Published By:धर्म पुराण डेस्क

स्वतंत्रता आंदोलन में इस मंदिर की रही अहम भूमिका

सुदेश गौड़

पुणे का दगड़ू सेठ मंदिर देश में एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां विराजित गणपति महाराज को उनके भक्त के नाम से जाना जाता है यानी यहाँ भगवान से अधिक भक्त की महिमा है। 130 साल पुराने इस मंदिर ने 2017 में अपनी  स्थापना के 125 वर्ष पूरे किए थे।

वैसे तो महाराष्‍ट्र में देश के सबसे प्राचीन और खास गणेश मंदिर विद्यमान है। पूरे महाराष्ट्र में अन्य राज्यों की अपेक्षा गणेश उत्सव की सबसे ज्यादा धूम रहती है। यहां गणेशजी के अष्ट विनायक रूप के प्रसिद्ध मंदिर भी है। महाराष्ट्र में पुणे के समीप अष्टविनायक के आठ पवित्र मंदिर 110 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं।

मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर की तरह भी दगड़ू सेठ गणपति जी का मंदिर भी दुनियाभर में प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र का यह मंदिर दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में संगमरमर से बने दो प्रहरी जय और विजय शुरुआत में सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं। मंदिर का निर्माण इतना सरल है कि मंदिर में प्रतिष्ठित सुंदर गणेश मूर्ति के साथ सभी कार्यवाही बाहर से भी देखी जा सकती है।


 
दगड़ू सेठ नाम के हलवाई ने इस मंदिर का निर्माण कराया था और तभी से इस मंदिर को 'दगड़ूसेठ हलवाई मंदिर' के नाम से जाना जाता है। इसे आम बोलचाल में दगडू सेठ का मंदिर ही कहते हैं। कहा जाता है कि दगड़ूसेठ हलवाई कोलकाता से पुणे में पत्नी और बेटे के साथ मिठाइयों का काम करने आए थे।

कहा जाता है कि श्रीमंत दगडू सेठ हलवाई और उनकी पत्नी लक्ष्मीबाई कर्नाटक के एक लिंगायत समुदाय से थे। उनकी मूल हलवाई की दुकान अभी भी पुणे में दत्ता मंदिर के पास "दगड़ू सेठ हलवाई स्वीट्स" के नाम से मौजूद है। उस दौरान पुणे में प्लेग महामारी फैल गई थी। इस महामारी के चलते दगड़ूसेठ हलवाई ने अपने बेटों को खो दिया था।

इस हादसे के बाद दगड़ू सेठ को बड़ा झटका लगा और वे चाहते थे कि किसी भी तरह से दिवंगत बेटों की आत्मा को शांति मिले। उन्होंने एक पंडित से इसके लिए उपाय पूछा तो पंडितजी उन्हें भगवान गणेश का मंदिर बनवाने की राय दी थी।
पंडित जी की राय पर वर्ष 1893 में दगड़ूसेठ हलवाई ने एक भव्य गणपति मंदिर का निर्माण कराया और गणपति प्रतिमा स्थापित की।

देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी इस मंदिर की अहम भूमिका रही है। जब अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए लोगों के एक साथ समूह के रूप में एकत्र होने पर रोक लगा दी थी तब इस मंदिर से ही लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव की शुरुआत की थी। गणेश उत्सव मनाने के लिए एकत्र लोगों के बीच ही आंदोलन की भावी रणनीति तय की जाती थी।

इस तरह लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा पुणे में सार्वजनिक सभाओं को प्रतिबंधित करने वाले ब्रिटिश आदेश से लड़ने के लिए गणेशोत्सव को लोकप्रिय बनाया गया था। तब से ही हर साल यहां पर गणेश उत्सव की धूम लगी रहती है। इस मंदिर में करीब 8 किलो सोने के उपयोग से यहां पर भगवान गणेश जी की 7.5 फीट ऊंची और 4 फीट चौड़ी प्रतिमा विराजमान हैं।

इस प्रतिमा में गणपति के दोनों कान सोने के हैं। वहीं गणपति प्रतिमा के लिए 9 किलो से भी अधिक वजनी स्वर्ण मुकुट बनाया गया है। यहां हर वर्ष होने वाला दस दिवसीय गणपति उत्सव अपनी भव्यता के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।किसी भक्त के नाम से पहचाने जाने वाला देश का यह एकमात्र मंदिर लोगों की सेवा में लगा है। मंदिर हर साल करीब 15 करोड़ रुपए के सामाजिक काम करता है।

हालांकि, अलग-अलग मंदिर ट्रस्टों के देश में कई अस्पताल हैं, लेकिन, दगडू सेठ मंदिर ने अलग अस्पताल बनाने के बजाए पुणे के सरकारी ससून अस्पताल को कर्मस्थली बना लिया है। मंदिर यहां रोज 1200 मरीजों को दोनों समय का खाना, चाय और नाश्ता उपलब्ध कराकर जनसेवा भी कर रहा है।

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