Published By:धर्म पुराण डेस्क

सत्य और धर्म, सनातन धर्म का मूल सत्य और वचन धर्म का महत्व

नसा कर्मणा वाचा के सिद्धांत के अनुसार मनुष्य के मन, वाणी तथा शरीर द्वारा एक जैसे कर्म होने चाहिए। ऐसा हमारे धर्म शास्त्र कहते हैं। मन में कुछ हो, वाणी कुछ कहे और कर्म सर्वथा इनसे भिन्न हों, इसे ही मिथ्या आचरण कहा गया है।

भीष्म पितामह ने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत रखा और वह अपने इस व्रत पर अटल रहे। वचन धर्म पालन और उसकी रक्षा के अनेकानेक वृतांत हमारे धर्म ग्रंथों में हैं।

इस लेख में, हम सनातन धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे, जिसमें सत्य और धर्म का महत्व है और वचन धर्म के महत्व को समझेंगे।

"सत्यं धर्म सनातनं" - सत्य और धर्म का मूल सत्य ..

सनातन धर्म के आदिकाल से "सत्यं धर्म सनातनं" के माध्यम से सत्य और धर्म का महत्व सिद्ध किया गया है। सनातन धर्म में, सत्य और धर्म दो अभिन्न अंश हैं, और इनका पालन धर्म के मूल में होना चाहिए। यह एक अदृश्य शक्ति है जो हमारे जीवन को मार्गदर्शन करती है और हमें सही राह पर चलाती है।

"नसा कर्मणा वाचा" - मन, वाणी, और कर्म के साथ संयम ..

"नसा कर्मणा वाचा" श्रीमद्भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश का हिस्सा है। इसका अर्थ है कि मनुष्य के मन, वाणी, और शरीर को संयमित रूप से काम में लेना चाहिए। इसका मतलब है कि हमारे मन के विचार, हमारी वचन, और हमारे कार्य सभी एक दिशा में होने चाहिए और ये सामंजस्यपूर्ण होने चाहिए। यह बताता है कि हमारा आचरण हमारे भीतर की शुद्धता को दर्शाता है।

वचन धर्म का महत्व-

हमारे धर्म शास्त्रों में वचन धर्म का महत्व विशेष रूप से उजागर किया गया है। वचन धर्म का पालन करने से हम अपने वचनों का पालन करते हैं और अपने वचनों की प्रामाणिकता को बनाए रखते हैं। वचन धर्म का पालन करने से हम अपने विचारों और वाचन की महत्वपूर्णता को समझते हैं और इसके माध्यम से समाज में आदर्श स्थापित करते हैं।

वचन धर्म के उदाहरण-

धर्म ग्रंथों में वचन धर्म के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। इनमें से कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:

भगवान श्री राम: कैकेयी ने दशरथ से भगवान श्री राम के वनवास जाने का वर मांगा था। भगवान श्री राम ने अपने पिता के वचन का पालन किया और वनवास को स्वीकार किया।

महाभारत का युद्ध: भगवान श्रीकृष्ण द्वारा महाभारत के युद्ध में शस्त्र न उठाने का वचन। वह समाज हित के प्रति संवेदनशीलता और जगत हित के लिए कर्तव्यनिष्ठा को प्रतिपादित करते हैं।

पांडवों का वचन: पांडव सदैव कर्तव्य धर्म का पालन करते थे। उन्होंने अपनी माता के वचन के पालन के लिए द्रौपदी को अपनाया।

ये उदाहरण बताते हैं कि वचन धर्म का पालन करना धर्म के महत्व को समझने में मदद करता है

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