Published By:अतुल विनोद

कामनाओं के पार ही मोक्ष है| लेकिन इच्छाओं के बिना कैसे जिया जाए? ......अतुल विनोद

कामनाओं, इच्छाओं और  महत्वाकांक्षाओं के बिना हम अपने आप को अधूरा समझते हैं| 

भौतिक जीवन में हम से कहा जाता है कि हमें इच्छाएं करनी चाहिए| जब तक हमारे मन में “गोल” नहीं होगा, “टारगेट्स” नहीं होंगे, “डिजायर्स” नहीं होगी तो हम आगे कैसे बढ़ेंगे? 

'नास्ति नासीन्नाभविष्यद् भूतं कामात्मकात् परम्।' 

कामना से रहित जीवन न कहीं है, न था और न ही होगा। इसके उलट ये भी कहा गया है कि जो ईश्वर के नजदीक है उसकी अपनी कोई इच्छा नहीं होती| होती भी है तो वो ईश्वर की इच्छा होती है| 

'कामबंधनमुक्तो हि ब्रह्मभूयाय कल्पते' |

जो कामना के बंधन से छूट जाता है, वो ब्रह्मभाव हासिल करने में समर्थ हो जाता है।

'नास्ति नासीन्नाभविष्यद् भूतं कामात्मकात् परम्।' 

एक जगह कहा गया है कामना छोड़ो ब्रह्म मिलेगा दूसरी जगह कहा गया है कामना के बिना मनुष्य रह ही नहीं सकता| 

एक और श्लोक 

'अनीह आयाति परं परात्मा' 

कामनारहित मनुष्य ही परमात्मा को प्राप्त हो जाता है। 

कामना रहित कैसे रहें, ये तो ज़रूरी है?  

एक लिहाज से ये बात सही नजर आती है कि हम चाहेंगे तभी तो मिलेगा| लेकिन कितने लोग हैं जिनको चाहने से मिलता है? कितने लोग हैं जिनकी महत्वाकांक्षा पूरी होती हैं? कितने लोग हैं जिनके लक्ष्य हासिल होते हैं?

धर्म कहता है कि सफल होना है तो इच्छा ही मत रखो| बिना इच्छा के भी मिलेगा|  जो कर्म करो तो उस में लिप्त हुए बगैर करो| हम सब इच्छाओं के कंट्रोल में हैं| बिना इच्छा के हम रह भी कैसे सकते हैं? यह इंप्रैक्टिकल लगता है कि हम बिना किसी डिजायर्स के रहें| फिर भी धर्म शास्त्र एकमत से हमें इच्छाओं से परे जाने की बात बता रहे हैं तो उसमें कोई ना कोई रहस्य ज़रुर है| ऐसा रास्ता ज़रूर है जिस पर चलकर हम कामनाओं के पार जा सकें| 

एक तरफ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को मनुष्य के चार पुरुषार्थ बताया जाता है| दूसरी तरफ इनमें से एक “काम” को यानी कामनाओं को सफलता और ईश्वर प्राप्ति में बाधा बताया जाता है| दरअसल हमारी कामनाएं ही इतनी है यदि हम उनसे ऊपर ना गए तो उस में उलझ कर हमारी सारी जिंदगी बेकार हो सकती है| धर्म कहता है कि आपको इच्छा रखने की जरूरत नहीं है, आप बस निर्लिप्त होकर काम करते रहो, ऐसा मत समझो कि आप इच्छा नहीं करोगे तो आपको नहीं मिलेगा? मिला है अनेक लोग हैं  जिनके पास बिना इच्छा के धन, वैभव, यश, मान प्रतिष्ठा आई है| 

जो बच्चा किसी संपन्न परिवार में पैदा हुआ है क्या उसने उस घर में पैदा होने के लिए कोई टारगेट सेट किया था? जिनके जीवन में ये सब नहीं है वो भी किसी न किसी रूप में परमात्मा की व्यवस्था में उपकृत हैं| 

एक महिला जॉब कर रही है दूसरी हाउसवाइफ है, हाउसवाइफ जॉब करने वाली महिला को देखकर जलन फील कर सकती है| लेकिन वो ये नहीं सोचती कि जॉब करने के अपने डिसएडवांटेज हैं| जो व्यक्ति जॉब या बिजनेस में दिन-रात व्यस्त रहता है, यही तो सोचता है कि आगे चलकर इन सब से मुक्त होकर, शांति और एकांत अपना समय व्यतीत करेगा| जो वो बाद में करने वाला है वो आपको पहले ही मिल गया बुराई क्या है?

