Published By:धर्म पुराण डेस्क

अंधविश्वासों की अवैज्ञानिकता

हजारों वर्षों से मानव व्यवहार में अन्धविश्वासो ने अपनी एक निश्चित जगह बनायी हुई है। हमारा बहुत-सा कार्य व्यवहार इन मान्यताओं से संचालित होता रहता है भले ही चेतन रूप में हम उनसे अनभिज्ञ हो। 

हमारे धार्मिक कर्मकांड, मान्यताएं, व्यक्तिगत मूल्य और सामाजिक रीति रिवाज सभी के मूल में अन्धविश्वासों का बोलबाला है।

यह कैसी विडम्बना है कि अंधविश्वास और असंगत विश्वास हमारे दैनिक जीवन का निर्देश करते हैं। इन्हीं के आधार पर हम अपनी यात्रा का दिन या नौकरी की नियुक्ति का दिन या विवाह का दिन तय करते हैं। वश में होता तो हम अपने जन्म का दिन भी पहले तय करके आते। शुभ मुहूर्त की चिंता हमें बस तब नहीं होती जब हम भ्रष्ट या स्वार्थी होना चाहते हैं।

सामान्यतः मानव के अज्ञान से आशंका ग्रस्त मन को ही अंधविश्वास के मूल में माना जाता रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका के ग्लासगों के मनोविज्ञान के एक प्रोफेसर का मानना कुछ अलग है। उनका कहना है कि मानव मन स्वभावतः ही विचारशील और अवधारणाएं सुनिश्चित करने का आग्रही होता है। वह एक उपलब्धि की धारणा से अपने ज्ञात परिवेश के नितान्त वैभिन्य पूर्ण रूपाकारों की आपस में संगति बैठाना चाहता है और यदि कहीं असफल रहता है तो भावस्त हो जाता है।

अन्धविश्वासों की तह में जाते हुए हमें एक तथ्य को नहीं भूल जाना चाहिए कि मनोविज्ञान भी विज्ञान से अलग नहीं है। अधिकांश बल्कि समस्त अन्धविश्वासों की जड़ में मनोवैज्ञानिक आधार तो रहते ही हैं. 

विज्ञान की दृष्टि अन्धविश्वासों के स्वरूप को शुद्ध तार्किकता की कसौटी पर कसती है। पर अन्धविश्वासों के औचित्य अनौचित्य पर विचार करते समय हमें तार्किकता के साथ ही अन्य अनेक पक्षों पर दृष्टि डालनी होगी।

घर से किसी शुभ कार्य पर निकलने के पूर्व स्वाभाविक है कि मनुष्य अपनी सभी क्षमताओं को बटोर कर एकाग्रचित्त और प्रसन्नता से उस लक्ष्य को प्राप्ति की ओर प्रस्थान करना चाहेगा। पर खाली या भरा हुआ घड़ा घर से निकलते समय उसके मानसिक सन्तुलन को विचलित कर सकता है क्योंकि खाली घड़े को विपन्नता का द्योतक मान लिया गया है। यद्यपि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

छोकना शरीर की एक जैविक क्रिया है। किसी बाह्य उत्तेजना से क्षुभित नाक की सुरक्षा व्यवस्था छींक के द्वारा उस बाह्य पदार्थ को निकाल बाहर करती है। फिर भी सामने से छींकना, पीछे से छींकना, दो बार लगातार छींकना जैसी क्रिया के अलग-अलग शुभाशुभ प्रतिफल माने जाते हैं। 

सामान्यतया छौंकने और मानव के साथ शुभाशुभ घटने के मध्य किसी प्रकार का कोई तार्किक सम्बन्ध तो दिखायी नहीं देता, किन्तु जुकाम के जोरदार आक्रमण के कारण लगातार छींके आ रही हो शरीर व्याधिग्रस्त हो तो यात्रा पूर्व छींक यात्रा के मध्य बीमार पड़ने पर आने वाली आगामी कठिनाइयों के लिए एक पूर्व सूचना अवश्य है। 

काली बिल्ली के रास्ता काट जाने पर परीक्षा के लिए जाना ही स्थगित कर देना अंधविश्वास की पराकाष्ठा है। यह सच है कि बार-बार इस तरह की बाधाएं आने से परेशान मन परीक्षा में अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर सकता। पर यह जानना भी उचित है कि रास्ते चाहे बिल्ली काटे या बैल, चाहे बस छूट जाने की मुसीबत हो, चाहे स्कूटर के स्टार्ट न होने की परेशानी, इन सभी से संतुलन विचलित होता है। 

फिर बिल्ली के रास्ता काटने पर ही इतना दुराग्रह क्यों? अन्धविश्वासी अवैज्ञानिकता का प्रमुख कारण यह है कि एक बार कोई मान्यता बना लेने के बाद साधारण मानव मन आसानी से उससे डिगना नहीं चाहता।

बौद्धिक परिश्रम सामान्य परिस्थितियों में सामान्य मनुष्य इस परिश्रम से तब तक भागता है जब तक वह उसे लिए किसी रूप में आवश्यक ही न हो जाये।

वस्तुतः पूर्ण और निष्पक्ष निर्णय किसी अन्धविश्वासी मनुष्य के लिए निरर्थक बाते हैं, जबकि विज्ञान के द्वारा ही मानव मन भय और आशंका के अन्धकूप से निकलकर समाज में दृढ़ता के साथ खड़ा हो सकता है। जबकि अतार्किक मान्यताएं पग-पग पर उसके रास्ते में आकर उसे कमजोर और सही निर्णय लेने में सक्षम बनाती है।

विज्ञान को महत्वपूर्ण भूमिका यही है कि वह मनुष्य में ऐसी तार्किक दृष्टि विकसित करने में योगदान दे जिससे स्वयं विश्लेषण करके अन्धविश्वासों के चंगुल से निकलने की मनोवृत्ति पनप सके। 

उदाहरणत: चाहे बिल्ली रास्ता काटे या कोई अन्य बाधा उत्पन्न हो अपने पूरे सामर्थ्य से अपना कार्य पूर्ववत करने का प्रयत्न करना ही अन्धविश्वासी के विरुद्ध लड़ाई की शुरुआत है।


 

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