 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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प्रथम स्टेज:
आधुनिक चिकित्सक चिकित्सा में क्षय रोग को तीन स्तरों में विभाजित करते हैं, जो आयुर्वेद में सुखसाध्य, दुःसाध्य, और असाध्य के रूप में जाने जाते हैं। प्रथम स्टेज में पसलियों में दर्द, हाथ-पैरों में हड्डियों का कमजोर होना, सर्वांग में हल्की सी टूटन और ज्वर के लक्षण होते हैं।
द्वितीय स्टेज:
इस स्टेज में स्वर-भंग, वायुशूल, पार्श्वशूल, ज्वर, प्रदाह, दस्त, पतला पित्त आदि लक्षण प्रकट होते हैं। इनका उपचार सामान्यत: औषधियों से होता है, लेकिन कई बार रोग में वृद्धि होने पर कठिनाई आ सकती है और उपसर्गों का सामना करना पड़ सकता है।
तृतीय स्टेज:
इस स्टेज में ज्वर में विषमता, तीव्रता के साथ खांसी बढ़ जाती है, जो रोगी को अधिक परेशान करती है। खांसी के साथ रक्तांश का जाना और स्वर-भंग होना भी इस स्टेज की विशेषता है। रक्तांश की बढ़ती मात्रा से रोगी को निराश-सा होने लगता है।
चिकित्सा की बातें:
रोग की स्थिति किसी भी स्टेज में हो, चिकित्सक को सावधानी से चिकित्सा का निर्णय करना चाहिए। श्वास तक आश के नारे के अनुसार, चिकित्सा हमेशा आवश्यक है। असाध्य रोग को त्याज्य नहीं मानना चाहिए, क्योंकि कई बार मरते-मरते भी रोगी को नया जीवन मिलता है।
 
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