भागीरथ ने तप किया, कई वर्षों तक नित्य।
तब सुरसरि का हो सका, वसुधा पर प्राकट्य।।
महादेव प्रभु रुद्र ने, सहा तीव्र आवेग।
जटा मध्य रोका तभी, सहा धरा ने वेग।।
शिवजी ने खोलीं जटा, जग पर यह उपकार।
गंगोत्री से प्रकट हुई, पावन सुरसरि धार।।
भागीरथ... आगे.. चले, पीछे गंगा- धार।
कपिल ऋषि की तपस्थली, पुरखों का उद्धार।।
सगर सुतों को मिल सकी, ऋषि शाप से मुक्ति।
जन-जन को गंगा कृपा, सहज मोक्ष की युक्ति।।
भारत में नदियाँ बहुत, सबकी निर्मल धार।
गंगा- सी पावन नहीं, जो करती उद्धार।।
मातु सदृश पूजें मनुज, करें प्रदूषित धार।
यह कैसा अद्भुत यहाँ, मानव का व्यवहार।।
माँ गंगा की दुर्दशा.., मनुज- जन्य संताप।
फिर भी चाहे धूल सकें, कलि कल्मष के पाप।।
आज करें मिलकर सभी, प्रण यह बारम्बार।
करे नहीं कोई मलिन, अब सुरसरि की धार।।
'नमामि गंगे' चल रहा, अधुनातन अभियान।
स्वच्छ रखें 'गंगा' 'कमल', मानव सकल सुजान।।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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