बढ़ा है कारोबार-
रेशम धागों की बुनाई और जरी मिलाकर तैयार की डिजाइनर साड़ियों को बनारस की साड़ी कहा जाता है। ये साड़ियां मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के चंदी बनारस, जौनपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर, मुबारकपुर, मऊ, में तैयार की जाती हैं, लेकिन इन पहचान बनारस की साड़ी के रूप में ही होती है।
बनारस की साड़ी इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आय का बड़ा जरिया भी है। पूर्वांचल निर्यातक संघ के अध्यक्ष जुनैद अहमद अंसारी के अनुसार प्योर सिल्क, कॉटन और कछुआ साड़ियों का कारोबार बड़ा है, जिसका सीधा फायदा बुनकरों को मिल रहा है।
150 रुपये रोजाना पाने वाले हथकरघा बुनकर अब 1000 तक कमा रहे हैं। सदियां बीती, बनारसी साड़ी ने भी वक्त के साथ अपना कलेबर बदला। कभी हाथों से बनी गई तो अब पावरलूम में बन रही हैं। वक्त के साथ इसकी डिजाइन भले ही बदली, लेकिन कुछ कलाकारी ऐसी भी रही जो इंसानी हाथों की तलबगार ही है।
बनारसी साड़ियों की विशेषता-
साड़ी पर अमिया, कैरी की डिजाइन समेत फूल-पतियों के अलावा जानवरों की डिजाइन भी उकेरी जाती है। इसकी एक और खासियत होती है कि इसमें एक बूटी से दूसरी बूटी के बीच धागे नहीं होते। हर तार अलग-अलग चलता है।
एक साड़ी को तैयार करने में एक से दो महीने तक का वक्त लगता है। चूंकि समय और मेहनत ज्यादा होती है इसलिए इसकी कीमत भी ज्यादा होती है।
बुनकरों का कहना है कि दशकों से दुनियाभर में मशहूर बनारसी साड़ी की चमक और बढ़ सकती है, अगर यहां के बुनकरों को और बेहतर तकनीक मुहैया कराई जाए। बनारस में बनारसी साड़ी का बिजनेस लगभग 1000 करोड़ प्रतिमाह का है, जो फेस्टिवल व शादियों के सीजन में बढ़कर लगभग 6000 करोड़ रुपए पर पहुंच जाता है।
कारोबारियों का कहना है कि पावरलूम की बजाय हैंडलूम की बनी बनारसी साड़ियों की डिमांड बढ़ रही है। आज भी ट्रेडिशनल वर्क बहुत ज्यादा डिमांड में है। कई ग्राहक तो अपने बुजुर्गों के समय की डिजाइन की डिमांड करते हैं। वे अपनी दादी-नानी के समय की 50 से 70 साल पुरानी साड़ी दिखाकर वैसे ही कपड़े व डिजाइन की डिमांड करते हैं और इसके लिए स्पेशल ऑर्डर दिए जाते हैं। जितनी भारी और बारीक डिजाइन होती है, कीमत उतनी ही बढ़ जाती है।
बनारसी साड़ियों पर होता है टैग-
जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन), हैंडलूम व सिल्क मार्क के जरिए ही प्योर व असली बनारसी साड़ियों की खरीदारी मुफीद रहती है। असली बनारसी साड़ी खरीदने पर बिल में साड़ी में प्रयुक्त रेशम का प्रकार व मात्रा, सोने-चांदी की मात्रा, वजन आदि की जानकारी भी उपलब्ध कराई जाती है। असली रेशम और सोने- जरी से बनी होने के कारण परंपरागत बनारसी साड़ी भारी होती है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024