 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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अस्पृश्यता का मूल कारण संक्रामक रोगों से रक्षित रहने का रहा है।
एक शय्यासनं पंक्तिर्भाण्डपक्वान्न मिश्रणम् ।
याजनाध्यापनं योनिस्तथा च सह भोजनं ।।
नवधा संक्रमः प्रोक्तो न कर्त्तव्योऽधमैः सह ।।
अर्थात पतित या दुश्चरित्र व्यक्ति के साथ एक बिस्तर पर सोना, एक आसन पर या एक पंक्ति में बैठना, एक ही बर्तन में भोजन करना, पके हुए अन्न का झूठा करके आदान-प्रदान करना, यज्ञादि करवाना, यौन संबंध रखना, ये संक्रमण होने में कारण बनते हैं अतः विद्यावान लोगों को इनसे दूर रहना चाहिए।
प्रसंगाद् मात्रसंस्पर्शान्निः श्वासात्सहभोजनात्।
सहशय्यासनाच्चापि गन्धमाल्यानुलेपनात्।।
कुष्ठ ज्वरश्च शोषश्च नेत्राभिस्पन्द एव च ।
औपसर्गिक रोगाश्च संक्रामन्ति नरान्नरम् ।।
पतित या दुश्चरित्र व्यक्ति की निकटता, शरीर स्पर्श, श्वास- प्रश्वास, साथ-साथ भोजन करना, बैठना, उसके द्वारा प्रयोग में लिए गए वस्तु, साबुन, तेल, इत्र आदि का प्रयोग, कुष्ठ, ज्वर, शोष (टी.बी.), नेत्र रोग, शीतला, चेचक, हैजा, प्लेग आदि बीमारियां संपर्क जन्य होती हैं और संपर्क से फैलती हैं।
वस्तुतः अधोकर्म करने वालों में ये रोग अधिक मिलते हैं, सो इनके स्पर्श से दूर रहने के नियम बताए गए हैं, लेकिन शुद्ध विचारों से युक्त, स्वच्छ वस्त्रादि धारण करने वाले, विद्यावान व्यक्ति चाहे किसी भी जाति का हो, उसके स्पर्श से परहेज रखना धूर्तता है और वैदिक नियमों का उल्लंघन भी अस्पृश्यता स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है परंतु अस्पष्टृय कौन हैं इनके चयन में सावधानी अवश्य बरतें।
दीपक जोशी
 
 
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