मनुष्य के चरित्र में सबसे बड़ी दुर्बलता यह है कि वह, कहता कुछ है और करता कुछ है.उसकी कथनी और करनी में अंतर होता है. इसी एक दुर्बलता के कारण उसका चरित्र उत्तम नहीं बन पाता.
राम भक्त हनुमान जी का व्यक्तित्व इतना विराट बन सका, उसमें उनकी कथनी और करनी में एकता की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. हनुमान जी चारों वेदों सहित सभी शास्त्रों, विद्याओं और विज्ञान के ज्ञाता हैं. लेकिन वह कोरे ज्ञानी नहीं हैं. सारा ज्ञान उनके आचरण में आत्मसात है. वह चारों वेदों के ज्ञान, कर्म, और उपासना के तीनों मार्गों के तत्त्वज्ञ हैं. उन्होंने इस ज्ञान को अपने आचरण में उतारा है. उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है. उनका मन जितना पवित्र है, उनके कर्म भी उतने ही पवित्र हैं. वह सदा सत्य का पक्ष लेते रहे हैं और उसकी रक्षा के लिए बड़े से बड़े संकट से जूझने में पीछे नहीं रहते.
हमेशा से ऐसा होता है कि व्यक्ति धर्म-अधर्म न देखते हुए उसके साथ होता है, जिसके पास बल, धन और सामर्थ्य होता है. लेकिन हनुमान जी इस बात का उदाहरण हैं कि सदा सत्य के साथ खड़े होना चाहिए. बाली के समान बलवान और प्रतापी राजा के साथ खड़े न होकर उन्होंने उसे छोटे भाई सुग्रीव का साथ दिया, क्योंकि उसका पक्ष सही था. उसकी भरपूर सहायता की, रक्षा की और श्री राम से उसकी मित्रता करवाई. इसी तरह हनुमानजी ने श्रीराम का साथ दिया, जबकि वह एक वनवासी का जीवन जी रहे थे. उनका साथ देकर उन्हें किसी संपदा की प्राप्ति की आशा भी नहीं थी. वह सिर्फ सत्य के कारण उनके साथ हुए.
हनुमान जी ने श्री राम की सेवा को ही अपने जीवन का सर्वस्व सिर्फ इसलिए बना लिया, क्योंकि श्री राम सत्य प्रतिज्ञ थे. हनुमान जी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने किसी भी संकट में घुटने नहीं टेके. समुद्र लांघते समय सुरसा और सिंहनी से सामना किया और लंका प्रवेश के समय लंकिनी को परास्त किया. अशोक वाटिका में वह न भयंकर राक्षसों से भयभीत हुए, न इन्द्रजीत से भिड़ने में उन्हें कोई संकोच हुआ. उन्होंने ऐसा पराक्रम दिखाया की पूरी लंका भयभीत हो गयी.
हनुमान जी अपनी मर्जी से मेघनाद के द्वारा छोड़े गये नागपाश में बंधकर रावण के बंदी हुए. उन्हें रावण की उस सभा में तनिक भी भय नहीं लगा, जिसकी भृकुटी तन जाने मात्र से देवता और लोकपाल भय से कांप उठते थे. रावण के दरबार में उन्होंने रावण के साथ जिस वीरता और निर्भीकता से संवाद किया वह कोई आसान काम नहीं था.
रावण उस समय का सबसे ताकतवर राक्षस था. वह किसी भी अवस्था में विचलित नहीं हुए. उनकी पूंछ में आग लगाने से पहले उनका बहुत अपमान किया गया. मारा-पीटा गया और अपमान पूर्वक सड़कों पर पैदल चलाया गया. इसे भी उन्होंने अपनी शक्ति बनाकर रावण की लंका को जला डाला. रावण के दरबार में जब प्रहस्त ने हनुमान जी से उनका परिचय पूछा तो उन्होंने मृत्यु का भय उपस्थित होने पर भी इतना ओजस्वी वक्तव्य दिया कि दरबार में हर किसी ने दांतों तले उंगली दबा ली.
इसकी प्रशंसा करते हुए महर्षि वाल्मीकि ने कहा है कि- " उनके उस वक्तव्य का प्रत्येक शब्द सार्थक था और केवल एक ही अर्थ देने वाला था". उनके इसी वक्तव्य के कारण लंका की प्रजा के बड़ी संख्या में लोग श्री राम के पक्ष में हो गये. उसके कई सभासद रावण को दोषी मानने लगे. यहाँ तक कि स्वयं रावण भी मन ही मन खुद को गलत मानने लगा.
ऐसा शास्त्रों में प्रमाण है और संतों का भी कथन है कि व्यक्ति जिस देवता की उपासना करता है, उसके गुण उसमें आ जाते हैं. हनुमान जी के भक्त भी उन्हीं की तरह निर्भीक और आत्मविश्वासी होते हैं. विश्व में सनातन धर्म की ध्वजा फहराने वाले योद्धा संन्यासी स्वामी विवेकानंद भी हनुमान जी के उपासक थे. उनका आशीर्वाद पाकर ही वह अमेरिका की धर्मसभा में चमत्कारिक उद्बोधन दे सके. उन्होंने अपनी बात को बहुत निर्भीकता से रखा और धर्म के नाम पर जो गलत बातें हो रहीं थीं, उनकी निर्भरता से आलोचना भी की.
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक भी हनुमान जी के उपासक थे. यह उनकी हनुमान भक्ति की ही ताकत थी कि वह अंग्रेजों की सभा में निर्भीकता से कह सके कि- " स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है." हनुमान जी के इन्हीं गुणों के विशेषकर युवाओं में प्रसार के लिए महामना पंडित मदनमोहन मालवीय ने देशभर में गली-गली और मोहल्ले-मोहल्ले में हनुमान मंदिरों की स्थापना का आव्हान किया था.उनके आह्वान पर अन्य नेताओं ने भी इस कार्य को आगे बढ़ाया.
आज जब भारत पर चारों ओर से संकट के बादल मंडरा रहे हैं. एक तरफ चीन और पाकिस्तान के नापाक गठजोड़ से उत्पन्न चुनौती है, वहीँ दूसरी ओर कुछ पड़ोसी देशों की हरकतों से संकट गहरा रहा है. इसके अलावा, देश में ही ऐसे कुछ तत्व हैं, जो देश और संस्कृति के विरुद्ध काम कर रहे हैं.
कोरोना महामारी का अलग संकट है| इस घोर संकट के दौर में हनुमान जी की आराधना और उनके गुणों को आत्मसात करने की और भी अधिक आवश्यकता है. विशेषकर युवाओं को हनुमान जी के चरित्र का अध्ययन कर उनकी उपासना करके उनके समान पराक्रमी बनना चाहिए. देश और संस्कृति की रक्षा सिर्फ शक्ति और संस्कार से ही संभव है, जो हमें हनुमान जी के चरित्र में मिलते हैं. आज वे ही हमारे आदर्श हो सकते हैं.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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