जीवन कल्पनाओं से भी विचित्र है. दुनिया भर में विचारशील लोगों ने जीवन के बारे में बहुत गहराई और व्यापकता से विचारकर अपने-अपने निष्कर्ष सामने रखे हैं. ऐसे विचारशील लोग कम ही होते हैं, जो रोज़मर्रा की बातों और दृश्यगत संसार के आगे कुछ सोचते हों. सौभाग्य से भारत में प्राचीनकाल से ही ऐसे लोग बहुत हुए हैं. इन्हें ऋषि कहा जाता है. इन ऋषियों ने अपनी साधना से जो अनुभव प्राप्त किये, उन्हें अपनी-अपनी तरह से कहा. अनुभव तो सबका एक ही है, लेकिन सबका कहने का तरीका और शब्दावली अलग है.
इसीलिए भारत में एक महावाक्य कहा गया है कि ”एक ही सत्य को ज्ञानी बहुत प्रकार से कहते हैं”. ऋषियों ने जो अनुभव किया, उसे शास्त्रों में व्यक्ति किया. सनातन धर्म के शास्त्रों में ऋषियों का एक अनुभव बहुत सामान्य है कि, जीवन में तीन बातें सबसे दुर्लभ हैं. पहली है, मनुष्य जीवन. दूसरी है, मोक्ष की कामना और तीसरी है, सत्पुरुषों का संग. ये तीनों चीज़ें जिस व्यक्ति को मिल जाती हैं, उसे सबसे भाग्यवान और जीवन के परम लक्ष्य “मोक्ष” का अधिकारी माना जाता है. सनातन जीवन-दर्शन के अनुसार मनुष्य योनी बहुत सौभाग्य से मिलती है. चौरासी लाख योनियाँ बतायी गयी हैं. इनमें से मनुष्य योनी को सबसे दुर्लभ बताने का कारण यह है कि, इसमें कर्म करने की स्वतंत्रता है.
यानी मनुष्य में अच्छे-बुरे का विवेक होता है. बाकी सारी योनियाँ सिर्फ पिछले कर्मों का भोग करने के लिए होती हैं. इस बात को प्रतिपादित करने के लिए हमारे शास्त्रों में अनगिनत श्लोक और दृष्टांत मिलते हैं. यहाँ तक कि इसे “सुर दुर्लभ” कहा गया है. इसका अर्थ है कि, देवता भी मनुष्य योनी में आने के लिए तरसते हैं. मनुष्य की क्षमताएं अपार हैं. लेकिन दुर्भाग्य से उसे इनका पता नहीं होता. वह अपने असली स्वरूप को नहीं जानकार सिर्फ खाने, सोने और भोग को ही जीवन का परम लक्ष्य मानकर जीता रहता है. वह अच्छे-बुरे सभी काम करता रहता है और मनुष्य जीवन का मोल जाने बिना जगत से विदा हो जाता है.
इस प्रकार वह देवत्व तक ऊपर उठने का अवसर गँवा देता है. जन्म-मरण के चक्र में पड़ता रहता है. मनुष्य के मन में जब स्वयं को और जन्म लेने का उद्देश्य जानने की जब इच्छा होती है, तो इसे बहुत दुर्लभ माना जाता है. जब किसी व्यक्ति का मन निष्काम भाव से ईश्वर की पूजा-अर्चना, ध्यान आदि साधनाओं की ओर जाने लगे, तो इसे उसके अनेक जन्मों में किये गए शुभ कर्मों का फल माना जाता है. शास्त्रों को पढ़ने की ओर मन के जाने का मतलब ही यही है कि, अब जीवात्मा मोक्ष की ओर कदम बढ़ाना चाहता है.
ऐसा देखा गया है कि, बड़ी संख्या में लोगों के घर में शास्त्र ही नहीं होते. यदि होते भी हैं, तो घर के पूजा-स्थल पर लाल कपड़े में बंधे रहते हैं. व्यक्ति पूजा-स्थल पर जाता है, तो भगवान के साथ ही कपड़े में लिपटे शास्त्र को भी प्रणाम कर लेता है. इसी तरह कई पीढियां बीत जाती हैं, लेकिन शास्त्र पर से कपड़ा नहीं हटता. कुल में जब कभी कोई पुण्यात्मा जन्म लेता है, तब वह शास्त्र पर से कपड़े को हटाकर उसे पढ़ता है.
इस प्रकार देखा जाय, तो घर में शास्त्र का होना ही बहुत बड़ी बात होती है. न जाने कब कोई ऐसा जीव परिवार में जन्म ले ले, जो शास्त्र की उपस्थति को सार्थक कर दे. सनातनियों के घरों में शास्त्रों का नहीं होना, वैसा ही है जैसे बिना प्राण की देह. इस बात को ध्यान में रखकर हम बहुत छोटे-छोटे उपाय कर सकते हैं. गृह-प्रवेश, विवाह, पुत्र-जन्म, नामकरण आदि संस्कारों के समय हमें आमंत्रित करने वाले परिवार को कोई गिफ्ट अवश्य देते हैं.
हम ऐसा नियम बना सकते हैं कि, ऐसे कार्यक्रमों में जाने पर इधर-उधर की चीजें या नगद धनराशि की जगह कोई ग्रंथ भेंट करेंगे. आज बहुत महंगाई के युग में भी धार्मिक ग्रंथ अपेक्षाकृत कम मूल्य पर मिलते हैं. ये दोनों स्थितियां बहुत दुर्लभ होती हैं. लेकिन इनमें भी सबसे दुर्लभ होता है, अच्छे लोगों का साथ. इसे पारंपरिक भाषा में “सत्संग” कहा जाता है. यह दुर्लभतम चीज़ है. सारे संसार में विषयी और बुरे कर्म करने वाले लोग भरे पड़े हैं. इनकी विशेषता यह होती है कि, वे दूसरों को भी इसी मार्ग पर लाना चाहते हैं. वे मन में इस बात को जानते हैं कि, वे गलत रास्ते पर हैं और उनके भीतर इसे लेकर ग्लानि का भाव भी रहता है.
लिहाजा अपनी ग्लानि को कम करने के लिए वे चाहते हैं कि, उनके साथ अधिक से अधिक लोग जुड़ जाएँ. मनुष्य की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि, उसका मन बुराई की तरफ बहुत जल्दी आकर्षित हो जाता है. कभी अच्छी बातों की तरफ आकर्षित हो भी जाये, तो बहुत जल्दी उससे अलग हो जाता है. एक बार गलत मार्ग पर चल पड़ने के बाद लौटना बहुत कठिन होता है. इसीलिए संसार के सभी समझदार और विवेकशील लोगों ने अच्छे लोगों के साथ रहने की सलाह दी है. लेकिन ऐसे व्यक्ति मिलना बहुत कठिन होता है.
यदि कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिल रहा हो, तो अच्छी पुस्तकें पढ़ना इसका सबसे सुन्दर विकल्प है. हर सनातनी को शास्त्रों में बतायी गयी इन तीनों बातों का पूरा ध्यान रखना चाहिए. जन्म मिलना तो भाग्य की बात है. इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं होती. लेकिन मोक्ष की कामना और अच्छे लोगों का संग तो हम अपने प्रयास से कर सकते हैं. यह एक दिन में नहीं होता. इसके लिए लगातार एकनिष्ठ प्रयास की ज़रूरत होती है. यह शुरू में कुछ कठिन लगता है, लेकिन इसके फल बहुत मीठे होते हैं.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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