Published By:धर्म पुराण डेस्क

भगवन्नाम में अमोघ शक्ति है, भगवन्नाम के सदृश और कोई महत्त्वप्रद और पुण्यप्रद वस्तु नहीं

आज समस्त विश्व विविध कष्टों से समाक्रान्त है। वेदादि शास्त्रों, ऋषि-मुनियों, संत-महात्माओं और विद्वानों का सिद्धांत है कि आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक आदि सभी प्रकार के संकटों से मुक्त होने के लिये भगवन्नाम ही एक ऐसा महत्त्वपूर्ण सरल साधन है, जिसके द्वारा मानव अक्षय सुख-शांति प्राप्त कर परमपद पा सकता है।

कलयुग में भगवन्नाम की विशेष महिमा बतायी गयी है। भगवन्नाम सभी अमङ्गलों का नाश करने वाला, शाश्वत सुख-शांति को देने वाला, अन्तःकरण को पवित्र करने वाला और भगवद्भक्ति को उत्पन्न करने वाला है। भगवन्नाम ऐहिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के सुख देता है।

श्री वेणी रामजी शर्मा वेद आचार्य बताते हैं कि भगवन्नाम में अमोघ शक्ति है। भगवन्नाम के सदृश और कोई महत्त्वप्रद और पुण्यप्रद वस्तु नहीं है। अतः मनुष्य को चाहिये कि वह सर्वदा और सभी अवस्थाओं में भगवन्नाम के नित्य-निरंतर स्मरण का ऐसा अभ्यास बना ले, जिससे उसकी जिह्वा सर्वदा भगवन्नाम का उच्चारण करती रहे। 

जो मनुष्य ऐसा अभ्यास कर लेता है, वह जीवित ही दिव्य परमोज्ज्वल प्रकाश पाकर अनन्त भवसागर को अनायास पार करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है और अंत में मङ्गलमय भगवान का सान्निध्य पाता है।

भगवन्नाम की अपूर्व महिमा है। भगवन्नाम के प्रभाव से मनुष्य की आत्मा में स्वतः दिव्य प्रकाश हो जाता है, जिससे चित्त के सारे मल (विकार) दूर हो जाते हैं। उसकी चित्तवृत्ति शनैः-शनैः एकाकार रूप में परिणत हो जाती है, जिससे उसका जीवन 'ब्रह्ममय' बन जाता है। 

वह अखिल ब्रह्माण्ड नायक भगवान के साथ एकात्मता का अनुभव करने लगता है और विश्वजनीन समस्त जड़-चेतन पदार्थों में भगवान की ही दिव्य अलौकिक छवि देखने लगता है। पश्चात् वह संसार के क्षणिक और मिथ्या पदार्थों से मुख मोड़कर जन्म-जन्मान्तर के लिये भगवान का और भगवन्नाम का प्रेमी भक्त बन जाता है। 

भगवान का भक्त बनने के बाद वह सदा-सर्वदा समस्त प्रकार की ऋद्धि-सिद्धियों से परिपूर्ण होकर आत्मतृप्ति का अनुभव करता हुआ परम पद पाता है। भगवन्नाम का अद्भुत प्रताप है। भगवन्नाम के प्रताप से नारद, ध्रुव, प्रहलाद, वाल्मीकि आदि जगद्वन्दनीय हो गये। 

भगवन्नाम के प्रताप से भक्त प्रहलाद की अग्नि से, सर्पदंश से और सिंह आदि से रक्षा हुई। भगवन्नाम के प्रताप से मीराबाई विष रूप में दिये हुए चरणामृत का पान करके भी जीवित रह गयी। भगवन्नाम के प्रताप से द्रौपदी की कौरव-सभा में रक्षा हुई। भगवन्नाम के प्रताप से ही ग्रह के द्वारा ग्रस्त गजेंद्र का उद्धार हुआ।


 

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