Published By:अतुल विनोद

वक्त है बदलाव का : अब रिश्ते भी चलेंगे अनुबंध से… अतुल विनोद

विडम्बना ये है कि बच्चे बड़े होकर घर और शहर छोड़ देते हैं| उनके लिए उम्र खपाने वाले पेरेंट्स अकेले बुढ़ापा काटने को मजबूर हैं| पहले भी ऐसा होता था लेकिन 8,१० बच्चे होते थे तो कोई न कोई मिल ही जाता था सहारे को| अब एक या दो हैं| एक बेटा  एक बेटी|  

सरकार ने तो रिश्ते को कानूनी जाम पहनना शुरू भी कर दिया है जब पत्नी को इतने सारे अधिकार दे रखे हैं क़ानून ने तो माँ बाप को क्यों नहीं| पति पत्नी से बद्सुलूखी करे, ज़िम्मेदारी न निभाए तो सीधा जेल लेकिन बच्चे माता पिता के साथ कुछ भी करें? जैसा अधिकार पत्नी को मिला है वैसा ही पेरेंट्स को भी मिले |सरकार कर भी रही है काम इस दिशा में| लेकिन माता पिता अपनी तरफ से भी ऐसा कुछ कर सकते हैं| वे बच्चों से अग्रीमेंट कर सकते हैं| बच्चों को पढ़ा लिखा दो पैसे खर्च करो लेकिन इतना पढने के बाद भी कुछ न करें या करने के लिए इतना दूर निकल जाए कि लौटें ही नहीं| बच्चों को लगता है माँ बाप का हमारी देखरेख और पढाई लिखाई में पूरा जीवन खपाना, सारी सम्पत्ति लुटाना अधिकार है| 

लेकिन कर्तव्य की बारी आती है तब? थोड़ा प्रेक्टिकल बने| माता पिता सब कुछ उन्हें हीरो बनाने के लिए न लुटा दें| उनसे मौखिक या लिखित अग्रीमेंट करें| पढने के बाद उनकी क्या ज़िम्मेदारी होगी| हलाकि बात अटपटी है लेकिन बात हलक में बैठानी ज़रूरी है| ऐसा न हो कि आप अपने बच्चों के लिए ही लुट रहे हों, घिस और पिट रहे हैं| बच्चों के मोह में अपने माता पिता को इग्नोर न करें| याद रखें ये सामाजिक व्यवस्था है| अपने पालकों को उपेक्षित करके बच्चों पर प्यार और धन लुटाना अच्चा रिटर्न नही देगा| जितने बच्चे ज़रूरी हैं उतने ही माता पिता | 

आप जैसा करेंगे वैसा ही बच्चे करेंगे| बच्चे यदि होनहार हैं तो सरकारी स्कूल में पढ़कर भी आपका नाम रोशन कर सकते हैं| यदि नालायक हैं तो सबसे मंहगे स्कूल से भी कुसंस्कार लेकर ही निकलेंगे| अग्रीमेंट की बात सांकेतिक है| पहले अपने माता पिता के कर्ज को चुकाइए| ये एक ऐसा कुदरती अग्रीमेंट है जो आगे आपके ही काम आएगा| 

 

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