 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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बीमार होने पर हम चिकित्सा इसलिए कराते हैं ताकि बीमारी से छुटकारा पा सकें, रोग को दूर कर निरोग हो सके। ऐसी स्थिति में हमारा सारा ध्यान बीमारी पर ही रहता है और आधुनिक चिकित्सा पद्धति की भी नीति यही है कि रोग को जैसे भी दूर किया जा सके, दूर किया जाए भले ही दबा दिया जाए पर तुरन्त राहत मिलना चाहिए। पर एक खास बात की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता।
जैसे हमारा बीमार होना हमारे ही ग़लत आचरण का परिणाम होता है वैसे ही बीमारी की चिकित्सा करना दरअसल अपने किये हुए ग़लत काम का प्रायश्चित करना होता है। प्रायश्चित करने के लिए इस भावना का होना बहुत ज़रूरी होता है कि अब दोबारा ऐसी ग़लती नहीं करेंगे।
इसी भावना पर अमल करना परहेज़ कहलाता है। जैसे इस भावना के बिना प्रायश्चित करने का कोई उपयोग नहीं वैसे ही परहेज किये बिना चिकित्सा कराना दो कौड़ी का है।
ग़लत आचरण के कारण उत्पन्न हुए रोग से शरीर और स्वास्थ्य की जो हानि होती है उसकी पूर्ति औषधि का सेवन करके की जाती है पर यदि रोग उत्पन्न करने के कारणों का त्याग नहीं किया गया तो रोग अच्छा ही नहीं होगा। यह त्याग करना अर्थात अपने आचरण में सुधार करना यानी परहेज का पालन करना ही प्रायश्चित करना होता है।
 
 
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