Published By:धर्म पुराण डेस्क

सच्चाई जीवन की..

अबूब आला दर्जे के फकीर थे. एक दिन उन्हें पता चला कि एक बादशाह अपनी फौज के साथ किसी राज्य पर आक्रमण करने जा रहा है.

सेना के जाने का मार्ग कब्रिस्तान से होकर गुजरता था. अबूब कब्रिस्तान में जाकर बैठ गये. वह कब्रों की मिट्टी खोद कर हाथ में लेते, उसे सूंघते और छोड़ देते. फिर वे मिट्टी को तौलने लगे.

यह देख कर बादशाह ने फकीर को अपने पास बुलाया और पूछा- "तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो?"

अबूब ने मस्ती में कहा- “यदि आप बादशाह है तो मैं शहंशाह हूं. कब्रों की मिट्टी को सूंघ कर और तौल कर यह अनुमान लगा रहा हूं कि कौन-सी कब्र किसकी है. कौन सी गरीब की है और कौन-सी अमीर की? मुझे पता लगाना है कि आप जैसे बादशाहों की कौन-सी कब्र है और मेरे जैसे शहंशाहों की कौन-सी."

बादशाह ने उत्तेजित होकर कहा- "बेवकूफ! क्या तुम नहीं जानते कि यहां एक बार दफनाने के बाद यह पता नहीं लगता कि कौन-सी कब्र किसकी है."

फकीर ने कहा- "जनाब! आप जो चाहें कह सकते हैं, क्योंकि आप बादशाह है. मेरी नजर में जिसके पास जितनी धन-दौलत होती है उसे उतना ही घमंड होता है. उसे बोलने के होश नहीं रहते हैं."

बादशाह गरज उठा- "आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? साफ-साफ कहो."

तब फकीर ने शांत चित्त से कहा- "जरा सोचिये, यह वही कब्रिस्तान है जहां आपके पूर्वज दफनाये गये थे. यहां आपके द्वारा सताये गये अनेक लोगों की कब्रे भी मौजूद हैं. मैंने स्वयं उन लाशों को कब्रों में उतरते देखा है. 

यदि आज मैं उनकी पहचान कर रहा हूं तो इसमें कौन-सी नासमझी है? कब्रिस्तान आने पर सब समान है. एक न एक दिन आपको भी यहां आना पड़ेगा. यह जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई है. तो फिर सेना सजा कर किसी अन्य राज्य पर आक्रमण करने क्यों जा रहे हैं?"

बादशाह अबूब की बातों से काफी प्रभावित हुआ और उसने हमला करने का इरादा छोड़ दिया.


 

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