 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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यूं तो उपवास हमारी धार्मिक परंपरा का एक हिस्सा है लेकिन धार्मिक परंपराओं मान्यताओं और क्रियाकलापों के पीछे वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं। उपवास एक ऐसी धार्मिक क्रिया है जिससे धार्मिक लाभ तो होते ही हैं शारीरिक लाभ भी होते हैं शरीर मजबूत होने के साथ रोगों की निवृत्ति होती है और मानसिक शक्ति बढ़ती है।
तो आइए जानते हैं लंघन और उपवास के क्या लाभ हैं।
लंघन (उपवास) का लाभ -
• लंघन कराने से अपक्व एवं विदग्ध अन्न रस पक्व हो जाते हैं, जठराग्नि प्रदीप्त होती है, भूख लगती है और भोजन में रुचि उत्पन्न हो जाती है।
• लंघन द्वारा दोषों के पच जाने, जठराग्नि दीप्त हो जाने और शरीर हल्का हो जाने पर स्वास्थ्य ठीक हो जाता है। भूख-प्यास लगती
है, भोजन में रुचि होती है, अन्न का पाचन होता है, बल और ओज की वृद्धि होती है। शरीर में बल एवं मांस-क्षय न हो, इसलिए लंघन कराते हैं। बाद में व्याधि की चिकित्सा करते हैं।
• लंघन से विदग्ध पित्त में स्थित पित्त का स्नेहांश भाग पक्व होता है और विकृत दोष निर्मल हो जाने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है। आम दोष का नाश होने से पाचक पित्त एवं समान वायु की स्थिति प्राकृत हो जाती है।
इस प्राकृत स्थिति से ग्रहणी कला की स्थिति भी प्राकृत हो जाने से विदग्ध आम दोष पक्व हो जाते हैं। इस स्थिति में वायु बढ़ जाती है और पित्त दोष कुछ-कुछ रहते हैं, इस स्थिति में स्नेहन के रूप में घी देते हैं।
अग्नि (जठराग्नि) प्रदीप्त करने के लिए अनेक औषधियां बताई गई हैं। उन औषधियों में दुर्बल अग्नि को प्रदीप्त करने में स्नेह सबसे उत्तम है। स्नेह से जठराग्नि के प्रज्वलित हो जाने पर किसी भी प्रकार का गरिष्ठ आहार उसे शांत नहीं कर सकता। फिर भी हानि नहीं होती, अतः सुबह-शाम त्रिफला घृत स्नेहन के रूप में देते हैं।
1. त्रिफला घृत 1-1 चम्मच सुबह-शाम त्रिफला घृत पित्तघ्न, अनुलोमक एवं रसायन रूप में कार्य करता है।
2. शंख भस्म 1 भाग, कपर्दिका भस्म 1 भाग, प्रवाल भस्म आधा भाग। इन तीनों औषधियों का मिश्रण 1-1 चम्मच सुबह-शाम दूध के साथ देते हैं। उपरोक्त दोनों औषधियां शीत वीर्य होने से व्याधि विपरीत हैं और ग्रहणी कला की स्थिति सम करके बल प्रदान करती हैं।
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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