभी लोग इन नौ दिनों में पूरी पवित्रता से जीवन जीते हैं. इस दौरान वे अनेक तरह के शुभ संकल्प लेते हैं. ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है, जो पूरे वर्ष मांसाहार और मदिरापान भी करते हैं, लेकिन इन नौ दिनों में इन चीजों का नाम भी नहीं लेते. और भी अनेक शुभ संकल्प लिए जाते हैं. कुछ लोग तो बहुत कठिन नियम का पालन करते हैं. कोई अपने शरीर पर जवारे उगता है, तो को सिर्फ एक लोंग खाकर या पानी पीकर ही रहता है. सनातन धर्म की अन्य बातों की तरह, सभी को अपनी-अपनी श्रद्धा और शक्ति के अनुसार शक्ति-उपासना की स्वतंत्रता है. कोई भी चीज अनिवार्य नहीं है. सार्वजनिक दुर्गोत्सव सामाजिक एकता को बढ़ावा देते हैं. देवी माँ के विभिन्न स्वरूपों पर आधारित सुंदर और भव्य झांकियां सजाई जाती हैं. रामलीला, हवन-यज्ञ, ग्रंथों का पाठ, भजन-कीर्तन, सासंकृतिक कार्यक्रम आदि होते हैं. ये नौ दिन साल भर के सबसे आनंददायक दिन होते हैं. ये सभी चीजें अपनी जगह सही हैं, जिनका बहुत महत्त्व है. लेकिन इस अवसर पर एक बहुत बड़ी बात हमारे ध्यान से चूक जाती है. देवी दुर्गा की उत्पत्ति का उद्देश्य दानवों यानी आतताइयों का विनाश करना है. ये लोग सीधे-सज्जन, गरीब और निर्बल लोगों को सता रहे थे. धर्म के काम में बाधा पहुँचा रहे थे. सच्चाई के रास्ते पर चलने वालों पर घोर अत्याचार कर रहे थे. वे सबको अपनी तरह बनाने की कोशिश कर रहे थे. इनमें महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ आदि तो इतने बलवान और भयंकर थे कि, देवताओं को भी पराजित कर देते थे. ऐसी स्थिति में देवताओं ने माँ शक्ति की शरण ली. उन्हें अपनी व्यथा बताकर उनसे दुष्टों का संहार करने की प्रार्थना की. शक्ति ने माँ दुर्गा का रूप धारण कर लिया. इस रूप में देवी के सामने आने पर सभी देवताओं ने उन्हें अपने अस्त्र-शस्त्र भेंट किये. जिस देवता के पास जो भी सर्वश्रेष्ठ शक्ति थी, वह उसने माँ दुर्गा को अर्पित कर दी. सारे देवताओं की सामूहिक शक्ति से सज्जित होकर उन्होने दानवों का संहार कर संसार से अच्छाई को मिटने से बचा लिया. इस कथा में बहुत गहरा संदेश निहित है. देवी में इतनी शक्ति थी कि, उन्हें किसी देवता से किसी भी प्रकार की सहायता या उनकी शक्ति की आवश्यकता नहीं थी. वह अकेले ही अपने दम पर उनका संहार करने में समर्थ थीं. लेकिन उन्होंने देवताओं से उनकी शक्तियां ग्रहण कर या संदेश दिया कि जब अच्छाई की सारी शक्तियां एक साथ आती हैं, तभी बुराई का नाश होता है. कोई अकेले ही बुराई का विनाश नहीं कर सकता. आज हमें नवरात्रि पर्व मनाने के दौरान इस कथा के संदेश पर भी मनन कर उससे प्रेरणा ग्रहण करने की ज़रुरत है. इसका आज के संदर्भ में सबसे पहला संदेश यह है कि, समाज के सभी लोगों को राष्ट्रहित में एक हो जाना चाहिए. जो भी देश और समाजद्रोही शक्तियाँ हैं, उनका विनाश सबकी सामूहिक शक्ति से ही संभव है. इसका दूसरा संदेश यह है कि, जिसके पास जो भी सर्वश्रेष्ठ है, वह समाज और राष्ट्र के हित में अर्पित कर दे. जिसके पास ज्ञान का बल है, वह ज्ञान से; जिसके पास शक्ति का बल है, वह शक्ति से; जिसके पास धन का बल है, वह धन से और जिसके पास सेवा का बल है, वह सेवा से समाज और राष्ट्र के व्यापक हित में काम करे. आज सारे मतभेदों और मनमुटाव को भूलकर राष्ट्रहित में एक होने का संकल्प लेना ही माँ दुर्गा की सबसे सच्ची और सार्थक साधना होगी. यह शक्ति की पूजा का त्यौहार है. शक्ति सिर्फ सैन्य शक्ति नहीं होती. समृद्धि, ज्ञान और निस्वार्थ सेवा भी किसी देश या समाज की बहुत बड़ी शक्ति होती है. लिहाजा, हम पूरी शक्ति और श्रद्धा के साथ नवरात्रि का त्यौहार मनाएं, लेकिन देवी उत्पत्ति कथा के संदेश को भी आत्मसात करें.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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