Published By:बजरंग लाल शर्मा

यह संसार स्वप्न है, एवं इसके प्रमाण..   

यह संसार स्वप्न है, एवं इसके प्रमाण..              

1- स्वप्न नींद में बनता है।

"रे मन सुपन को घर नींद में, सो रहे न नींद बिगर।    

याको कोट बेर परमोधिये, तो भी गले नहीं पत्थर।।"     

2- यह सृष्टि स्वप्न की है तथा असत्य सत्य से नहीं मिल सकता है।

"रे मन सृष्टि सकल सुपन की, तू  करे  तामें  पुकार।  

असत सत को ना मिले, तू  छोड़  आप  विकार।।"    

3- स्वप्न  जागृत अवस्था का प्रतिबिंब होता है।

"तू कहां देखें इन खेल में, ए तो पडयो सब प्रतिबिंब।  

प्रपंच पांचों तत्व मिल, सब खेलत सूरत के संग।।"         

4- शून्य रूपी नींद में बनने वाले सगुन तथा निर्गुण स्वरूप दोनों ही माया के है तथा मिटने वाले हैं ।

"जस निरगुण तस सरगुन माना, निरगुन सरगुन एक समाना।     

निरगुण सरगुण दोनों मिट जयऊँ, आदि ब्रह्म से परिचय होयऊं।।"             

5- इस मन मंडल रूपी स्वप्न में परमात्मा नहीं है।

"सत सुपन में क्यों कर आवे, सत  साईं  है  न्यारा।      

तुम पारब्रह्म सो परच्या नाही, सो  क्यों  उतरोगे  पारा।।"     

6- मन मंडल रूपी स्वप्न में दो प्रकार के मन है। एक दृष्टा मन है जिसे आत्मा कहते हैं और दूसरा दृश्य मन है जिसे चेतन कहते हैं। दृष्टा रूपी आत्मा शून्य रूपी नींद के बाहर से मानव जीव के साथ जुड़ी होती है। आत्मा सत्य, निर्विकार तथा निर्लिप्त है अतः वह दृष्टा के रूप में है।

"मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में। (कबीर)

7- मन मंडल रूपी स्वप्न के अंदर बनने वाले पात्र के साथ जो चेतन है, वह आत्मा नहीं है। उसे अनात्मा कहा जाना चाहिए क्योंकि वह सत्य नहीं है।

"ये सब अनात्मा जड़ कहे, इनतें परे है ब्रह्म।    

मन वचन वहां पहुंचे नहीं, तो मिटे कैसे भरम।।"      

8- बौद्धिक स्तर केवल मानव जीव का ही ऊंचा होता है क्योंकि इसी जीव के साथ दृष्टा आत्मा जुड़ी होती है।

"नूरी हक का तिनपर भेजिए, जो कोई  नूरी  हक का होए।    

पर  झूठे  ख्वाबी  दम  पर, नूर पार थें न आवे कोए।।"         

बजरंग लाल शर्मा 

          


 

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