ज्यादा पैसा कमा कर व्यक्ति शांति से तो बैठना चाहता है, लेकिन पैसा कमाने के खेल में उलझा हुआ व्यक्ति, मरते दम तक क्या शांत बैठ पाता है? इसलिए गांव में बैठा, कम पैसा कमाने वाला व्यक्ति क्यों ये सोचता है कि वो शहर जाकर ज्यादा पैसा कमाये? वो अपनी उन्ही व्यवस्थाओं में उतना ही खुश रह सकता है जितनी ख़ुशी एक्स्ट्रा सुख सुविधाओं से मिल सकती है| 

एक बच्चा जो गरीब घर में पैदा हुआ है उसकी खुशी के स्तर में और किसी बड़े घर में पैदा हुए बच्चे की खुशी के स्तर में कोई अंतर नहीं होता, जब तक, उसे ये बताया ना जाए कि वो गरीब घर में पैदा हुआ है, यह अहसास ना दिलाया जाए कि वह अभाव में है| जब तक कि वो दूसरे  बच्चे के हाथ में बड़े-बड़े खिलौने देख लालच में न आ जाये| जिन बच्चों को ज्यादा सुख सुविधाएं, खिलौने, और व्यवस्था मिली है आगे चलकर अपनी  प्रैक्टिकल लाइफ में fit न हो पाए तब? ऐसा होता भी है, जो बच्चे चाँदी की चम्मच लेकर पैदा हुए हैं कई बार वो जिंदगी की हक़ीक़त से घबरा जाते हैं| 

धर्म तो कहता है कि आपकी ज़िद करने से आपको कुछ नहीं मिलता, आपको वही मिलता है, जो विधि का विधान तय करता है, और विधि का विधान वही तय करता है जो आपने पहले कर रखा है| हम एक इच्छा पूरी करते हैं तो दूसरी पैदा हो जाती है| इच्छा के बिना जीवन संभव नहीं है लेकिन इच्छाएं भी दो प्रकार की होती है? 

एक इच्छा भौतिक होती है, चीजों से जुड़ी हुई इच्छाएं, धन, पद वैभव से जुड़ी हुई, दूसरी इच्छाएं आध्यात्मिक होती हैं|

धर्म भौतिक “कामनाओं” को सीमित करने पर बल देता है, धर्म कहता है कि उम्मीद रखो, लेकिन  वो आध्यात्मिक होनी चाहिए| कहाँ अटके हो छोटी छोटी चीजों में, वो तो उतनी ही मिलेगी जितनी तुम्हारी कार्मिक योग्यता है| ज्यादा मिलना होगा तो प्रकृति लक्ष्य भी दे देगी और कार्य भी करवा लेगी| भक्ति, प्रेम, अनुराग,  ईश्वर प्राप्ति, मोक्ष, यह सब स्प्रिचुअल अभिलाषाएं हैं| हालांकि ब्रह्म प्राप्ति में हर तरह की इच्छा बाधक है, लेकिन शुरुआत में इस तरह की इच्छायें रखी जा सकती हैं, धर्म शाश्त्रों ने तो हमे भौतिक कामनाओं की प्राप्ति के मंत्र भी दे रखें हैं लेकिन ये भी चेताया है कि ये क्षणिक हैं|  

सवाल उठेगा बिना इच्छा किये कैसे मिलेगा? 

