गर्भधारण के लिए भी असगंध का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाता है। इसके लिए 12 ग्राम असगंध चूर्ण, 250 ग्राम दूध तथा 250 ग्राम पानी में उबालें। जब लगभग 250 ग्राम दूध बाकी रहे तो एक चम्मच शुद्ध घी और थोड़ी से मिश्री मिलाकर प्रातःकाल पिएं।
यह प्रयोग स्त्रियों को मासिक धर्म की समाप्ति के बाद कम से कम 4-6 माह तक करना चाहिए। इसके साथ ही पुरुष को भी यही प्रयोग अथवा किसी भी रूप में सेवन करना चाहिए। किन्तु स्त्री-पुरुष में यदि किसी को भी कोई रोग है तो उसका इलाज भी अवश्य करा लेना चाहिए।
स्तनों में दूध बढ़ाने के लिए -
अकेली असगन्ध को कूट छान कर रख लें। यह चूर्ण प्रतिदिन 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन कराएं अथवा असगंध तथा शतावरी बराबर मात्रा में कूट कर रख लें। इस चूर्ण में से प्रतिदिन 25 ग्राम लेकर 250 ग्राम पानी में पकाएं।
जब लगभग 100 ग्राम पानी बाकी रहे तो उतार लें। इसको छानकर इसमें से आधी दवा सुबह और आधी शाम को दूध और मिश्री मिलाकर पियें। गर्मियों में सुबह-शाम अलग-अलग उबालकर बनानी चाहिए। इससे थोड़े ही दिनों में स्तनों में दूध बढ़ जाएगा और शिशु के लिए परम पौष्टिक भी होगा। साथ ही उस स्त्री का स्वास्थ्य भी अच्छा बन जाएगा।
निद्रा जननार्थ -
असगन्ध के मूल चूर्ण 1 ग्राम के लगभग दूध अथवा जल के साथ देने से वायु शमन होकर सुखपूर्वक निद्रा आ जाती है। अनेकों बार का अनुभव है।
सरल असगंध अवलेह -
जौकुट की हुई असगंध एक किलों को 20 किलो पानी में रात को भिगों दें सवेरे इसको औटाएं और जब दो किलों शेष रह जाये तो मलकर छान लें। इसमें दो किलो चीनी मिलाकर फिर आग पर पकाएं और जब यह चाशनी शहद की तरह गाढ़ी हो जाये तो उतार कर चौड़े मुँह की बोतलों में भरकर रख लें।
इस अवलेह की मात्रा दो-दो चाय के चम्मच प्रातः व सायं काल वयस्कों को तथा एक-एक चम्मच बच्चों को दें। इस अवलेह के सेवन से शरीर मोटा ताजा बनता है, बालशोष ग्रस्त बच्चे जो हाड़ मांस के पुतले रह गए हैं वे भी बलिष्ठ तथा मेधावी हो जाते है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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