Published By:धर्म पुराण डेस्क

छुई-मुई काया – दूध की माया..

छुई-मुई काया – दूध की माया..

भारतवासियों को इस बात का सबक सीखना चाहिए कि विदेशों में सभी जगह गोदुग्ध की डेयरी का विकास हुआ है, परंतु हमारे यहाँ गाय बेचकर भैंस खरीदी जा रही है जिसके असर से नयी पीढ़ी आलसी और मंद बुद्धि होती जा रही है। गाय का तो मूत्र भी अमृत समान है। शरीर सुडौल, सुन्दर और चुस्त बनाना हो तो गाय का दूध ही पिये। यहाँ संक्षेप में दुग्ध-चिकित्सा के कुछ प्रयोग दिये जा रहे हैं।

जिगर में विकार- पाचन संस्थान के सभी दोष गोदुग्ध से दूर किए जा सकते हैं। भारत की देखा-देखी रूस ने दूध चिकित्सा करके सारे यूरोप में इसका प्रचार किया है। 'कुछ मत खाइये और केवल दूध पीते रहिये । शहद का जी भरके प्रयोग करें। जिगर तिल्ली, गुर्दे आदि सही काम करने लगेंगे।'

जुकाम– कुछ डॉक्टर जुकाम-नजला में दूध की मनाही कर देते हैं, जबकि जुकाम में पेट को स्वच्छ रखने का काम दूध आसानी से कर देता है। जुकाम में दूषित पानी नाक से बहने दें और दूध में शहद घोलकर पीते रहें। भोजन सादा करें, आंतों और नस -नाड़ियों की पूरी सफाई कर डालें। तीसरे दिन से सब विकार अपने-आप दूर होने लगेंगे। गोलियां खाकर जुकाम हर्गिज न रोके, नहीं तो दूषित पानी नाक बहने की बजाय खून में जहर की तरह घुल जाएगा। बुखार अलग तड़पायेगा।

डिप्थीरिया - आम बोली में इसे पसली चलना या हब्बा-डब्बा भी कहा जाता है। बच्चों का यह रोग जानलेवा भी होता है। इससे बच्चे का दम घुटता रहता है और आंखें बाहर निकल आती हैं। बुखार जोर का रहता है। 2 चम्मच गुनगुने दूध में चम्मच घी और एक चम्मच शहद मिलाकर बच्चे को चटाना शुरू कर दें। गले और सीने की सफाई होते ही बच्चा सुख की सांस लेने लगेगा। घी से दोगुनी मात्रा में शहद डालें। गाय का गुनगुना घी बच्चे के सीने और गले पर भी मलें। इससे कफ पिघलकर हट जाएगी और श्वास नली सहज हो जाएगी।

तपेदिक - जो लोग तपेदिक के रोगी को दूध पीने से रोकते हैं वास्तव में वे दूध की शक्ति को नहीं पहचानते । यूनान, रूस, फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, अरब और स्विट्जरलैंड के विख्यात डॉक्टरों ने प्रयोगों के बाद साबित कर दिया है कि दूध से तपेदिक का भी सही इलाज किया जा सकता है। 50 ग्राम मिश्री और 10 ग्राम पिपली पीस छानकर 250 ग्राम दूध में उतना ही पानी मिलाकर काढ़ा तैयार कर लें। दूध बच जाने पर इसे उतार लें और 10-15 ग्राम गोघृत में 20-25 ग्राम शहद घोल लें। इसे इतना फेटें कि दूध पर झाग पैदा हो जाए। इसको चूसते रहें और मन में विश्वास पैदा करें कि आप अब स्वस्थ होने की राह पर चल पड़े हैं। फेफड़ों में छेद भी होंगे तो धीरे-धीरे भरने लगेंगे।

थकावट – चाहे कोई 50 कोस पैदल चलकर और उसका रोम-रोम दुख रहा हो तो उसके आया गाढ़े दूध में ढेर सारी मलाई डालकर पीने को दें। इसके साथ ही परात में गुनगुना पानी डालकर 2 चम्मच नमक डालें। इस पानी में घुटनों तक पाँव और टाँगें मल-मलकर धोयें। सारी थकान निकल जाएगी।

धतूरे का विष– गाय के दूध में गाय का ही घी मिलाकर पिलाते रहें। गोघृत-जैसा विषनाशक अमृत शायद ही कोई दूसरा हो।

नकसीर- घी डालें और कुछ पल नसवार की तरह सूंघे। जब दूध गुनगुना रह जाये तो मिश्री घोलकर पियें। इससे रक्त का उबाल शांत रहेगा और नकसीर भी नहीं फूटेगी। यदि एक मूली निराहार पेट खाते रहें और दूध में गाजर का रस पीते रहें तो नकसीर फूटने की नौबत नहीं आएगी।

नाभि फूलना- बच्चे की नाभि फूलने लगे तो हर कोई गोघृत ही चुपड़ा करता है। आप गर्म घी में हल्दी की चुटकी भुरकी रुई का फाहा तह कर लें और सुहाता गर्म रह जाने पर नाभि पर रखकर ऊपर से पट्टी लपेट दें। नाभि सिकुड़कर सहज रूप में आ जाएगी।

नासूर – यह हड्डी तक पहुँच जाने वाला फोड़ा है। जिसके मवाद की बदबू से डॉक्टर और सगे-सम्बन्धी भी रोगी से दूर रहना चाहते हैं। पुराने गाय के घी द्वारा नासूर जल्द सूखेगा। पहले नीम-पत्तों के काढ़े से फोड़ा साफ करें। उसके बाद कपड़े की बत्ती बनाकर गोघृत में तर करके नासूर में डाल दें। दिन में 3 बार नहीं तो 2 बार बत्ती बदल दें। डेढ़-दो महीने में फोड़े की जड़ें सूख जायेगी और घाव भरने लगेगा। दूध में घी डालकर पिलाते भी रहें, ताकि शरीर निर्विष रहे।

पेट में कीड़े- कड़वी कसैली दवाएं खाने के बजाय दूध में शहद मिलाकर पीना शुरू कर दें। इससे धीरे-धीरे पुराने कीड़े मर जाएंगे नये पैदा नहीं होंगे।

छाले फूलना – छाले चाहे गर्मी के उबाल से पड़े हो या आग से जलने पर- दोनों स्थिति में गो-दुग्ध की मलाई या घी लेप दीजिये, जलन भी शांत होगी, छाले बैठने पर घाव भी भर जाएंगे|

एक कप पानी में 2 चम्मच दूध डालकर रोज चेहरे पर मल लिया करें, मुखड़े पर से छावँ हट जाएगी और चेहरा भी चमकने लगेगा। दूध की मलाई लगाने से ओठ या गाल फटने की नौबत ही नहीं आयेगी। तेज बुखार में पुराने घी की मालिश करने से भी शरीर स्वस्थ रहता है।

                                                                                                                                                                सुनीता मुखर्जी 


 

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