Published By:दिनेश मालवीय

अनूठे महादेव का अनूठा दरबार, सभी जीव स्वाभाविक बैर भूलकर एक साथ रहते हैं.. दिनेश मालवीय

अनूठे महादेव का अनूठा दरबार, सभी जीव स्वाभाविक बैर भूलकर एक साथ रहते हैं.. दिनेश मालवीय

शिव अकेले ऐसे देवता हैं, जिनकी साकार और निराकार दोनों रूपों में पूजा होती है. निराकार रूप में वह लिंग के रूप में पूजे जाते हैं. लिंग निराकार ब्रह्माण्ड का प्रतीक है. इस रूप में उनका शिव नाम सबसे अधिक प्रचलित है. साकार रूप में उनकी पूजा शंकर के रूप  में होती है. शिवजी ऐसे अनूठे देवता हैं, जिन्हें देव और दानव समान रूप से पूजते हैं. उनकी अवहेलना करने का साहस कोई नहीं कर सकता. उनकी आराधना-उपासना कोई भी करे, वह उसे मुंहमांगा वरदान दे देते हैं. कई बार तो अपने इस भोले और सहज स्वभाव के कारण उन पर संकट भी आये. लेकिन वह तो महादेव हैं. कोई संकट उनका क्या बिगाड़ सकता है. वह महाकाल के रूप में कालों के काल हैं.

 

भगवान् के भक्त अपने प्रिय इष्ट को उस रूप में देखना चाहते हैं, जो उनके अपने जैसा हो. इस तरह वे अपने इष्टदेव या देवी के साथ भावनात्मक रूप से बहुत गहराई से जुड़ जाते हैं. इसी भाव से निराकार शिव साकार शंकर के रूप में लोकपूजित हैं. इस रूप में उनका एक बड़ा सुंदर परिवार है. उनकी पत्नी पार्वतीजी हैं, जो जगदम्बा या आदिशक्ति का स्वरूप हैं. उनके दो पुत्र कार्तिकेय और श्रीगणेश हैं, जिनकी अपनी अपार महिमा है. लेकिन क्या आप जानते हैं, कि शंकरजी की तीन पुत्रियाँ भी हैं. शिवपुराण में उनकी तीन पुत्रियों के बारे में उल्लेख मिलता है.  इनके नाम हैं-अशोक सुंदरी, ज्योकति या ज्वापलामुखी और देवी वासुकी या मनसा देवी. कहते हैं, कि प्रत्येक हिन्दू परिवार में शिव परिवार की तस्वीर होनी ही चाहिए. इससे घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मक चेतना का प्रसार होता है. परिवार में कलह नहीं होती. विपरीत स्वभाव के लोग भी आपस में मिलकर रहते हैं. आजकल तो शिव परिवार की एक से एक सुंदर और आकर्षक तस्वीरें मिलती हैं. शिवजी के इस परिवार के विषय में तो लगभग सभी जानते हैं. उनकी पुत्रियों की जानकारी कम लोगों को है. लेकिन शंकरजी के दरबार की बहुत-सी ऐसी विशेषताएँ हैं, जिनके सृष्टि में समन्वय के संदर्भ में बहुत गहरे अर्थ हैं.

 

हम आपको शंकरजी के परिवार या दरबार के बारे में कुछ बहुत महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहे हैं. उनके साथ रहने वाले सभी लोगों के बारे में चिन्तन करें, तो बहुत आश्चर्य होता है. यह अनेक ऐसे विरोधाभावी तत्वों से भरा है, जो उनके सामने विरोधी नहीं रह जाते. शिवजी का वाहन नंदी है, जबकि उनकी अर्धांग्नी पार्वती या देवी का वाहन सिंह है. बाहर कहीं भी यदि उनका सामना हो जाए, तो सिंह नंदी को अपना शिकार बना ही लेगा. लेकिन यहाँ दोनों मज़े से एकसाथ रह रहे हैं. शिव-पार्वती के बड़े पुत्र देव सेनापति भगवान् कार्तिकेय हैं, जिन्हें दक्षिण भारत में  मुरुगन कहा जाता हैं. उनका वाहन मोर है. अब देखिये, कि कैसा विरोधाभास है ! मोर सर्पों का सबसे बड़ा दुश्मन होता है. उसका सबसे प्रमुख भोजन सर्प ही हैं. शंकरजी  के गले में सर्प लिपटे रहते हैं. लेकिन यहाँ वे एक साथ मज़े से रहते हैं. अब ज़रा गणों के स्वामी और रिद्धि-सिद्धि श्रीगणेश पर नज़र डालते हैं. उनका वाहन चूहा है, जो सर्पों का भोजन है. लेकिन शिवजी के दरबार में वे बैर भाव भूलकर एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहते हैं.

 

इसके अलावा आपको भगवान् शंकर के भाल पर अर्धचन्द्र तो दिख ही रहा होगा. संत तुलसीदास ने कहा है, कि भगवान् शंकर के भाल पर स्थित होने के कारण चंद्रमा का महत्त्व बढ़ गया. अब यह भी बड़ी रोचक बात है, कि भगवान् शंकर के गले में कालकूट विष  मौजूद है, जिसका उन्होंने देवताओं और संसार का हित करने के लिए स्वयं सेवन कर लिया था. उसे उन्होंने अपने गले से नीचे नहीं उतारा और वह उनके गले में ही रह गया. इसी कारण शिवजी का एक नाम नीलकंठ हो गया. इसके विपरीत चंद्रमा को अमृत से परिपूर्ण माना गया है. यहाँ कालकूट विष और अमृत दोनों भोलेनाथ के शरीर में मौजूद हैं. इन तथ्यों पर यदि विचार किया जाए, तो एक बात स्पष्ट होती है, कि चेतना की उच्चतम अवस्था वाले व्यक्ति के पास आकर सभी जीव-जंतु आपसी बैर भुला देते हैं. उनके भीतर से हिंसा का भाव समाप्त हो जाता है. अनेक साधु-संतों के बारे में ऐसा विवरण पढ़ने को मिलता है, जहाँ बहुत हिंसक प्राणी उनके आसपास उनके बच्चों की तरह रहते थे. न वे संत उनको नुकसान पहुँचाते थे और न वे संतों का कोई अहित करते थे.

 

भगवान् महावीर के समक्ष आकर भयंकर विषैले नाग की हिंसक वृत्ति समाप्त हो गयी. यही कारण है, कि ऋषि-मुनि सघन वनों में आश्रम बनाकर रहते थे, लेकिन उन्हें हिंसक पशुओं से कोई भय नही होता था. इस बात का एक और निहित  अर्थ यह है, कि ज्ञानी या परम तत्व को पहचानने वाले के लिए न कोई अच्छा है और न बुरा. उसके सामने जीव-जंतु, जड़-चराचर सब ईश्वर का ही रूप होते हैं. उनके भीतर न कोई किसीसे राग होता है न द्वेष. शिवजी के परिवार के इन रहस्यों को जानकार आपके ह्रदय में शिवजी के प्रति भक्ति का भाव और अधिक बढ़ गया होगा. उनके गुणों का चिन्तन करने वाला उन्हीं के जैसा हो जाता है. इन रहस्यों को ध्यान में रखकर शिवजी की अनन्य भाव से आराधना करके अपने भीतर की वृत्तियों को शुद्ध करते हुए जीवन को सफल ही नहीं सार्थक भी बनाइये. और हाँ, शिव परिवार की तस्वीर अगर घर में नहीं हो, तो लेकर आइये. " ॐ नम: शिवाय "

 

 

 

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