 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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प्रेम, आनंद और सत्य की सहज स्वरूपता आत्मा के अंदर छिपी है। इस अंतर्निहित प्रेम को परमात्मा से जोड़ने से ही हम अपरिमित और स्थायी आनंद प्राप्त कर सकते हैं। जब हम भौतिक और अनित्य वस्तुओं के आसरे से बाहर निकलकर अपने आत्म स्वरूप में प्रेम की अनुभूति करते हैं, तब ही हम वास्तविक प्रेम को समझ सकते हैं।
जब हम जीवन में सांसारिक समस्याओं और चुनौतियों का सामना करते हैं, तो हमें उनसे बचने के लिए आत्मा को भले ही अवसर मिलते हों, लेकिन यदि हम इन्हें नकारात्मकता की दृष्टि से देखते हैं तो हमें यह अनुभूति नहीं हो पाती। वास्तविक प्रेम में आत्मा को जानने और महसूस करने की यह क्षमता होती है कि सांसारिक परिस्थितियों के बावजूद हम कैसे शांति और आनंद में रह सकते हैं।
भौतिक और अनैतिक वस्तुओं के आधार पर प्रेम रखना अधूरा होता है क्योंकि ये वस्तुएं अनित्य होती हैं और इससे आनंद का स्थायी उत्पन्न नहीं हो सकता। इसलिए हमें आत्मा के साथ परमात्मा का संबंध स्थापित करना चाहिए, जो कि अजर-अमर और सच्चिदानंद स्वरूप है।
यदि हम अपने मन को इस आत्मिक संबंध में लगाते हैं, तो जीवन की सभी स्थितियों में हमें संतुष्टि, शांति और प्रेम का आनंद मिलता है। इस प्रेम में आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है, जिससे अद्वितीय आनंद का अनुभव होता है।
इस प्रेम के स्वरूप को समझकर हम अपने जीवन में एक सही दिशा में बढ़ सकते हैं और सभी समस्याओं का सामना करने में सशक्त हो सकते हैं। यह आत्मा के स्वरूप का साक्षात्कार करने का माध्यम बनता है और जीवन को एक नई दृष्टि से देखने का अवसर प्रदान करता है।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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