आप सोचे कि आपकी लाइफ में आपको जो मिला है वह जिद करने से मिला है या संयोग से मिलता चला गया| आप सोच सकते हैं कि धर्म आपको अकर्मण्य बना रहा है| क्योंकि इच्छाएं नहीं होंगी तो व्यक्ति कर्म क्यों करेगा? ऐसा नहीं है आप अपनी इच्छाएं अपने जीवन पर लादना बंद कीजिए? जब आप ऐसा करेंगे तब आपको  ईश्वर की इच्छा मिलेगी| और ईश्वर की इच्छा के अनुरूप आप खुद ब खुद कर्म करने लगेंगे| वो कर्म कार्य न बनकर धर्म बन जाएगा| वह कर्म जो ईश्वर से आपको मिला है वह बोझ नहीं आनंद और उत्सव का सबब बन जाएगा उसमें दिन रात एक करोगे तब भी आपको थकान और बोरियत नहीं होगी|

हमें बिना कामना के भी बहुत मिल जाता है| न चाहते हुए भी हमसे बहुत कुछ छूट जाता है| विधि के विधान पर हमारा बस नहीं है| इसलिए तो धर्म ने कहा कि कामनाओं से दूरी बनाओ, क्योंकि तुम नहीं जानते कि कौन सी कामना पूरी होने लायक है और कौन सी नहीं, या जो कर रहे हो उससे ज्यादा अटेचमेंट न रखो इससे वो पूरी नही होगी तो दुख नहीं होगा| जब तुम्हारी कोई इच्छा, पूरी नहीं होगी, तो तुम बेचैन हो जाओगे, क्रोध में आ जाओगे, परेशान हो जाओगे, और तुम्हारी जिंदगी में उलझन खड़ी हो जाएंगी| 

कामनाओं से ह्रदयाकाश में अस्थिरता और निष्काम होने से शून्यता आती है| शून्यता में ही परमात्मा का पता चलता है| जब कामनाएं नहीं होंगी तो सुख और दुख समान हो जाएंगे| धर्म कहता है अनासक्त भाव से योग करो या भोग, न तो तुम्हे इसका पुण्य मिलेगा न होगा पाप| 

हमारे मन में एक आशंका होती है कि यदि हम कामनाओं से दूर हो गए तो कहीं हम रसातल में ना चले जाएँ| डरने की बात नहीं है आप कहीं नहीं जाएंगे| आप बेवजह की मानसिक जंजीरों से मुक्त हो जाएंगे, भौतिक स्थिति तो अच्छी होती ही जानी है, उसकी व्यवस्था परमात्मा खुद करेगा, बस आप उसके विधान में  इंटर-फेयर मत करना|

प्रकृति में हर एक जीव के जीवन यापन का इंतजाम है| चाहे वह करें या ना करे| सिर्फ करने से मिलता है कि थ्योरी एक बहुत बड़ा भ्रम है| कितने लोग हैं जो सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं लगभग सभी बराबर मेहनत करते हैं लेकिन कितने लोग सक्सेस होते हैं? ये भाग्यवादी नज़रिया माना जा सकता है लेकिन धर्म कर्मवादी नज़रिए का समर्थन नहीं करता क्योंकि कर्म में अहंकार है और अहंकार पग पग पर टूटता है| वैसे तो मांगो ही मत और मांगो तो ऐसा मांगो जिससे माँगा तूंगी का झमेला ही खत्म हो जाये, उससे उसी को मांग लो| 

इस दुनिया में ऐसा क्या है जो पाने योग्य है? यह ऐसा क्या है जिसे जीता जा सकता है? यहाँ तो हर जीत के पीछे हार है यहाँ सब जितना पाना है वो सब जाना ही है| बहुत सारा बटोर लो फिर भी छीन ही जाना है| यहाँ कौनसी ऐसी चीज़ है जिसका मालिक बना जा सकता है| मालिक बनकर कंगाल बनने से क्या फायेदा? इसलिए कहा जो मिला उसका मालिक बनने का ख्याल भी मत लाओ क्यूंकि मरोगे तो और तकलीफ होगी| जितना इकट्ठा करोगे उसकी वासना मरने के बाद मुक्त नही होने देगी फिर भटकोगे|

atulyam

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